'शिवलिंग -रहस्य ''
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प्रश्न- क्या शिवपुराण वर्णित शिवलिंग अश्लीलता है ?
उत्तर- 'सर्गश्च प्रति सर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च । वंशानुचरितं चैव पुराणं पञ्च लक्षणम् ।।
यह पुराण का लक्षण कहा गया है | अतः अपने लक्षण के अनुकूल सर्ग (सृष्टिविद्या ) के प्रसंग का
, उनके परस्पर व्यवहारों , आपसी संबंधों का वर्णन करना उचित ही है | शिव पुराण में वर्णित
भगवान शिव सृष्टि की उत्पादिका शक्ति हैं , न की कोई मनुष्य | उनके सच्चिदानन्दमय
श्रीविग्रह को मानव शरीर के अनुरूप अनुमान करना सर्वथा गलत है | अतः उनके अलौकिक
चिन्मय लिंगादि प्रभृत दिव्य अंगो की सृष्टि निर्माण में भूमिका, अचिन्त्य प्रभाव, अप्रतिम
लीला-विलासों का वर्णन अत्यंत गूढ़ सृष्टि विद्या है | जलचर, थलचर , नभचर यहां तक कि
स्थावर वृक्षादि प्रभृत भी सृष्टि का कोई भी प्राणी हो , वह लौकिक माता-पिता की भूमिका में
कामजन्य सम्भोग के माध्यम से संतानोत्पत्ति जैसे बिना तत्तद्विशिष्ट लिंग-योनि के (भले
बाहरी रूप भिन्न हो ) संभव नही , यानी जनक और संवाहक की भूमिका सर्वत्र है वैसे ही
सृष्ट्योत्पादन करते हुए प्रजा का विस्तार भी बिना दिव्य लिंग- योनि के सर्वथा असंभव है |
इसीलिये ब्रह्म संहिता कहती है-
लिंगयोन्यात्मिकाजाता इमा माहेश्वरी प्रजा |
ख़ास बात ये है कि मानव शरीर के मांस -चरम से निर्मित लिंग -योनि रूप अंगों का अन्य
शरीरांगों से स्वगतभेद होता है किन्तु सजातीय, विजातीय और स्वगत - त्रिविधभेदशून्य होने के
कारण सच्चिदानन्दमय अलौकिक लिंग साक्षात विशुद्ध परमात्मतत्व है |
<पारमार्थिकतया शिवलिंग और शिव में अंगांगिभावसम्बन्ध नहीं अपितु पूर्णतः
अद्वैत स्थिति है >
इसलिए श्री लिंगभगवान को ब्रह्ममुरारिसुरार्चित माना गया है अर्थात् ब्रह्मा
, विष्णु से लेकर सारे देवता लिंग भगवान का ध्यान करते हैं| महामूर्ख लोग शिव लिंग की तुलना
मांस-चर्म के मानवीय लिंगों की भांति करके अलौकिक परमात्मा का अपराध कर बैठते हैं |
अब थोड़ा खडी बोली में कहें तो-
भगवान का शरीर भी भगवान ही है , हाथ भी उतना ही पूर्ण भगवान ही है , नाक , कान,गला, बाल
, लिंग , गुदा , पीठ, पेट सब पूर्ण भगवान ही है, जब ऐसा आश्चर्यमय भगवत्तत्व है तभी तो
वो ""भगवान"" हैं , जिनका पार बड़े-बड़े ऋषि -मुनि, देवता यहाँ तक कि स्वयं वेद भी नहीं पा पाते
हैं | इसलिए वेद बारबार कहते हैं कि हे मनुष्यों भगवान को जानने की जिज्ञासा करो ! उनकी कृपा
पाने के लिए उनका भजन करो !तब तुम उनको किंचित समझ पाओगे !
............. शिव पुराण के सृष्टि विद्या प्रकरणों में अश्लीलता देखने वाले किसी मूर्ख आर्य
समाजी को कदाचित् सौभाग्य से कुछ पढ़ने -लिखने का मौक़ा मिल जाए तो वो बायोलॉजी
(जीव-विज्ञान ) की किताब के साथ न जाने क्या न्याय कर बठेगा ?
धर्म की जय हो !
अधर्म का नाश हो !
जय शिव शंकर |
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प्रश्न- क्या शिवपुराण वर्णित शिवलिंग अश्लीलता है ?
उत्तर- 'सर्गश्च प्रति सर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च । वंशानुचरितं चैव पुराणं पञ्च लक्षणम् ।।
यह पुराण का लक्षण कहा गया है | अतः अपने लक्षण के अनुकूल सर्ग (सृष्टिविद्या ) के प्रसंग का
, उनके परस्पर व्यवहारों , आपसी संबंधों का वर्णन करना उचित ही है | शिव पुराण में वर्णित
भगवान शिव सृष्टि की उत्पादिका शक्ति हैं , न की कोई मनुष्य | उनके सच्चिदानन्दमय
श्रीविग्रह को मानव शरीर के अनुरूप अनुमान करना सर्वथा गलत है | अतः उनके अलौकिक
चिन्मय लिंगादि प्रभृत दिव्य अंगो की सृष्टि निर्माण में भूमिका, अचिन्त्य प्रभाव, अप्रतिम
लीला-विलासों का वर्णन अत्यंत गूढ़ सृष्टि विद्या है | जलचर, थलचर , नभचर यहां तक कि
स्थावर वृक्षादि प्रभृत भी सृष्टि का कोई भी प्राणी हो , वह लौकिक माता-पिता की भूमिका में
कामजन्य सम्भोग के माध्यम से संतानोत्पत्ति जैसे बिना तत्तद्विशिष्ट लिंग-योनि के (भले
बाहरी रूप भिन्न हो ) संभव नही , यानी जनक और संवाहक की भूमिका सर्वत्र है वैसे ही
सृष्ट्योत्पादन करते हुए प्रजा का विस्तार भी बिना दिव्य लिंग- योनि के सर्वथा असंभव है |
इसीलिये ब्रह्म संहिता कहती है-
लिंगयोन्यात्मिकाजाता इमा माहेश्वरी प्रजा |
ख़ास बात ये है कि मानव शरीर के मांस -चरम से निर्मित लिंग -योनि रूप अंगों का अन्य
शरीरांगों से स्वगतभेद होता है किन्तु सजातीय, विजातीय और स्वगत - त्रिविधभेदशून्य होने के
कारण सच्चिदानन्दमय अलौकिक लिंग साक्षात विशुद्ध परमात्मतत्व है |
<पारमार्थिकतया शिवलिंग और शिव में अंगांगिभावसम्बन्ध नहीं अपितु पूर्णतः
अद्वैत स्थिति है >
इसलिए श्री लिंगभगवान को ब्रह्ममुरारिसुरार्चित माना गया है अर्थात् ब्रह्मा
, विष्णु से लेकर सारे देवता लिंग भगवान का ध्यान करते हैं| महामूर्ख लोग शिव लिंग की तुलना
मांस-चर्म के मानवीय लिंगों की भांति करके अलौकिक परमात्मा का अपराध कर बैठते हैं |
अब थोड़ा खडी बोली में कहें तो-
भगवान का शरीर भी भगवान ही है , हाथ भी उतना ही पूर्ण भगवान ही है , नाक , कान,गला, बाल
, लिंग , गुदा , पीठ, पेट सब पूर्ण भगवान ही है, जब ऐसा आश्चर्यमय भगवत्तत्व है तभी तो
वो ""भगवान"" हैं , जिनका पार बड़े-बड़े ऋषि -मुनि, देवता यहाँ तक कि स्वयं वेद भी नहीं पा पाते
हैं | इसलिए वेद बारबार कहते हैं कि हे मनुष्यों भगवान को जानने की जिज्ञासा करो ! उनकी कृपा
पाने के लिए उनका भजन करो !तब तुम उनको किंचित समझ पाओगे !
............. शिव पुराण के सृष्टि विद्या प्रकरणों में अश्लीलता देखने वाले किसी मूर्ख आर्य
समाजी को कदाचित् सौभाग्य से कुछ पढ़ने -लिखने का मौक़ा मिल जाए तो वो बायोलॉजी
(जीव-विज्ञान ) की किताब के साथ न जाने क्या न्याय कर बठेगा ?
धर्म की जय हो !
अधर्म का नाश हो !
जय शिव शंकर |
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