Tuesday, March 25, 2014

वेद पुस्तक नहीं

वेद को पुस्तक का दर्जा देकर दयानंद प्रभृत कतिपय सनातन धर्म विरोधी आक्षेपकारों ने वेदों की मर्यादा एवं इनके महत्त्व को भुलाकर इनके अपार गौरव को आहत करने की कुचेष्टा की है | जिनके नव्यमतावलम्बी कतिपय छद्म उदारवादि अनुयायियों ने वैदिक संस्कृति की मर्यादाओं को तार- तार करते हुए अपनी ईर्ष्या को लोकप्रियता में परिवर्तित करने के लिए स्त्री , शूद्र , द्विजेबंधुओं के साथ -साथ वर्णसंकरों , कुलगोत्रादिपारम्पर्यत्वविहीन म्लेच्छों तक को वेद का अधिकारी घोषित करने का जो कुकृत्य किया है , उस कुकृत्य ने हमारे सनातन (हिन्दू ) धर्म की नयी पीढी के अंतःकरण में " रूढ़िवादी नियमों की जंजीरों में बंधा तथाकथित सनातन (हिन्दू ) धर्म वर्गविशेष की साजिशों का परिणाम है" ; इस आधारहीन मानसिकता को जन्म दिया है जिससे वर्णाश्रम लक्षण वाले हमारे वैदिक धर्म को अपार क्षति हुई | स्थिति ये है कि आज हमारा हिन्दू समाज वेदों के मौलिक स्वरूप एवं इसकी मर्यादाओं से काफी दूर आ चुका है और आये दिन एक नया ज्ञानलवदुर्विदग्ध हमारी प्राचीन संस्कृति की अजस्र परम्पराओं को कटघरे में खडा कर स्वय को प्रखर प्रज्ञा संपन्न , धर्मवेत्ता और पंडित मानता हुआ सनातन (हिन्दू) धर्म को धूमिल करने में ही अपने को स्वनामधन्य समझता है | ऐसी विकृत मानसिकता के विरुद्ध हम सभी विशुद्ध हिन्दुत्ववादी ऋषि-संतानों को एकजुट होकर प्रखर विरोध का शंखनाद करते हुए इनको हमारी सांस्कृतिक अस्मिता और हमारे स्वाभिमान का स्वरूप दर्शन कराते हुए इनका दिमाग ठिकाने पर लाना होगा || |

| जय श्री राम ||

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