धर्म ,प्राकृतिक नियमों की अभिव्यक्ति है ,जो सृष्टि को संचालित करते हैं , इसलिए धर्म किसी व्यक्ति के द्वारा बनाया नहीं जा सकता धर्म सदा ही विकसित रहता है पुरानी पीढ़ियों के द्वारा संकलित ज्ञान के माध्यम से
रिलिजन /संप्रदाय /पंथ किसी भी व्यक्ति के द्वारा बनाया जा सकता है ,जो की मनमाने नियम और अपनी मर्ज़ी के अच्छे लगने वाले कानूनों को लेकर बनाया जा सकता है जो की कोई पैगम्बर , या गुरु चुनता है अपने पंथ या संप्रदाय के लिए
धर्म सम्पूर्ण मनुष्यता के बारे में सोचता है
रिलिजन केवल अपने ही मज़हब के लोगों के लिए सोचता है और रिलिजन के साथ बहुत ला,मी रक्त रंजित इतिहास जुड़ा हो सकता है
धर्म में कारण,दर्शन और आध्यात्मिकता प्रधान होती है
रिलिजन में तर्कसंगतता और आध्यात्मिकता का कोई मतलब नहीं बनता
धर्म सबका आदर करता है
रिलिजन वाले लोग अधिकतर अहंकारी और स्वयं को दूसरों से उत्तम मानने वाले होते हैं
धर्म सदा के विचार विमर्श के लिए खुला रहता है और दुसरे विचारों को भी अपने में समाहित करता है
रिलिजन एक बंद विचारधारा होती है ,जो वैचारिक स्वतंत्रता का नाश करती है और अभिव्यक्ति को रोकती है ,पूरे योजनाबद्ध तरीके से
धर्म पुरातन और मूल सोच पर आधारित होता है
रिलिजन पुरानी मान्यताओं के विरोध में खड़ा रहता है
इसलिए रिलिजन सही शब्द नहीं है सनातन धर्म/हिंदुत्व के लिए और रिलिजन ही बिलकुल एक सही शब्द है , उन सब 'बनाये गए' सम्प्रदायों और पंथों के लिए जिनकी 'शुरुआत' का एक 'इतिहास' है धर्म तो सदा सत्य और सनातन रहता है
जय सत्य सनातन धर्म ॐ
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