Wednesday, March 26, 2014

एकमात्र असली धर्म



हमारा सनातन हिन्दू धर्म सबसे महान है | यही वो एकमात्र असली धर्म है , जो हमेशा 

से था , हमेशा से है और हमेशा ही रहेगा ! जिसे आज तक दुनिया की कोई ताकत नहीं 

मिटा सकी , न आज ही मिटा पा रही है और न आगे ही मिटा पायेगी !!! ..........



मुझे गर्व है कि मैं ऐसे दिव्य सनातन हिन्दू धर्म का अनुयायी हूँ! 

जय हिंदुत्व !!

||जय श्री राम ||

Tuesday, March 25, 2014

वेद पुस्तक नहीं

वेद को पुस्तक का दर्जा देकर दयानंद प्रभृत कतिपय सनातन धर्म विरोधी आक्षेपकारों ने वेदों की मर्यादा एवं इनके महत्त्व को भुलाकर इनके अपार गौरव को आहत करने की कुचेष्टा की है | जिनके नव्यमतावलम्बी कतिपय छद्म उदारवादि अनुयायियों ने वैदिक संस्कृति की मर्यादाओं को तार- तार करते हुए अपनी ईर्ष्या को लोकप्रियता में परिवर्तित करने के लिए स्त्री , शूद्र , द्विजेबंधुओं के साथ -साथ वर्णसंकरों , कुलगोत्रादिपारम्पर्यत्वविहीन म्लेच्छों तक को वेद का अधिकारी घोषित करने का जो कुकृत्य किया है , उस कुकृत्य ने हमारे सनातन (हिन्दू ) धर्म की नयी पीढी के अंतःकरण में " रूढ़िवादी नियमों की जंजीरों में बंधा तथाकथित सनातन (हिन्दू ) धर्म वर्गविशेष की साजिशों का परिणाम है" ; इस आधारहीन मानसिकता को जन्म दिया है जिससे वर्णाश्रम लक्षण वाले हमारे वैदिक धर्म को अपार क्षति हुई | स्थिति ये है कि आज हमारा हिन्दू समाज वेदों के मौलिक स्वरूप एवं इसकी मर्यादाओं से काफी दूर आ चुका है और आये दिन एक नया ज्ञानलवदुर्विदग्ध हमारी प्राचीन संस्कृति की अजस्र परम्पराओं को कटघरे में खडा कर स्वय को प्रखर प्रज्ञा संपन्न , धर्मवेत्ता और पंडित मानता हुआ सनातन (हिन्दू) धर्म को धूमिल करने में ही अपने को स्वनामधन्य समझता है | ऐसी विकृत मानसिकता के विरुद्ध हम सभी विशुद्ध हिन्दुत्ववादी ऋषि-संतानों को एकजुट होकर प्रखर विरोध का शंखनाद करते हुए इनको हमारी सांस्कृतिक अस्मिता और हमारे स्वाभिमान का स्वरूप दर्शन कराते हुए इनका दिमाग ठिकाने पर लाना होगा || |

| जय श्री राम ||

शिवलिंग -रहस्य

'शिवलिंग -रहस्य ''
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प्रश्न- क्या शिवपुराण वर्णित शिवलिंग अश्लीलता है ?

उत्तर- 'सर्गश्च प्रति सर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च । वंशानुचरितं चैव पुराणं पञ्च लक्षणम् ।।

यह पुराण का लक्षण कहा गया है | अतः अपने लक्षण के अनुकूल सर्ग (सृष्टिविद्या ) के प्रसंग का

, उनके परस्पर व्यवहारों , आपसी संबंधों का वर्णन करना उचित ही है | शिव पुराण में वर्णित

भगवान शिव सृष्टि की उत्पादिका शक्ति हैं , न की कोई मनुष्य | उनके सच्चिदानन्दमय

श्रीविग्रह को मानव शरीर के अनुरूप अनुमान करना सर्वथा गलत है | अतः उनके अलौकिक

चिन्मय लिंगादि प्रभृत दिव्य अंगो की सृष्टि निर्माण में भूमिका, अचिन्त्य प्रभाव, अप्रतिम

लीला-विलासों का वर्णन अत्यंत गूढ़ सृष्टि विद्या है | जलचर, थलचर , नभचर यहां तक कि

स्थावर वृक्षादि प्रभृत भी सृष्टि का कोई भी प्राणी हो , वह लौकिक माता-पिता की भूमिका में

कामजन्य सम्भोग के माध्यम से संतानोत्पत्ति जैसे बिना तत्तद्विशिष्ट लिंग-योनि के (भले

बाहरी रूप भिन्न हो ) संभव नही , यानी जनक और संवाहक की भूमिका सर्वत्र है वैसे ही

सृष्ट्योत्पादन करते हुए प्रजा का विस्तार भी बिना दिव्य लिंग- योनि के सर्वथा असंभव है |

इसीलिये ब्रह्म संहिता कहती है-

लिंगयोन्यात्मिकाजाता इमा माहेश्वरी प्रजा |

ख़ास बात ये है कि मानव शरीर के मांस -चरम से निर्मित लिंग -योनि रूप अंगों का अन्य

शरीरांगों से स्वगतभेद होता है किन्तु सजातीय, विजातीय और स्वगत - त्रिविधभेदशून्य होने के

कारण सच्चिदानन्दमय अलौकिक लिंग साक्षात विशुद्ध परमात्मतत्व है |

<पारमार्थिकतया शिवलिंग और शिव में अंगांगिभावसम्बन्ध नहीं अपितु पूर्णतः
अद्वैत स्थिति है >

इसलिए श्री लिंगभगवान को ब्रह्ममुरारिसुरार्चित माना गया है अर्थात् ब्रह्मा

, विष्णु से लेकर सारे देवता लिंग भगवान का ध्यान करते हैं| महामूर्ख लोग शिव लिंग की तुलना

मांस-चर्म के मानवीय लिंगों की भांति करके अलौकिक परमात्मा का अपराध कर बैठते हैं |

अब थोड़ा खडी बोली में कहें तो-

भगवान का शरीर भी भगवान ही है , हाथ भी उतना ही पूर्ण भगवान ही है , नाक , कान,गला, बाल

, लिंग , गुदा , पीठ, पेट सब पूर्ण भगवान ही है, जब ऐसा आश्चर्यमय भगवत्तत्व है तभी तो

वो ""भगवान"" हैं , जिनका पार बड़े-बड़े ऋषि -मुनि, देवता यहाँ तक कि स्वयं वेद भी नहीं पा पाते

हैं | इसलिए वेद बारबार कहते हैं कि हे मनुष्यों भगवान को जानने की जिज्ञासा करो ! उनकी कृपा

पाने के लिए उनका भजन करो !तब तुम उनको किंचित समझ पाओगे !


............. शिव पुराण के सृष्टि विद्या प्रकरणों में अश्लीलता देखने वाले किसी मूर्ख आर्य

समाजी को कदाचित् सौभाग्य से कुछ पढ़ने -लिखने का मौक़ा मिल जाए तो वो बायोलॉजी

(जीव-विज्ञान ) की किताब के साथ न जाने क्या न्याय कर बठेगा ? 

धर्म की जय हो !

अधर्म का नाश हो !

जय शिव शंकर |