Wednesday, December 26, 2012

श्रीमद भागवद महापुराण में दत्तात्रेय द्वारा गुरु महिमा


श्रीमद भागवद महापुराण में दत्तात्रेय द्वारा गुरु महिमा

शास्त्रों के अनुसार ईश्वर का ज्ञान स्वरूप व शक्ति गुरु के रूप में पूजनीय है। गुरु से मिला ज्ञान, शिक्षा, सत्य, प्रेरणा व शक्ति ही पूर्ण व कुशल बनाती है। इसलिए गुरु सेवा, भक्ति या स्मरण मात्र से उत्पन्न बुद्धि और विवेक जीवन की सम्पूर्ण कठिनाईयों से उबारने वाला भी होता है।
हिन्दू धर्म परंपराओं में गुरु व परब्रह्म के विलक्षण स्वरूप में त्याग, तप, ज्ञान व प्रेम की साक्षात् मूर्ति भगवान दत्तात्रेय को माना जाता है। खासतौर भगवान दत्तात्रेय का 24 गुरुओं से शिक्षा ग्रहण करने का पौराणिक प्रसंग जीवन में गुरु की महत्ता को रोचक तरीके से उजागर करता है। क्योंकि ये 24 गुरुओं मात्र इंसान ही नहीं बल्कि पशु, पक्षी व कीट-पतंगे भी शामिल हैं।

1. पृथ्वी- सहनशीलता व परोपकार की भावना।
2. कबूतर – कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे अपने बच्चों को देखकर मोहवश खुद भी जाल में जा फंसता है। सबक लिया कि किसी से भी ज्यादा स्नेह दुःख की वजह होता है।
3. समुद्र- जीवन के उतार-चढ़ाव में खुश व संजीदा रहें।
4. पतंगा- जिस तरह पतंगा आग की तरफ आकर्षित हो जल जाता है। उसी तरह रूप-रंग के आकर्षण व मोह में न उलझें।
5. हाथी - आसक्ति से बचना।
6. छत्ते से शहद निकालने वाला – कुछ भी इकट्ठा करके न रखें, ऐसा करना नुकसान की वजह बन सकता है।
7. हिरण - उछल-कूद, संगीत, मौज-मस्ती में न खोएं।
8. मछली - स्वाद के वशीभूत न रहें यानी इंद्रिय संयम।
9. पिंगला वेश्या - पिंगला नाम की वैश्या से सबक लिया कि केवल पैसों की आस में न जीएं। क्योंकि पैसा पाने के लिए वह पुरुष की राह में दुखी हुई व उम्मीद छोड़ने पर चैन से नींद ली।
10. कुरर पक्षी - चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ना। यानी अकिंचन होना।
11. बालक - चिंतामुक्त व प्रसन्न रहना।
12. कुमारी कन्या – अकेला रह काम करना या आगे बढ़ना। धान कूटते हुए इस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थी। बाहर मेहमान बैठे होने से उसने चूड़ियां तोड़ दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी रखी और बिना शोर के धान कूट लिया।
13. शरकृत या तीर बनाने वाला - अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना।
14. सांप – एकाकी जीवन, एक ही जगह न बसें।
15. मकड़ी – भगवान भी माया जाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं।
16. भृंगी कीड़ा –अच्छी हो या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लगाएंगे मन वैसा ही हो जाता है।
17. सूर्य – जिस तरह एक ही होने पर भी अलग-अलग माध्यमों में सूरज अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक है पर कई रूपों में दिखाई देती है।
18. वायु – अच्छी बुरी जगह पर जाने के बाद वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है। उसी तरह अच्छे-बुरों के साथ करने पर भी अपनी अच्छाइयों को कायम रखें।
19. आकाश – हर देश काल स्थिति में लगाव से दूर रहे।
20. जल – पवित्र रहना।
21. अग्नि – हर टेढ़ी-मेढ़े हालातों में ढल जाएं। जैसे अलग-अलग तरह की लकड़ियों के बीच आग एक जैसी लगती नजर आती है।
22. चन्द्रमा – आत्मा लाभ-हानि से परे है। वैसे ही जैसे कला के घटन-बढ़ने से चंद्रमा की चमक व शीतलता वही रहती है।
23. भौंरा या मधुमक्खी - भौरें से सीखा कि जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले न छोड़ें।
24. अजगर – संतोष, जो मिल जाए उसे स्वीकार कर लेना।

No comments:

Post a Comment