Tuesday, December 18, 2012

दिल्ली में हुए रेप के सम्बन्ध में मेरी राय

दिल्ली में हुए रेप के सम्बन्ध में मेरी राय

मित्रों,

इस दिल हिला देनी घटना को फेसबुक पर बैठकर नहीं महसूस करा जा सकता. बलात्कार सिर्फ युवती की इज्जत को तार-तार नहीं करता बल्कि उसकी पूरी जिंदगी को ऐसा विषैला बना देती है जो उस युवती को न तो जीने देती है और न ही मरने देती है. वह बहन इस घटना के बाद जिंदगी को किस मायने से देखेगी यह अंदाजा लगाना हमारे लिए असंभव है. हम अपने अपने तर्क देकर अपने मन का बोझ हल्का कर लेंगे परन्तु क्या हम इस घटना के कारणों का निवारण करने में अपना सहस दिखायेंगे.

क्या हमारे समाज में हिम्मत है जो इस घटना के कारणों पर निरपेक्ष रूप से केवल विचार ही कर सके?

मै इस घटना को उन पाच छ लडको द्वारा अंजाम होना नहीं मानता बल्कि मेरा मानना है कि हमारा पूरा समाज इसके लिए जिम्मेदार है.

मेरे विचार से इसका प्रमुख कारण समाज का संस्कारविहीन होना व गिरता नैतिक स्तर है. टीवी,मीडिया पर बढ़ता अश्लीलता का प्रचार है. और सबसे महत्वपूर्ण यह कि ये सब बाते जानते हुए भी हमारा चूप रहना. यह जानते हुए भी कि बदलाव खतरनाक है हमने उसे सामाजिक स्वीकृति दी. ना को वैचारिक विरोध किया ना कोई क्रियात्मक. बस चुपचाप सहते रहे और उस बदलाव को हावी होने दिया. ना कभी MTV, FTV, Bigboss, Sunny Leone का विरोध किया.

मित्रों यदि आप उस बदलाव को सही मानते रहे है और यह मानते है कि ज़माने के साथ बदलना जरुरी है, इसलिए हम बदल गए. तो मेरा प्रश्न है कि फिर अब क्यों चिल्ला रहे हो. होने दो रेप.

आज कोई और तो कल आपके घर कि कोई औरत.

जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से होए.

ये तो उस बदलाव का परिणाम है जो हमने स्वीकार कर रखा है. जब विभिन्न टीवी चैनलों पर अश्लील सामग्री दिखायी जाती है तो आप परिवार के साथ उसे देखने में असहज महसूस करते है परन्तु कोई विराध करने कि हिम्मत कि है.

अब सबसे महत्व बात ये कि "आप विरोध क्यों नहीं करते है ?". - क्युकी आप विरोध करना ही नहीं चाहते. आप तो ये सब देखने चाहते है लेकिन अकेले में . कही अपने विरोध किया होता और सरकार या केबल वाले ने चेनल बंद कर दिया होता तो आप उस आनंद से वंचित रह जाते. बड़ा अनर्थ हो जाता.

अगर किसी को ये सीख देनी हो कि "शराब छोड़ दो. शराब पीना गलत है." तो पहले आपको शराब छोडनी पड़ेगी. ऐसे ही, यदि आप बच्चो को संस्कार देना चाहते हो तो पहले आपको संस्कारित होना पड़ेगा. यदि आप संस्कारवान होंगे तो आप समझेगे जीवन में नैतिकता का महत्व समझेंगे. आप इस घटना को एक लड़की पर अत्याचार होना तो देखे ही बल्कि एक लड़के द्वारा एक लड़की पर अत्याचार होना भी देखे. वो लड़के आपके भी हो सकते थे. तब आप क्या करते? आप शायद ये ही कहते कि मेरी नाक क्यों कटवा दी कमीने. पर उससे बड़े कमीने आप है जो आपने उस ऐसे संस्कार नहीं दिए कि वह अपने यह काम करने से अपने को रोकता.

आज समाज को नैतिक शिक्षा कि जरूररत है. संस्कारवान होने की और धार्मिक होने की बहुत जरुरत है. पाश्चात शिक्षा ने हमे बीच का बना के छोड़ दिया. ना हो हम अंग्रेज बने ना हम हिन्दुस्तानी रहे. यह बड़े शर्म कि बात है.

और एक बड़ी महत्वपूर्ण बात - हम कभी अंग्रेजो जैसे नहीं बन सकते क्योंकि हमारे खून में हिन्दूस्तानी अंश है. हम चाहे कितना भी नीच हो जाये कितना भी निचे गीर जाये वापस आ ही जाते है. क्योंकि सत्य कि सत्य के प्रति स्वाभाविक गति होती है. यह बड़ी गहरी बात है.

रही कड़े कानून बनाने कि बात तो उससे कुछ ज्यादा फायदा नहीं होगा. जब तक मूल से काम वासना का नियंत्रण नहीं होगा, ऐसी घटनाये होते रहेंगी. कानून का डर बड़ा सीमित होता है. ऐसी कई घटनाए सामने आती है कि कोई बाप, या भाई अपनी बेटी या बाहन से कुकर्म करता रहा कई सालो तक. बताओ कानून कि पहुच कहा रही. जब तक डर अंदर से नहीं होगा तब तक कुछ नहीं हो सकता. और अंदर से डर केवल धर्म ही देसकता है. इसलिए धार्मिक होने कि जरुरत है.

सार यह है कि - एक प्रकार कि घटनाये समाज के संस्कारहीन व धर्महीन होने का परिणाम है. यदि समाज धार्मिक होगा तो ज्यादा सुखी होगा वानस्पत भौतिकवादी होने से. भौतिकवादी होने का अंतिम परिणाम दू:ख ही है.

धर्मं कि रक्षा करे, यह आपकी रक्षा करेगा.

जय हिंद जय हिन्दू जय श्री राम.

धर्मप्रेमी

पंडित गौरव शर्मा, हरिद्वार


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