Saturday, December 29, 2012


गीता में प्रभु अर्जुन से कहते हैं कि धर्म का आचरण उन्हीं लोगों के साथ किया जाता है जो धर्म का पालन करे , उसके साथ नहीं जो धर्म को मानता ही नहीं है ,ऐसी ही गलती बहुत सालों से हिंदुओं ने की जिसके कारण उनका लगभग सब कुछ चला गया क्यूंकी उनके शत्रु ऐसे थे जो उनके धर्म और उसके नियम को मानते ही नहीं थे , ऐसे में उन अधर्मियों के साथ धर्म का पालन करना मूर्खता ही है !

अगर हिन्दू ही अपने धर्म ग्रन्थों में काही गई बात को नहीं समझेंगे तो कौन उन्हें बचा सकता है !
गीता में प्रभु अर्जुन से कहते हैं कि धर्म का आचरण उन्हीं लोगों के साथ किया जाता है जो धर्म का पालन करे , उसके साथ नहीं जो धर्म को मानता ही नहीं है ,ऐसी ही गलती बहुत सालों से हिंदुओं ने की जिसके कारण उनका लगभग सब कुछ चला गया क्यूंकी उनके शत्रु ऐसे थे जो उनके धर्म और उसके नियम को मानते ही नहीं थे , ऐसे में उन अधर्मियों के साथ धर्म का पालन करना मूर्खता ही है !
अगर हिन्दू ही अपने धर्म ग्रन्थों में काही गई बात को नहीं समझेंगे तो कौन उन्हें बचा सकता है !

Friday, December 28, 2012


कर्मों को तीन वर्गों में समझा जाता है, जिनको कि हम बैंक के account के रूप में समझ सकते हैं -

च) सञ्चित - यह एक savings account की तरह होता है, जिसमें कि जन्म-जन्मान्तरों से किए गये हमारे कर्म जुड़ते जाते हैं - पुण्य positive account balance में और पाप negative account balance में ।

छ) प्रारब्ध - सञ्चित में से जो कर्म इस जन्म में फलित होने वाले हैं, गर्भाधान होते ही, वे इस current account में transfer हो जाते हैं । जैसे जैसे फल मिलता जाता है, वैसे वैसे कर्माशय debit होकर, current account balance कम हो जाता है ।

ज) क्रियमाण - इस जन्म में जो हम कर्म करते जा रहे हैं, उनके कर्माशय इसमें जुड़ते जाते हैं । इनमें से कुछ कर्म इसी जन्म में फल देंगे । वे प्रारब्ध में transfer हो जाते हैं । जो अन्य जन्मों में फल देंगे, वे मृत्यु के बाद सञ्चित कर्मों में जुड़ जायेंगे ।
कर्मों को तीन वर्गों में समझा जाता है, जिनको कि हम बैंक के account के रूप में समझ सकते हैं -

च) सञ्चित - यह एक savings account की तरह होता है, जिसमें कि जन्म-जन्मान्तरों से किए गये हमारे कर्म जुड़ते जाते हैं - पुण्य positive account balance में और पाप negative account balance में । 

छ) प्रारब्ध - सञ्चित में से जो कर्म इस जन्म में फलित होने वाले हैं, गर्भाधान होते ही, वे इस current account में transfer हो जाते हैं । जैसे जैसे फल मिलता जाता है, वैसे वैसे कर्माशय debit होकर, current account balance कम हो जाता है । 

ज) क्रियमाण - इस जन्म में जो हम कर्म करते जा रहे हैं, उनके कर्माशय इसमें जुड़ते जाते हैं । इनमें से कुछ कर्म इसी जन्म में फल देंगे । वे प्रारब्ध में transfer हो जाते हैं । जो अन्य जन्मों में फल देंगे, वे मृत्यु के बाद सञ्चित कर्मों में जुड़ जायेंगे ।

Thursday, December 27, 2012


माया क्या है?

 भ्रम| जो दिख रहा है, वह सत्य लगता है, यह भ्रम है| शरीर ही सबकुछ है, भ्रम है| नष्ट हो जाने वाली वस्तुएं शाश्वत हैं, भ्रम है| मकान-जायदाद, मेरी-तेरी, भ्रम है| रिश्ते-नाते सत्य हैं, भ्रम है... यही माया है| मैं, मेरा, तेरा, तुम्हारा| और जो व्यक्ति इससे अलग होकर स्वयं को देखता है, उसका भ्रम तो मिटता है, लेकिन वह सत्य के नजदीक पहुंच जाता है, और सत्य वह है जो श्रीकृष्ण कहते हैं - जो मुझसे अलग है, मुझसे भिन्न है, वही माया है... और जो मुझमें रमा है, मुझसे जुड़ा है, मुझे ही हर ओर देखता है, मुझे ही महसूस करता है, वह माया से अलग रहता है... उसे माया स्पर्श नहीं कर सकती|

माया का अर्थ ही अज्ञान है| और यह अज्ञान कब शुरू हुआ, इसे जानने की जरूरत नहीं| माया जीव से कब जुड़ी यह भी जानने की जरूरत नहीं, लेकिन अज्ञान और माया को मिटाने के ज्ञान की जरूरत है, और ये दोनों तभी मिट सकते हैं, जब व्यक्ति परमात्मा से जुड़ता है| माया, इस शरीर रूपी कपड़ों पर एक दाग है| यह जानने का कोई लाभ नहीं कि यह दाग कहां से लगा, कैसे लगा, क्यों लगा... जो लगना था, लग गया, अब तो इसे मिटाने की जरूरत है कि पहला दाग मिटे और दूसरा दाग न लगे| माया क्या है? मैं, में आदमी क्यों उलझ जाता है, यह सोचने के बजाय, इससे रहित होना चाहिए और 'मैं' से रहित होने के लिए गुरु और की शरण लेनी चाहिए| श्रीकृष्ण ने अपने जन्म से पहले ही माता देवकी को अपने दिव्य स्वरूप के दर्शन करा दिए थे| मां हैरान थी कि ऐसा दिव्य स्वरूप उसके बालक के रूप में जन्म लेगा, उसका बेटा बनेगा... लेकिन श्रीकृष्ण ने तभी कह दिया था... मां मेरा यह दिव्य स्वरूप तुम्हें याद नहीं रहेगा... इसकी लेशमात्र भी स्मृति नहीं रहेगी| क्योंकि यदि तुम्हें मेरा यही रूप नजर आता रहा, तो तुम मुझमें रमी रहोगी और मैं वे काम नहीं कर सकूंगा, जो मैं करने के लिए आ रहा हूं... और मां माया में उलझ गई... भगवान का दिव्य स्वरूप भूल गई| सारी उम्र भूली रही... उसी दिव्य स्वरूप को वह अपना बेटा समझने लगी... और उसी की सुरक्षा की चिंता करने लगी... उसकी चिंता, जो सबकी चिंता दूर करते हैं... यही माया है|

सुदामा ने एक बार श्रीकृष्ण ने पूछा, "कान्हा, मैं आपकी माया के दर्शन करना चाहता हूं... कैसी होती है?" श्रीकृष्ण ने टालना चाहा, लेकिन सुदामा की जिद पर श्रीकृष्ण ने कहा, "अच्छा, कभी वक्त आएगा तो बताऊंगा|"

और फिर एक दिन कहने लगे... सुदामा, आओ, गोमती में स्नान करने चलें| दोनों गोमती के तट पर गए| वस्त्र उतारे| दोनों नदी में उतरे... श्रीकृष्ण स्नान करके तट पर लौट आए| पीतांबर पहनने लगे... सुदामा ने देखा, कृष्ण तो तट पर चला गया है, मैं एक डुबकी और लगा लेता हूं... और जैसे ही सुदामा ने डुबकी लगाई... भगवान ने उसे अपनी माया का दर्शन कर दिया| सुदामा को लगा, गोमती में बाढ़ आ गई है, वह बहे जा रहे हैं, सुदामा जैसे-तैसे तक घाट के किनारे रुके| घाट पर चढ़े| घूमने लगे| घूमते-घूमते गांव के पास आए| वहां एक हथिनी ने उनके गले में फूल माला पहनाई| सुदामा हैरान हुए| लोग इकट्ठे हो गए| लोगों ने कहा, "हमारे देश के राजा की मृत्यु हो गई है| हमारा नियम है, राजा की मृत्यु के बाद हथिनी, जिस भी व्यक्ति के गले में माला पहना दे, वही हमारा राजा होता है| हथिनी ने आपके गले में माला पहनाई है, इसलिए अब आप हमारे राजा हैं|" सुदामा हैरान हुआ| राजा बन गया| एक राजकन्या के साथ उसका विवाह भी हो गया| दो पुत्र भी पैदा हो गए| एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार पड़ गई... आखिर मर गई... सुदामा दुख से रोने लगा... उसकी पत्नी जो मर गई थी, जिसे वह बहुत चाहता था, सुंदर थी, सुशील थी... लोग इकट्ठे हो गए... उन्होंने सुदामा को कहा, आप रोएं नहीं, आप हमारे राजा हैं... लेकिन रानी जहां गई है, वहीं आपको भी जाना है, यह मायापुरी का नियम है| आपकी पत्नी को चिता में अग्नि दी जाएगी... आपको भी अपनी पत्नी की चिता में प्रवेश करना होगा... आपको भी अपनी पत्नी के साथ जाना होगा|

सुना, तो सुदामा की सांस रुक गई... हाथ-पांव फुल गए... अब मुझे भी मरना होगा... मेरी पत्नी की मौत हुई है, मेरी तो नहीं... भला मैं क्यों मरूं... यह कैसा नियम है? सुदामा अपनी पत्नी की मृत्यु को भूल गया... उसका रोना भी बंद हो गया| अब वह स्वयं की चिंता में डूब गया... कहा भी, 'भई, मैं तो मायापुरी का वासी नहीं हूं... मुझ पर आपकी नगरी का कानून लागू नहीं होता... मुझे क्यों जलना होगा|' लोग नहीं माने, कहा, 'अपनी पत्नी के साथ आपको भी चिता में जलना होगा... मरना होगा... यह यहां का नियम है|' आखिर सुदामा ने कहा, 'अच्छा भई, चिता में जलने से पहले मुझे स्नान तो कर लेने दो...' लोग माने नहीं... फिर उन्होंने हथियारबंद लोगों की ड्यूटी लगा दी... सुदामा को स्नान करने दो... देखना कहीं भाग न जाए... रह-रह कर सुदामा रो उठता|

सुदामा इतना डर गया कि उसके हाथ-पैर कांपने लगे... वह नदी में उतरा... डुबकी लगाई... और फिर जैसे ही बाहर निकला... उसने देखा, मायानगरी कहीं भी नहीं, किनारे पर तो कृष्ण अभी अपना पीतांबर ही पहन रहे थे... और वह एक दुनिया घूम आया है| मौत के मुंह से बचकर निकला है... सुदामा नदी से बाहर आया... सुदामा रोए जा रहा था| श्रीकृष्ण हैरान हुए... सबकुछ जानते थे... फिर भी अनजान बनते हुए पूछा, "सुदामा तुम रो क्यों रो रहे हो?"

सुदामा ने कहा, "कृष्ण मैंने जो देखा है, वह सच था या यह जो मैं देख रहा हूं|" श्रीकृष्ण मुस्कराए, कहा, "जो देखा, भोगा वह सच नहीं था| भ्रम था... स्वप्न था... माया थी मेरी और जो तुम अब मुझे देख रहे हो... यही सच है... मैं ही सच हूं... मेरे से भिन्न, जो भी है, वह मेरी माया ही है| और जो मुझे ही सर्वत्र देखता है, महसूस करता है, उसे मेरी माया स्पर्श नहीं करती| माया स्वयं का विस्मरण है... माया अज्ञान है, माया परमात्मा से भिन्न... माया नर्तकी है... नाचती है... नाचती है... लेकिन जो श्रीकृष्ण से जुड़ा है, वह नाचता नहीं... भ्रमित नहीं होता... माया से निर्लेप रहता है, वह जान जाता है, सुदामा भी जान गया था... जो जान गया वह श्रीकृष्ण से अलग कैसे रह सकता है?

श्रीकृष्ण मुस्कराए, कहा,

"जो देखा, भोगा वह सच नहीं था| भ्रम था... स्वप्न था... माया थी मेरी और जो तुम अब मुझे देख रहे हो... यही सच है... मैं ही सच हूं... मेरे से भिन्न, जो भी है, वह मेरी माया ही है| और जो मुझे ही सर्वत्र देखता है, महसूस करता है, उसे मेरी माया स्पर्श नहीं करती| माया स्वयं का विस्मरण है... माया अज्ञान है, माया परमात्मा से भिन्न... माया नर्तकी है... नाचती है... नाचती है... लेकिन जो श्रीकृष्ण से जुड़ा है, वह नाचता नहीं... भ्रमित नहीं होता... माया से निर्लेप रहता है, वह जान जाता है, सुदामा भी जान गया था... जो जान गया वह श्रीकृष्ण से अलग कैसे रह सकता है?

अक्सर हम सुनते हैं कि वो मोह-माया में फंसा है। ये संसार तो एक माया है। सब भगवान की माया है। लेकिन यह समझना कठिन है कि ये माया होती क्या है? क्या अर्थ होता है माया का? क्या यह कोई देवी हैं, या फिर भगवान की कोई अवतार। शा

स्त्रों में माया के बारे में बहुत विवरण मिलता है।सही मायनों में माया को समझना बहुत कठिन है, संसार में क्या माया है और क्या हकीकत, इसमें भेद करना आम आदमी के लिए मुश्किल है। माया शब्द संस्कृत के दो शब्दों मा और या से मिलकर बना है।

मा का अर्थ होता है नहीं है और या का अर्थ होता है जो। इस तरह माया का अर्थ है जो वस्तु नहीं है। इस दुनिया में जो भी चीज अस्थायी या काल्पनिक है उसे माया कहा जाता है। शास्त्रों में इस संसार को माया माना गया है क्योंकि यह स्थायी नहीं है। जब तक हम जीवित हैं, इसमें सुख से रह सकते हैं लेकिन यह कब खत्म हो जाएगा हमारे लिए इसका कोई भरोसा नहीं है।

ग्रंथों ने केवल परमात्मा और आत्मा को ही स्थायी माना है। इसके अतिरिक्त सारी चीजें अस्थायी मानी गई हंै। माया का अर्थ है कि ये चीजें एक दिन हमसे छूट जानी है, लेकिन परमात्मा कभी नहीं छूटेगा, वो स्थायी है।

माया शब्द का प्रयोग एक से अधिक अर्थों में होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि विचार में परिवर्तन के साथ शब्द का अर्थ बदलता गया। जब हम किसी चकित कर देनेवाली घटना को देखते हैं, तो उसे ईश्वर की माया कह देते हैं। यहाँ माया का अर्थ शक्ति है। जादूगर अपनी चतुराई से पदार्थों को विपरीत रूप में दिखाता है, पदार्थों के अभाव में भी उन्हें दिखा देता है। यह उसकी माया है। यहाँ का अर्थ मिथ्या ज्ञान या ऐसे ज्ञान का विषय है। मिथ्या ज्ञान दो प्रकार का है -- भ्रम और मतिभ्रम। भ्रम में ज्ञान का विषय विद्यमान है परंतु वास्तविक रूप में दिखाता नहीं, मतिभ्रम में बाहर कुछ होता ही नही, हम कल्पना को प्रत्यक्ष ज्ञान समझ लेते हैं।

हम में से हर एक कभी न कभी भ्रम या पतिभ्रम का शिकार होता है, कभी द्रष्टा और दृष्ट के दरमियान परदा पड़ जाता है। कभी वातावरण मिथ्या ज्ञान का कारण हो जाता है व्यक्ति की हालत में इसे अविद्या कहते है। माया व्यापक अविद्या है जिसमें सभी मनुष्य फँसे हैं। कुछ विचारक इसे भ्रम के रूप में देखते हैं, कुछ मतिभ्रम के रूप में। पश्चिमी दर्शन में कांट और बर्कले इस भेद को व्यक्त करते हैं।

ज्ञानलाभ के अनुसार आरंभ में हमारा मन कोरी पटिया के समान होता है जिसपर बाहर से निरंतर प्रभाव पड़ते रहते हैं। कांट ने कहा कि ज्ञान की प्राप्ति में मन क्रियाहीन नहीं होता, क्रियाशील होता है। सभी घटनाएँ देश और काल में घटती प्रतीत होती है, परंतु देश और काल कोई बाहरी पदार्थ नहीं, ये मन की गुणग्राही शक्ति की आकृतियाँ हैं। प्रत्येक उपलब्ध को इन दोनों साँचों में से गुजरना पड़ता है। इस क्रम में उनका रंग रूप बदल जाता है। इसका परिणाम यह है कि हम किसी पदार्थ को उसके वास्तविक रूप में नहीं देख सकते, चश्में में से देखते हैं, जिसे हम आरंभ से पहने हैं और जिसे उतार नहीं सकते।

लॉक ने बाह्म पदार्थों के गुणों में प्रधान और अप्रधान का भेद देखा। प्रधान गुण प्राकृतिक पदार्थों में विद्यमान है, परंतु अप्रधान गुण वह प्रभाव है जो बाह्म पदार्थ हमारे मन पर डालते हैं। बर्कले ने कहा कि जो कुछ अप्रधान गुणों के मानवी होने के पक्ष में कहा जाता है, वही प्रधान गुणों के मानवी होने के पक्ष में कहा जा सकता है। पदार्थ गुणसमूह ही है, और सभी गुण मानवी हैं, समस्त सत्ता चेतनों और विचारों से बनी है। हमारे उपलब्ध (Sense Experience) हम पर थोपे या आरोपित किए जाते हैं, परंतु ये प्रकृति के आघात के परिणाम नहीं, ईश्वर की क्रिया के फल हैं।

भारत में मायावाद का प्रसिद्ध विवरण है-- "ब्रह्म सत्यम, जगत्‌ मिथ्या"। इस व्यवस्था में जीवात्मा का स्थान कहाँ है? यह भी जगत्‌ का अंश है, ज्ञाता नहीं, आप आभास है। ब्रह्म माया से आप्त होता है और अपने शुद्ध स्वरूप को छोड़कर ईश्वर बन जाता है। ईश्वर, जीव और बाह्म पदार्थ, प्राप्त ब्रह्म के ही तीन प्रकाशन हैं। ब्रह्म के अतिरिक्त तो कुछ ही नहीं, यह सारा खेल होता क्यों है? एक विचार के अनुसार मायावी अपनी दिल्लगी के लिये खेल खेलता है, दूसरे विचार के अनुसार माया एक परदा है जो शुद्ध ब्रह्म को ढक देती है।

पहले विचार के अनुसार माया ब्रह्म की शक्ति है, दूसरे के अनुसार उसकी अशक्ति की प्रतीक है। सामान्य विचार के अनुसार मायावाद का सिद्धांत उपनिषदों, ब्रह्मसूत्रों और भगवद गीता में प्रतिपादित है। इसका प्रसार प्रमुख रूप से शंकराचार्य ने किया। उपनिषदों में मायावाद का स्पष्ट वर्णन नहीं, माया शब्द भी एक दो बार ही प्रयुक्त हुआ है। ब्रह्मसूत्रों में शंकर ने अद्वैत को देखा, रामानुज ने इसे नहीं देखा, और बहुतेरे विचारकों के लिये रामानुज की व्याख्या अधिक विश्वास करने के योग्य है। भगवद्गीता दार्शनिक कविता है, दर्शन नहीं। शंकर की स्थिति प्राय: भाष्यकार की है। मायावाद के समर्थन में गौड़पाद की कारिकाओं का स्थान विशेष महत्व का है, इसपर कुछ विचार करें।

गौड़पाद कारिकाओं के आरंभ में ही कहता है।

स्वप्न में जो कुछ दिखाई देता है, वह शरीर के अंदर ही स्थित होता है, वहाँ उसके लिये पर्याप्त स्थान नहीं। स्वप्न देखनेवाला स्वप्न में दूर के स्थानों में जाकर दृश्य देखता है, परंतु जो काल इसमें लगता है वह उन स्थानों में पहुँचने के लिये पर्याप्त नहीं और जागने पर वह वहाँ विद्यमान नहीं होता।

देश के संकोच के कारण हमें मानना पड़ता है कि स्वप्न में देखे हुए पदार्थ वस्तुगत अस्तित्व नहीं रखते, काल का संकोच भी बताता है कि स्वप्न के दृश्य वास्तविक नहीं। इसके बाद गौडपाद कहता है कि स्वप्न और जागृत अवस्थाओं में कोई भेद नहीं, दानों एक समान अस्थिर हैं। वर्तमान प्रतीति से पूर्व का अभाव स्वीकृत है, इसके पीछेश् आने वाले अनुभव का भाव अभी हुआ नहीं; जो आदि और अंत में नहीं है, वह वर्तमान में भी वैसा ही है "जिस प्रकार स्वप्न और माया देखे जाते हैं, जैसे गंधर्वनगर दिखता है, उसी तरह पंडितों ने वेदांत में इस जगत्‌ को देखा है।'

गौड़पाद के तर्क में दो भाग हैं--

स्वप्न के दृश्य मिथ्या हैं, क्योंकि उनके लिये पर्याप्त देश और काल विद्यमान नहीं।

स्वप्न तथा जागरण अवस्थाओं में मौलिक भेद नहीं स्वप्न में देश और काल को अपर्याप्त कहने में गौड़पाद जागरण के अनुभव को मापक और कसौटी मान रहा है। उसकी यह प्रतिज्ञा कि स्वप्न और जागरण में कोई मौलिक भेद नहीं, इस से खंडित हो जाती है।

जागरण और स्वप्न में कई मौलिक भेद हैं--

जागरण का अनुभव मूल है, स्वप्न का अनुभव उसकी नकल है। जन्म का अंधा स्वप्न में देख नहीं सकता, बहरा सुन नहीं सकता।

स्वप्न में चित्रों का संयोग अनिर्णीत होता है, जागरण में यह निर्णीत भी होता है। स्वप्न कल्पना का खेल है, इसमें बुद्धि काम नहीं करती। स्वप्न रूपक और कल्पना की भाषा का प्रयोग करता है, जागरण में प्रत्ययों की भाषा भी प्रयुक्त होती है।

स्वप्न में प्रत्येक व्यक्ति अपनी निजी दुनिया में विचरता है, जागरण में हम साझी दुनिया मेें रहते हैं। इस दूसरी दुनिया में व्यवस्था प्रमुख है। प्रतिदिन भ्रमण में अनेक पदार्थों को एक ही क्रम में स्थित देखता हूँ, मेरे साथी भी उन्हें उसी क्रम में देखते हैं; दूसरी ओर कोई दो मनुष्य एक ही स्वप्न नहीं देखते, न ही एक मनुष्य के स्वप्न एक दूसरे को दुहराते हैं।

माया –माया का शाब्दिक अर्थ भ्रम है. परन्तु माया भ्रम न होकर भ्रम पैदा करने वाला तत्त्व है. एक वस्तु में दूसरे का भ्रम जैसे रस्सी को सांप समझना. रेगिस्तान में पानी की प्रतीति जिसे मृगमरीचिका भी कहते हैं. यह सृष्टि माया ही है अर्थात इसके कारण ब्रह्म जगत के रूप में दिखाई देता है. यह सत् भी है और असत भी है. व्यवहार में यह सत् जैसी दिखायी देती है परन्तु यथार्थ में असत है. इसे ठीक ठीक शब्द नहीं दिया जा सकता इसलिए इसे अनिर्वचनीय कहा है. यह माया व्यक्त भी है और अव्यक्त भी है. इस माया को जड़, अज्ञान, असत, अविद्या भी कहा है. अज्ञान (माया) को न सत् कह सकते हैं न असत क्योंकि अज्ञान भाव रूप है उसका अस्तित्व है.

अज्ञान को सत् भी नहीं कह सकते क्योंकि इसकी सत्ता यथार्थ नहीं है.इसलिए इसे अनिर्वचनीय कहा है.यह त्रिगुणात्मक-सत्व रज तम रूप है. ज्ञान का विरोधी तत्त्व है. ज्ञान होने पर अज्ञान (माया) नष्ट हो जाता है. यह अज्ञान (माया) ब्रह्म की शक्ति है. माया (विशुद्ध सत्त्व) में प्रतिविम्बित ब्रह्म, ईश्वर कहलाता है और अज्ञान में प्रतिविम्बित ब्रह्म, जीव कहलाता है. अज्ञान को ब्रह्म (विशुद्ध ज्ञान) प्रकाशित करता है. महान उपाधि होने के कारण इसे महत् कहा गया है.

उपनिषद् से माया के उद्धरण -

एक नेमी है त्रिचक्रमय सोलह सर हैं जान अर पचास, हैं बीस सहायक छह अष्टक तू जान विविध रूप से युक्त यह एक पाश से बद्ध तीन मार्ग अरु दो निमित्त मोह चक्र को पश्य.५-१- श्वेताश्वतरोपनिषद्.

त्रिचक्रमय-सत्व,रज,तम से युक्त. सोलह सर-

अहँकार,बुद्धि,मन,आकाश,वायु,अग्नि,जल. पृथ्वी,

प्रत्येक के दो स्वरूप सूक्ष्म और स्थूल.

बीस सहायक-
पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पांच कर्मेन्द्रियाँ,पांच प्राण,पांच विषय.

छह अष्टक (आठ प्रकार की प्रकृति, आठ धातुएं, आठ ऐश्वर्य, आठ भाव. आठ गुण, आठ अशरीरी योनियाँ, तीन मार्ग-ज्ञानमय (शुक्ल)अज्ञानमय (कृष्ण)और परकायाप्रवेश. दो निमित्त-सकाम कर्मऔर स्वाभविक कर्म.कुलयोग –पचास. इन्हें पचास अर कहा है.

जिन्हें अविद्या व्याप्त है विद्या मूढ तू जान नाना योनी भटकते अंध अंध दे ज्ञान.५-२-कठ उपनिषद्.

यह अद्भुत तीन गुणों से युक्त अविद्या परमात्मा की शक्ति है जिससे यह सारा जगत उत्पन्न हुआ है. इसके कार्य से ही इसका अनुमान हो पाता है. ब्रह्म से उत्पन्न यह ब्रह्म को आच्छादित किये है.यह ब्रह्म ज्ञान से नष्ट होती है.

माया(अज्ञान) की दो शक्तियां हैं.

१.आवरण २. विक्षेप

आवरण का अर्थ है पर्दा , जो दृष्टि में अवरोधक बन जाय. जिसके कारण वास्तविकता नहीं दिखायी दे. जैसे बादल का एक टुकड़ा पृथ्वी से कई गुने बड़े सूर्य को ढक लेता है उसी प्रकार माया की आवरण शक्ति सीमित होते हुए भी परम आत्मा के ज्ञान हेतु अवरोधक बन जाती है. परमात्म को जानने वाली बुद्धि है, अज्ञान का आवरण बुद्धि और आत्मतत्त्व के बीच आ जाता है. विक्षेप शक्ति - माया की यह शक्ति भ्रम पैदा करती है. यह विज्ञानमय कोश में स्थित रहती है. आत्मा की अति निकटता के कारण यह अति प्रकाशमय है. इससे ही संसार के सरे व्यवहार होते हैं. जीवन की सभी अवस्थाएं, संवेदनाएं इसी विज्ञानमय कोश अथवा विक्षेप शक्ति के कारण हैं.यह चैतन्य की प्रतिविम्बित शक्ति चेतना है. यह विक्षेप शक्ति सूक्ष्म शरीर से लेकर ब्रह्मांड तक संसार की रचना करती है.


द्वारा Gauri Rai .

*** परमहंस का जवाब ***

रामकृष्ण परमहंस को दक्षिणेश्वर में पुजारी की नौकरी मिली। बीस रुपये वेतन तय किया गया जो उस समय के लिए पर्याप्त था। लेकिन पंद्रह दिन ही बीते थे कि मंदिर कमेटी के सामने उनकी पेशी हो गई और कैफियत देने के लिए कहा गया। दरअसल एक के बाद एक अनेक शिकायतें उनके विरुद्ध कमेटी तक पहुंची थीं। किसी ने कहा कि यह कैसा पुजारी है जो खुद चखकर भगवान को भोग लगाता है। फूल सूंघ कर भगवान के चरणों में अर्पित करता है। पूजा के इस ढंग पर कमेटी के सदस्यों को बहुत आश्चर्य हुआ था। जब रामकृष्ण उनके पास पहुंचे तो एक सदस्य ने पूछा-यह कहां तक सच है कि तुम फूल सूंघ कर देवता पर चढ़ाते हो? रामकृष्ण परमहंस ने सहज भाव से जवाब दिया- मैं बिना सूंघे भगवान पर फूल क्यों चढ़ाऊं? पहले देख लेता हूं कि उस फूल से कुछ सुगंध भी आ रही है या नहीं? फिर दूसरी शिकायत रखी गई- सुनने में आया है कि भगवान को भोग लगाने से पहले खुद अपना भोग लगा लेते हो? रामकृष्ण ने फिर उसी भाव से जवाब दिया- मैं अपना भोग तो नहीं लगाता पर मुझे अपनी मां की याद है कि वे भी ऐसा ही करती थीं। जब कोई चीज बनाती थीं तो चख कर देख लेती थीं और तब मुझे खाने को देती थीं। मैं भी चखकर देखता हूं। पता नहीं जो चीज किसी भक्त ने भोग के लिए लाकर रखी है या मैंने बनाई है वह भगवान को देने योग्य है या नहीं। यह सुनकर कमेटी के सदस्य निरुत्तर हो गए।

Wednesday, December 26, 2012

श्रीमद भागवद महापुराण में दत्तात्रेय द्वारा गुरु महिमा


श्रीमद भागवद महापुराण में दत्तात्रेय द्वारा गुरु महिमा

शास्त्रों के अनुसार ईश्वर का ज्ञान स्वरूप व शक्ति गुरु के रूप में पूजनीय है। गुरु से मिला ज्ञान, शिक्षा, सत्य, प्रेरणा व शक्ति ही पूर्ण व कुशल बनाती है। इसलिए गुरु सेवा, भक्ति या स्मरण मात्र से उत्पन्न बुद्धि और विवेक जीवन की सम्पूर्ण कठिनाईयों से उबारने वाला भी होता है।
हिन्दू धर्म परंपराओं में गुरु व परब्रह्म के विलक्षण स्वरूप में त्याग, तप, ज्ञान व प्रेम की साक्षात् मूर्ति भगवान दत्तात्रेय को माना जाता है। खासतौर भगवान दत्तात्रेय का 24 गुरुओं से शिक्षा ग्रहण करने का पौराणिक प्रसंग जीवन में गुरु की महत्ता को रोचक तरीके से उजागर करता है। क्योंकि ये 24 गुरुओं मात्र इंसान ही नहीं बल्कि पशु, पक्षी व कीट-पतंगे भी शामिल हैं।

1. पृथ्वी- सहनशीलता व परोपकार की भावना।
2. कबूतर – कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे अपने बच्चों को देखकर मोहवश खुद भी जाल में जा फंसता है। सबक लिया कि किसी से भी ज्यादा स्नेह दुःख की वजह होता है।
3. समुद्र- जीवन के उतार-चढ़ाव में खुश व संजीदा रहें।
4. पतंगा- जिस तरह पतंगा आग की तरफ आकर्षित हो जल जाता है। उसी तरह रूप-रंग के आकर्षण व मोह में न उलझें।
5. हाथी - आसक्ति से बचना।
6. छत्ते से शहद निकालने वाला – कुछ भी इकट्ठा करके न रखें, ऐसा करना नुकसान की वजह बन सकता है।
7. हिरण - उछल-कूद, संगीत, मौज-मस्ती में न खोएं।
8. मछली - स्वाद के वशीभूत न रहें यानी इंद्रिय संयम।
9. पिंगला वेश्या - पिंगला नाम की वैश्या से सबक लिया कि केवल पैसों की आस में न जीएं। क्योंकि पैसा पाने के लिए वह पुरुष की राह में दुखी हुई व उम्मीद छोड़ने पर चैन से नींद ली।
10. कुरर पक्षी - चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ना। यानी अकिंचन होना।
11. बालक - चिंतामुक्त व प्रसन्न रहना।
12. कुमारी कन्या – अकेला रह काम करना या आगे बढ़ना। धान कूटते हुए इस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थी। बाहर मेहमान बैठे होने से उसने चूड़ियां तोड़ दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी रखी और बिना शोर के धान कूट लिया।
13. शरकृत या तीर बनाने वाला - अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना।
14. सांप – एकाकी जीवन, एक ही जगह न बसें।
15. मकड़ी – भगवान भी माया जाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं।
16. भृंगी कीड़ा –अच्छी हो या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लगाएंगे मन वैसा ही हो जाता है।
17. सूर्य – जिस तरह एक ही होने पर भी अलग-अलग माध्यमों में सूरज अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक है पर कई रूपों में दिखाई देती है।
18. वायु – अच्छी बुरी जगह पर जाने के बाद वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है। उसी तरह अच्छे-बुरों के साथ करने पर भी अपनी अच्छाइयों को कायम रखें।
19. आकाश – हर देश काल स्थिति में लगाव से दूर रहे।
20. जल – पवित्र रहना।
21. अग्नि – हर टेढ़ी-मेढ़े हालातों में ढल जाएं। जैसे अलग-अलग तरह की लकड़ियों के बीच आग एक जैसी लगती नजर आती है।
22. चन्द्रमा – आत्मा लाभ-हानि से परे है। वैसे ही जैसे कला के घटन-बढ़ने से चंद्रमा की चमक व शीतलता वही रहती है।
23. भौंरा या मधुमक्खी - भौरें से सीखा कि जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले न छोड़ें।
24. अजगर – संतोष, जो मिल जाए उसे स्वीकार कर लेना।

सोमरस और शराब में अंतर


सोमरस और शराब में अंतर 

सबसे जादा चाय कोफ़ी से भी पहले बियर, वाइन , हुइस्कि ..सराब एक ऐसा आहार है जो आपके शारीर को जरुरत से जादा गरम कर देता है । और शारीर में जरुरत से जादा गर्मी आने के कारन ही मनुष्य वो सब करता जो सामान्य स्थिति में उससे वो करने की अपेक्षा नही की जा सकती । तो आपकी शारीर को बहुत जादा गरम करे ऐसी सराब अगर है तो ये प्रकृति के अनुकूल नही है, और जो आपके प्रकृति के अनुकूल नही है वो आपकी संस्कृति के भी अनुकूल नही है । क्योंकि आपके प्रकृति के संस्कार ही संस्कृति को निर्धारित करेंगे न, तो आपके संस्कृति के अनुकूल नही है तो सराब न पिये । राजीव भाई ने कुछ परिक्षण किये - जब भी एक साधारण स्वस्थ व्यक्ति को कोई भी सराब पिलाई जाये तो तुरंत उसका Blood Pressure बढना सुरु हो जाता है । अगर इसको आयुर्वेद की भाषा में कहा जाये तो तुरन्त उसका पित्त बढना सुरु हो जाती है , पित्त माने आग लगना सुरु होती है शारीर में । अब हमारा शारीर तो समशीतोष्ण है , जब आग लगेगी शारीर में तो शारीर की साडी प्रतिरक्षा प्रणाली इस आग को शांत करने में लगेगी, और परिरक्ष प्रणाली को काम करने के लिए रक्त इंधन के रूप में चाहिये ; तो आप का रक्त शरीरी का सरे अंगो से भाग कर उहाँ आयेगा जहां आपकी आग को शांत करने का काम चलेगा , माने पेट की तरफ सारा रक्त आ जायेगा । इसका माने रक्त जहां जाना चाहिए उहाँ नही होगा, ब्रेन को चाहिए उहाँ नही है, हार्ट को चाहिए उहाँ नही है, किडनी को चाहिए उहाँ नही है, लीवर को चाहिए उहाँ नही है .. वो सब आ गया पेट में , और ये रहेगा दो से पांच घंटे तक मने दो से पांच घंटे तक आपके शारीर के बाकि ओर्गन्स रक्त की कमी से तड़पेंगे और उनमे खराबी आना सुरु हो जायेंगे । इसलिए सराब पिने वालो के अन्दर के सारे अंग ख़राब होते है और उनको मृत्यु की डर सबसे जादा होते है । इसलिए भारत की प्रकृति और संस्कृति में सराब का स्थान नही है ।

लोग कहते है के, लेकिन सोमरस तो था !! सोमरस और सराब में बहुत बड़ा अंतर है - सोमरस और सराब में अंतर उतना ही है जितना डालडा और गाय के घी में है । सोमरस जो है आयुर्वेद का एक औषधीय रूप है जो आपके शारीर के शांत पित्त को बढाने का काम करता है, माने भूख जादा ठीक से लगे इसके लिये सोमरस पिया जाता है भारत में । सराब और सोमरस में जमीन असमान का अंतर है - सराब क्या करती है जो पित्त आपके शारीर में शांत है उसको भड़का देती है, एक सुलगना होता है एक भड़कना होता है । आग कहीं धीरे धीरे सुलग रहा है तो खतरे की सम्भावना बहुत कम हैं और आग भड़क के लग गयी है तो अस पड़ोसके बिल्डिंग ऐ जल जाएगी । तो सराब जो है वो पित्त को भड़काती है और सोमरस पित्त को सुलगाती है । तो सुलगा हुआ पित्त ये तो हमे चाहिये पर भड़का हुआ नही चाहिये , मने सरब नही चाहिये .. अगर चाहिये तो सोमरस चाहिये । अगर कोई सोमरस पिता है तो उसे जिन्दगी में कभी भी पित्त का रोग नही होगा । सोमरस बहुत ही संतुलित है जैसे नीबू की सरवत और सराब नीबू का रस । 

भारतीय संस्कृति का हिस्सा नही है सराब । और इतनी सराब जो लोग पिने लगे है वो यूरोप की नक़ल से आये, दुर्भाग्य से 450 साल तक हम भारतवासी यूरोपियन की सांगत में फंस गये या तो उनके गुलाम हो गये, तो उनकी नक़ल कर कर के हमने ये सुरु कर दिया । 
- आपने पूरी पोस्ट पड़ी इसके लिये धन्यवाद् ।

Friday, December 21, 2012

समझे धर्म को..


धर्म ,प्राकृतिक नियमों की अभिव्यक्ति है ,जो सृष्टि को संचालित करते हैं , इसलिए धर्म किसी व्यक्ति के द्वारा बनाया नहीं जा सकता धर्म सदा ही विकसित रहता है पुरानी पीढ़ियों के द्वारा संकलित ज्ञान के माध्यम से

रिलिजन /संप्रदाय /पंथ किसी भी व्यक्ति के द्वारा बनाया जा सकता है ,जो की मनमाने नियम और अपनी मर्ज़ी के अच्छे लगने वाले कानूनों को लेकर बनाया जा सकता है जो की कोई पैगम्बर , या गुरु चुनता है अपने पंथ या संप्रदाय के लिए

धर्म सम्पूर्ण मनुष्यता के बारे में सोचता है

रिलिजन केवल अपने ही मज़हब के लोगों के लिए सोचता है और रिलिजन के साथ बहुत ला,मी रक्त रंजित इतिहास जुड़ा हो सकता है

धर्म में कारण,दर्शन और आध्यात्मिकता प्रधान होती है

रिलिजन में तर्कसंगतता और आध्यात्मिकता का कोई मतलब नहीं बनता



धर्म सबका आदर करता है
रिलिजन वाले लोग अधिकतर अहंकारी और स्वयं को दूसरों से उत्तम मानने वाले होते हैं


धर्म सदा के विचार विमर्श के लिए खुला रहता है और दुसरे विचारों को भी अपने में समाहित करता है

रिलिजन एक बंद विचारधारा होती है ,जो वैचारिक स्वतंत्रता का नाश करती है और अभिव्यक्ति को रोकती है ,पूरे योजनाबद्ध तरीके से


धर्म पुरातन और मूल सोच पर आधारित होता है
रिलिजन पुरानी मान्यताओं के विरोध में खड़ा रहता है


इसलिए रिलिजन सही शब्द नहीं है सनातन धर्म/हिंदुत्व के लिए और रिलिजन ही बिलकुल एक सही शब्द है , उन सब 'बनाये गए' सम्प्रदायों और पंथों के लिए जिनकी 'शुरुआत' का एक 'इतिहास' है धर्म तो सदा सत्य और सनातन रहता है
जय सत्य सनातन धर्म ॐ

हिंदुस्तान में वक्त का तकाजा

कुछ लोग हिंदुस्तान में जानबूझ कर वक्त का तकाजा और घटनाक्रम की प्रकर्ति समझने की कोशिश नहीं कर रहे है और मुद्दों को भटकाने की मशक्कत कर रहे है। दीवार पर साफ़ साफ़ लिखा हुआ है की भारत देश 1947 की पीड़ा को व्यक्त कर रहा है। 1947 से पहेले क्या भारत विकास के रास्ते पर अग्रसर नहीं था या उस से पहले नहीं था।1952 में भी एक रुपया 5 अमेरिकन डॉलर के बराबर था जो की आज 56 रुपया है। तो क्या 5 रूपये से 56 रुपया तक का सफ़र हमें विकसित राष्ट्र बना रहा है। असल में ठोस रूप से हमें लुटने के लिए भरमाया मात्र जा रहा है। वो चाहए ऍफ़ डी आई हो या किसानो का देश से जानबूझ कर सफाया। विकसित तो आसियान देश भी हुए थे पर कितने दिनों के लिए। सिंगापूर को छोड़ कर वापस वहीँ के वहीँ यह देश पहुँच गए है। 

असल में भारत देश को सामाजिक शांति चाहिए जो राष्ट्र को एक दिन विकसित बना देगी बाकी सब कहानी है या कहिये मृग मरीचिका है। देश जब तक मुस्लिम लोगो की राष्ट्रवादिता पर शक करेगा तब तक देश में शांति नहीं होगी और मुस्लिम जब तक अपने धर्म को बाद में और राष्ट्र को पहेल नहीं लेंगे यह शक भी ख़त्म नहीं होगा। भारत देश कांग्रेस और अन्य दलों की सूडो धर्मनिरपेक्षता से घायल है और जब तक लोग हिन्दुओ को जबरदस्ती धर्मनिरपेक्षता की घुट्टी पिलाते रहेंगे यह देश कभी भी सामाजिक शांति का स्थान नहीं ही बन पायेगा। दूसरी तरफ आप भी कहे सकते है की जिस प्रकार हिन्दू धर्मनिरपेक्षता की घुट्टी नहीं पी सकते जैसा की पिछले 65 साल गवाह है उसी प्रकार मुसलमान राष्ट्रवादिता की घुट्टी नहीं पी सकते। अच्छा तर्क है परन्तु हल क्या है। असल में यह मुद्दा मुसलमानों को भरमाने का ज्यादा है। आज कांग्रेस व् अन्य दल मुसलमानों को जुल्म और पीड़ित के रूप में पेश करते आये है और उसी का परिणाम है की दो देश देने के बाद भी मुसलमान अपने को पीड़ित ही समझता आया है। और आगे भी समझता रहेगा। इसी का परिणाम है हिन्दू 30000 मंदिरों का न्याय नहीं पा पाया। अरे छोड़ो 30000 मंदिर अपने मर्मस्थल काशी, अयोध्या और मथुरा का न्याय भी नहीं पा पाया और न ही आगे कोई सम्भावना है। वास्तव में इस प्रकार की सोच के चलते न तो मुसलमानों को भारत देश में वो सम्मान ही मिल पाया जो पारसी या अन्यो को मिल गया और न ही वो अपने को पीड़ित मान कर देश की केंद्रीय भूमिका में आ पाया। असल में मुसलमान देश से उस प्रकार जुड़ ही नहीं पाया या 1947 के बाद हिन्दू समाज ही उनको आत्मसात नहीं कर पाया जैसे की कर लेना चाहिए था। जो सम्मान आज टाटा को है क्या वैसा किसी मुसलमान को है, नहीं ! इस द्वन्द के चलते यह खाई चौड़ी ही रही भर नहीं पाई। कुछ लोग इस बात से सहमत भी नहीं होंगे वो मुझे शाहरुख़ खान, सलमान, आमिर, अब्दुल हमीद, हामिद अंसारी, अबुल कालाम, आजाद और ना जाने कितने और नाम गिना कर अपनी बात को ही पानी देंगे। मेरा कहेना है की यह भी एक भरमाने वाले ही बात है। कुछ एक लोगो से देश की मुख्यधारा नहीं बनती। लाखो हिन्दू अजमेर शरीफ भी जाते होंगे पर फिर भी इन टोटको से देश की सामाजिक शांति की गारेंटी नहीं आ पाती। इस देश में मुस्लिम आबादी और हिन्दू आबादी अमूमन अलग अलग ही रहती है किसी भी शहर में यह आप को दिख सकती है। एक या दो मंदिर मस्जिद एक ही जगह होने से और उसको टोटको की तरह इस्तेमाल कर के देश में सामाजिक शांति का ढोंग नहीं किया जा सकता जैसे के पाकिस्तान लाहोर में एक सड़क का नाम भगत सिंह रख कर धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता उसी प्रकार हम भी एक दो टोटको से सामजिक शांति का ढोंग नहीं कर सकते। क्या हिन्दू-पारसी साथ नहीं रहेते हिन्दू-सिख साथ नहीं रहते या बोद्ध - हिन्दू साथ नहीं रहेते तो फिर हिन्दू - मुस्लिम क्यों एक साथ नहीं रहे सकते। असल में एक दुसरे पर अविश्वास ही मुख्य मुद्दा है। बहुत से स्वर्ण दलितों को आरक्षण के खिलाफ है परन्तु इसके बावजूद उनमे नफरत नहीं, साथ रहेते है और साथ मंदिर में माथा टेकते है एक शमशान में मृत शारीर फूंकते है। परन्तु मुस्लिम के प्रति वो भाव नहीं है। 

इतना कुछ लिख दिया परन्तु समाधान क्या है। असल में समाधान है नेत्रत्व। जब तक देश का नेत्रत्व एक मजबूत मुख्य धरा के राष्टवादी नेता के हाथ में नहीं होगा जब तक हिन्दुस्तान में सामजिक शांति नहीं आ सकती और न ही देश विकसित हो सकता। असल में राष्ट्र को एक विश्वसनिये नेता चाहिए जिसके आश्वासन पर मुस्लिम अपने को राष्टवादी माने और विकास की तरफ अग्रसर हो। क्योंकि जो काम धंधे कुछ समय पहेले मुस्लिमो के ही क्षेत्र माने जाते थे आज वहां पर भी हिन्दू काबिज हो चूका तो मुसलमानों के अवसर दिन प्रति दिन घटते ही जायेंगे और जो लोग इसे सरकार का मामला मान रहे है वो भ्रम का शिकार है। एक और आरक्षण इस का समाधान नहीं बल्कि एक और बंटवारे का रास्ता है।

आज गुजरात की जीत से एक राष्टवादी नेता पनपा है जिसका नाम नरेन्द्र मोदी है। लोग तो सूरज में भी कमी निकाल सकते है फिर तो वो मानव भर है। परन्तु इस से इनकार नहीं किया जा सकता की इस शख्स ने हलाहल शिव शंकर की तरह पिया है कुछ कुछ एसा ही श्री अडवानी जी ने भी बहुत समय तक पीया है। पिछले 10 सालो से लोगो ने इसको इतना बोल इनता बोल के इसको भारत का ओबामा बोल जाये तो अतिश्योक्ति नहीं हो गी। आज जो नरेद्र भाई कर रहे है वो असल में हिन्दुओ के बहुत बड़े हिस्से की ही आकांक्षा है। जो भी लोग यह मानते है की गुजरात में भाजपा की जीत नहीं केवल मोदी की जीत है वो बहुत बड़े भ्रम का शिकार है। यह कुछ कुछ भाजपा के कर्मठ कर्येकर्ता और मतदाता पर थूकना है। बिना संघटन के जो लोग यह मानते है की बाते बना कर ही जीता जा सकता है या कुशल प्रबधन या मार्केटिंग से ही चुनाव जीता जा सकता है तो देश के अधिकांश एमबीए संस्था के प्रोफ़ेसर या किसी कंपनी के सी इ ओ ही इस देश के प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री हुआ करते। नेता वो जिसकी बात पर लोग विश्वास करते हो और उसके कहेने से कार्यकरता लोगो को मतदान तक लाते हो। जिस राहुल गाँधी की घोषित रूप से मीडिया सहयेता करती है और संस्था ज्ञान पिलाती है से कोई राष्ट्र का लोकप्रिय नेता नहीं बन सकता।


भाजपा में इस बात की कोई कमी नहीं की इसके बड़े बड़े नेता "अहम" जरुर पाले है जिस से देश का भाजपा की सरकार मिलने में देरी हो रही है। आशा है वो अपना "अहम्" जल्द से जल्द छोड़ देंगे। 

मोदी में भी अहंकार है पर यह वो अहंकार है जो राम में अपनी सीता पाने का अभिमान था। यह वो अहंकार है जो गाँधी को अपनी "आहिंसा ' पर था। कृष्ण को अपने सुदर्शन पर था। इतना अहंकार होना जरुरी भी है। यह जब तक अहित न करे ठीक , क्या लोग मोदी को केशु भाई के घर जा कर उनके चरण छूने को राम के रावन के महान होने के महत्व को लक्ष्मण को नहीं समझाते। मेरा केशु भाई जी को रावण कहेने का कतई तात्पर्य नहीं है। कहेना सिर्फ इतना है की केशु भाई के दुसरे खेमे में होने के बावजूद भी वो महान है वो गुणी है। परन्तु जिस प्रकार मोदी ने केशु जी को महत्व दिया यह कोई सरल बात नहीं। दोनों में ही संघ के गुण कूट कूट का भरे है। हमें उमीद है मोदी जैसे सह ह्रदय नेता एक दिन संजय जोशी जी पर भी बड़प्पन दिखायेंगे। और यह वो संस्कार है जिनका जिक्र मोदी जी ने अपनी विजय रैली किया। संघ का यह ही गुण का प्रकटीकरण मोदी जी ने मुस्लिम भाइयो के प्रति उनके विकास के प्रति "एक" भाव अपना कर किया उनके प्रति किसी क्षण उनके मन में दुर्भाव नहीं था । राम विनम्र थे पर क्या लंका जाते सागर (समुन्द्र) के स्थान न देने पर क्रोध नहीं दिखाया था ? संघ हिन्दुओ को दिलो से दिल जीतने का जज्बा सिखाता है जिसका की प्रकटीकरण गडकरी जी ने उमा भारती व् कल्याण सिंह जी के प्रति किया और उमीद है यह ही जज्बा श्री गोविन्दचार्ये जी को भी उनके वापसी में सहयोगी बनेगा। लोग भूले नहीं अडवानी जी के अपनत्व और समर्पण को जो लोग भाजपा पर कांग्रेसीकरण का झूठा आरोप लगते है वो जान ले की यह ही वो अडवानी थे जिन्होंने श्री अटल जी के बिना इशारा करे अपना राज पाठ प्रधानमंत्री का पद सौप दिया था जो उस समय के एक लोकप्रिय नेता थे और है ऐसा नहीं की कांग्रेस की सोनिया गाँधी की तरह एक कटपुतली नेता देश को दिया हो। बस फर्क यह था की अटल जी सरकार चलते थे और अडवानी जी संघटन परन्तु सम्मान एक दुसरे के प्रति इतना था की किसी को भी गर्व हो जाये । गटर टाईप बेहेस के जनक लल्लू यादव नहीं जान सकते जो अडवानी जी के प्रधानमंत्री बनने की बात उनकी जन्मपत्री से जोड़ते है की त्याग किसे कहेते है। संघ पर कई बार अहंकारी होने का भी आरोप लगता है तो वो जान ले की श्री कल्याण सिंह जी द्वारा एक नहीं बारबार गाली देने के बाद भी संघ ने उनको गले लगाया। यह संघ का ही गुण है जो हर किसी को गले लगा लेता है। और लोग बाते करते है मुसलमानों के प्रति दुर्भाव की, अरे मुस्लिम भाईओ बस जरा दिल तो रसखान सा कर और फिर देखो संघ तुम्हारा और आप संघ के। परन्तु यदि तलवार के जोर पर भारत माता का अनिष्ट करोगे तो फिर उसके विरोध के प्रकटीकरण को हिंसा या अहंकार मत कहो वो तो स्वाभिमान और हक़ व हकूक है प्रतिकार करने का .


गुंडई, छिछोरापन किसी कहते है वो कल की कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री संजय निरुपम जी की मनानिये स्मृति इरानी जी के साथ ऐ बी पी न्यूज़ (स्टार न्यूज़) के प्राइम टाइम पर देख लेते जिस पर की इस नेता ने स्मृति इरानी को इतनी भद्दी बाते कही की यदि वो सोनिया गाँधी के बारे में बोल दी जाती तो कांग्रेसियो आंखे फट जाती। महिला होने के लिए उनके बारे में इतना भद्दा बोल की हर महिला शर्म से गड जाए यह है कांग्रेस की निर्लाजता। और वास्तव में जो संजय निरुपम ने कहा उस से उनकी मानसिकता और दिल्ली बस काण्ड के बलात्कारियो की मानसिकता को भिन्न नहीं माना जा सकता। हम तो कई साल से कहे रहे है की कांग्रेस ने प्रवक्ता के नाम पर गुंडे पाल रखे है। जो गुंडई से पत्रकारों और दुसरे दलों के नेताओ का टीवी पर धमकाते और गिरियते है। दूसरी और शकील साहिब है जो दुसरे को बोलने का अधिकार ही नहीं देते जानबूझ कर इतना बोलते है की टीवी का समय ही ख़त्म हो जाये पर प्रलाप इनका जारी रहेता है। 

इनके एक और स्वंभू ज्ञानी नेता है श्री चिताम्बरम बोल रहे है के हमने भाजपा को एक सीट कम आने से रोक (मतलब 117 से कम पर रोक पर वो भूल गए की जरुरी सीट तो 92 ही चाहिए) और यह कांग्रेस की उपलब्धि है। अब लोग गोबर में भी विटामिन ढूंढ़ कर उसका स्वाद ले रहे है तो हम तो रोक नहीं सकते। कांग्रेस के नेता इस हार से इतने निरलज हो गए की गुजरात के जनता को ही गाली देने लगे। के गुजरात के कुछ लोगो ने ही तो मोदी जी को वोट दिया सभी गुजरातियो ने तो नहीं दिया। अरे भाडू नेता देश का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पुरे भारत के प्रधानमंत्री है या कुछ कांग्रेसियो का ही है। मोदी तो फिर भी चुनाव में लड़कर मुख्यमंत्री बना है एक नहीं 3 बार पर आप तो अपने नाजुक मनमोहन सिंह को चुनाव में भेजने की कुव्वत नहीं रखते। बार बार राज्ये सभा से लाकर देश पर थोपते हो। 


सीधा सीधा दोष तो नहीं परन्तु विपरीत बाते एक ही मुह से सुनकर अच्छी नहीं लगती आप एक ही साँस में सन्नी लियोन को देश में अश्लीलता फ़ैलाने की भी इजाजत देते हो और दिल्ली बलात्कार काण्ड पर झूटे और घडियाली आंसू भी बहते हो। यह विपरीतआत्मक और विरोधाभाषी प्रवचन ज्यादा नहीं चलेंगे। 

देश जाग रहा है। जो लोग गुजरात की जीत को हल्का बनाने में लगे है वो एक बात सुन ले की एक नहीं यह 5-5 बार भाजपा के राष्ट्रवाद की जीत है, किसी गुजरती क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाषावाद, वर्गवाद की जीत नहीं है। जीत है तो राष्ट्रवाद से ओतप्रोत विकासुन्मुख जनता की। जो कटपुतली नेताओ, जनता से कटे, संवादहीन, क्रूर, अहंकारी, परिवारवादी नेत्रित्व के आकांक्षी और अभिलाषी राजनीती के लिए स्पष्ट सन्देश है। 


बहुत समय बाद देश में क्रूरता और संवादहीनता की सुनामी के बाद मोदी जी एक स्वच्छ हवा का झोंका लाये है जिसे जनता ने दिल्ली की लाजलजी, सड़ांध मारती राजनीति के लिए भेजा है, झूटे वादे , झूटे चेहरे, कपटी लोगो को दिल्ली के तख़्त से उतार कर जमीं पर लाने का सन्देश दिया है। देश पर ढोंगी अपढ़ लोगो का राज इस देश की जनता नहीं चाहती। 


गलती किस से नहीं होती गलती सब से हो सकती है परन्तु इस देश की जनता अब गलती दोहराने के लिए तैयार नहीं है। राष्ट्र को वो नेता चाहिए जो मुसलमानों को सच बता कर उनका इलाज करे न की झूट बोल बोल कर उनके जख्मो को सडा सडा कर सेप्टिक कर दे। 

हिमाचल प्रदेश भाजपा के लिए एक सबक है के बिना धरातल पर संघटन को मजबूत करे। खाली नीतिया बना कर वो फल नहीं देती बल्कि लोकतंत्र में उन नीतिओ के सु परिणामो को जनता को बताने का कष्ट भी करना पड़ता है। और लोकतंत्र जोड़ने का काम है न की थोपने का। वो फिर राहुल गाँधी हो, अनुराग ठाकुर हो, अखिलेश यादव हो। नेत्रत्व क्षमता नेताओ के डी एन ऐ (वीर्ये) में नहीं यह तो देश की मिटटी में तप कर आती है। 

यह देश सच्चा और देशभक्त नेत्रत्व चाहता है एक चेहरा चाहता है वो चाहे गाँधी हो, एम् जी रामचंद्रन हो, बाला साहिब हो, वीर सावरकर हो, नेताजी हो , लाल बहदुर शास्त्री हो। यह जय जयकार लगाने वालो का देश है। कांग्रेस तो यह बात जानती है पर भाजपा को अभी समझनी है। वक्त किसी के लिए नहीं रुकता फिर चाहए आपके मुद्दे और विचार कितने भी अच्छे क्यूँ न हो, देश नेत्रत्व विहीन नहीं रह सकता। 

चुनाव चुनाव होता है वो बहुअयामी होता है। चुनाव में जनता आपका हर तरह से पूरा विश्लेषण करती है। चुनाव में मुख्मंत्री या प्रधानमंत्री नहीं बल्कि नेता चुना जाता है। और यह ही कारन है की श्री मन मोहन सिंह जी चुनाव जीतते तो नेता बनकर प्रधानमंत्री होते अभी वो प्रधानमंत्री तो है पर दुर्भाग्य से थोपे हुए है। 
मुद्दे महत्वपूर्ण जरुर होते है पर लोग भी देखते है की उठा कौन रहा है और उसका चरित्र क्या है। लोग बावले नहीं और न ही बेवकूफ जो देश की या राज्य की सत्ता खाली मुद्दों और अखबार में बयानों के आधार पर सौप देंगे। मुझे लगता है संजीव भट्ट और अरविन्द केजरीवाल जैसे लोगो को यह बात समझ में आ गई होगी

गर्व से कहो हम हिन्दु हैं, वैदिक हैं, सनातनी हैं

मत बदल धर्म बेहोशी में एसे महान धर्म को छोड़कर कहाँ जायेगा, गर्व से कहो हम हिन्दु हैं, वैदिक हैं, सनातनी हैं .

250 साल तक अंग्रेजी गुलामियत और उस दौर की अनपढ़ता ने हमारी संस्कृति को भुलाने का पूरा भरसक प्रयत्न किया है रही-सही कसर कांग्रेस ने हमें मातृभाषा में शिक्षा न देकर निकाल दी।हम वैदिक संस्कृति वाले लोग अपने धर्म को भुलने लगे और अपने पूर्वजों को नकली और न होने की बात तक स्वीकार करने को तैयार होने लगे। बहुत विदेशियों ने इस देश पर आक्रमण किये और धर्म परिवर्तन के पूरे हत्कन्डे अपनाए। बहुत मात्रा में मूल भारतियों का धर्म परिवर्तन भी समय-अमय पर करते रहे।मेरा मानना है कि आज भारतवर्ष में दूसरे धर्म 33% हैं तो इसमें से 30% के पूर्वज वैदिक संस्कृति वाले लोग हैं। केरल व अन्य प्रान्तों में बसने वाले इसाईयों को देखें और सोचें कि क्या इनकी शक्ल किसी अंग्रेज से मिलती है क्योंकि अंग्रेजों के भारत में आने से पहले भारत के लोग इसाई धर्म के बारे में जानते तक नहीं थे। तो उत्तर होगा कि नहीं तो फ़िर ये यूरोप से आए हुए इसाई तो नहीं हैं फ़िर कहाँ से आए? कहीं से नहीं ये हैं मूल भारतीय,इनकी शक्ल भी भारतीय। 

दूसरा------हरियाणा का मेवात जिला इसका परिपूर्ण उदाहरण है। इन लोगों को ओरंगजेब ने मुस्लमान बनाया था। लेकिन कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी

इस 315 साल के अर्से में हमारा धर्म कमजोर हुआ और साथ-साथ कुछ कुरितियों ने भी इस धर्म में जगह बनाई। इन कुरीतियों को लेकर कई समाजसुधारक भी हमारे देश में अपने समय के अनुसार कार्य करके जाते रहे। जब हम आजाद हुए तो हम पढ़ने-लिखने लगे और अपनी संस्कृति का अध्ययन करने लगे।लेकिन जो सम्पर्क हमारा ज्ञान प्रवाह से टुट गया था उसका खामियाजा तो हमें भुगतना ही था। हमें वेद, पुराण, योग, आयुर्वेद, संस्कृत भाषा,हिन्दु ग्रन्थ समझ नहीं आये और हमें ये सब झुठा सा लगने लगा और काँग्रेस,मुस्लिम और ईसाइ धर्म ने इसका फ़ायदा उठाया और हिन्दु को आज तक भारी मात्रा में धर्म परिवर्तन करा रहे हैं और हमारा भोला-भाला हिन्दु इनके झांसे में आता जा रहा है।

काँग्रेस ने हमारे धर्म में जातिप्रथा को बढ़ावा दिया और सीधे ही हमारे संविधान में जातिगत आरक्षण देकर हिन्दु को जातियों में विभाजित ही रखा।पहली कक्षा में जब बच्चे किसी अध्यापक के पास पढ़ने आते हैं तो वे नहीं जानते किस जाति विशेष से सम्बन्ध रखते हैं लेकिन शिक्षक उन्हें पाँचवीं तक आते-आते बता देता है कि आप हरिजन हो बाल्मिकी हो,आप एस सी हो और नाई,धोबी,कुम्हार हो तो आप बी सी हो और आप को जाति के आधार पर आरक्षण मिलेगा और बाकी को नहीं। आप को वर्दी और वजीफ़ा मिलेगा और आप ब्राह्मण हो आप को ये सब कुछ नहीं मिलेगा। इस हत्थकन्डे ने हिन्दु धर्म में घृणा और द्वेष को भरपूर पोषित किया है। परिणामस्वरुप कुछ दलित और हरिजन जातियों को हिन्दु धर्म से घृणा होने लगी। जिसके कारण आज तक धर्मपरिवर्तन चला आ रहा है।बुरी घृणा से इन नेताओं ने जातिवाद को बढ़ावा दिया।जबकि पुराचीन भारत में चार वर्णों का उल्लेख आता है उनका सच्चा अर्थ बिगड़कर रह गया।

उनका अर्थ है कि ब्रह्मिन , क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जातीय भेद नहीं , बल्कि व्यावसायिक भेद थे. कोई जन्म से ब्राह्मिन नहीं होता और कोई जन्म से शूद्र नहीं होता। सिर्फ गुरु , चिकित्सक, वैज्ञानिक और बुद्धिजीव ही ब्राह्मण है . केवल सैनिक और खिलाडी ही क्षत्रिय और केवल व्यवसायी ही वैश्य हैं। हम में से ज्यादातर दूसरो (companies या सरकार ) के लिए काम करके पैसे कमाने वाले शुद्र हैं। और इन वर्णों में कोई किसी से श्रेष्ठ नहीं है। 

लेकिन कुछ बात है के हस्ती मिटती नहीं हमारी

वेद,योग,पुराण और आयुर्वेद को हमारे पूर्वजों ने एक महान अविष्कार के रुप में प्रतिस्थापित करके रख छोड़ा था। आप जानते हैं कि तक्षशिला और नालन्दा उस समय के विश्वविद्यालय थे। पूरे विश्व में उस समय कहीं भी शिक्षा नहीं थी तो आप कैसे कह सकते हैं कि आपके पूर्वज अज्ञानी रहे होंगे।या उन्होंने आप को गलत धर्म दिया होगा,गलती आप कर रहे हो और दोष धर्म या पूर्वजों को दे रहे हो।

अब हम मूल विषय पर आते हैं

वैदिक संस्कृति को समझना इतना आसान काम नहीं है अगर होता तो स्वामी रामदेवजी की जरुरत ना पड़तीं। ना आचार्य बालकृष्ण जी की पड़ती। हमारे पूर्वज बड़े ज्ञानी और महान थे। उन्होंने दो पद्धति विकसित की थी। सम्मान और भक्ति। इन दोनों को समझने में हमने भुल की है। हमने इन दोनों को एक ही समझ लिया है और दोनों के लिए एक माप बनाया।जो कह्लाया पूजा। हमने भक्ति को त्याग दिया और पूजा को अपना लिया क्योंकि भक्ति की अपेक्षा पूजा आसान काम है।परिणामस्वरूप पूजा हमें अन्धविस्वास जैसी प्रतीत होने लगी। अब आप समझें। हम सभी जानते हैं कि हमारे पूर्वज जब भगवान की प्राप्ति करना चाहते थे तो वो वनों में जाकर ध्यान और समाधि के माध्यम से ये कार्य करते थे।मैं आपको साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मैने दो पहलुओं का पहले जिकर किया है सम्मान और भक्ति। जब हमने अनपढ़ता का दौर पार किया तो हम एक बात करते रहे वो थी पूजा। इस पूजा नाम के यन्त्र ने हमें आज तक बचाकर रखा हुआ है। अगर हम पूजा छोड़ देते तो पक्का  हमारी हस्ती मिट गई होती। लेकिन हमने पूजा नहीं छोड़ी बल्कि जिनकी पूजा पूर्वजों ने कही थी, उनके इलावा की भी पूजा करने लग गए। हमने आजकल मुस्लिम पीरों को भी पूजना शुरू कर दिया है।जिसके कारण कुछ पूजाएँ अन्धविश्वास से जुड़ गई।
अब मैं आपका ध्यान पहले पहलु की तरफ़ खेंचना चाहूँगा। सम्मान जिसको हम आज तक नहीं समझ पाए। हमारे पूर्वजों ने महान अविष्कार करके मानव कल्याण के लिए आयुर्वेद की रचना की थी।इस चिकित्सा प्रणाली का कोई तोड़ नही है।प्रकृति में उस समय जिन औषधिय पौधों, जीव जन्तुओं और पदार्थों को मानव कल्याण के लिए हमारे पूर्वजों ने उपयोगी पाया उनके संरक्षण के लिए उनको कुछ करना था। दूसरी समस्या उनके सामने यह थी कि इन पौधों,जीव-जन्तुओं और पदार्थों को कालान्तर तक कैसे बना कर रखा जाये ताकि ये संसार से लुप्त ना हों। इसलिए उन महान ज्ञानियों ने समाज के सामने एक आदर्श रखा कि सारी वैदिक सभ्यता उन दुर्लभ पौधों,जीव-जन्तुओं और पदार्थों को सम्मान देगी अर्थात पूजा किया करेगी।ताकि वे कालान्तर तक प्रकृति में बने रहें। उसी समय से भारतवर्ष में तुलसी,पीपल,गऊ माता,अन्न देवता,सूर्य नमस्कार,वैष्णवी,नीम,अमृत बेल,उपवास, जल देवता,अग्नि देवता,सान्ड देवता,गरुड़ देवता,सरस्वती आदि को सम्मान देने की प्रथा शुरु हुई है।यानि के पूजा करने की प्रथा शुरु हुई। और इनको तभी से लोग बहुत ज्यादा प्रेम करने लगे। घरों के ज्यादा से ज्यादा नजदीक रखने लगे। इस पूजा नाम के यन्त्र के कारण ही आज का सभ्य कहा जाने वाला समाज इन सभी पौधों,जीव-जन्तुओं और पदार्थों को जानता पहचानता है। 
दुर्भाग्य से अभागा इन्डियन आप को आम कहता मिलेगा कि गंगा स्नान,वैष्णों माता,उपवास,पीपल पूजा,तुलसी पूजा,गौ माता आदि ये सब पाखण्ड हैं . लेकिन महत्वता नहीं जानता है।

इन सभी के पीछे विज्ञान के रुप में आयुर्वेद छिपा है।मैं एक –एक करके कड़ी खोलता हूँ----- 

(तुलसी)------तुलसी के पत्ते खाने से कभी भी आपको जुकाम और बुखार नहीं आयेगा। इसके खाने से हमारी प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है और हमारे वातावरण में इसकी सुगन्ध फ़ैली रह्ती है जिसके कारण हमारा हवामान शुद्ध बना रहता है।

(नीम)-------आज के विज्ञान ने भी ये मान लिया है कि नीम जैसा गुणकारी पौधा हर आँगन में होना चाहिये। नीम के पेड़ से कुनीन नाम की दवा बनाई जाती है जो मलेरिया बुखार को दूर करती है।इसकी दान्तुन से दाँतों के रोग दूर होते हैं,इसके धूएँ से मच्छर भागते हैं। अनेक औषधियाँ बनाने के काम में इस पेड़ का हर हिस्सा काम में आता है।

(अन्न देवता)-------अन्न का महत्व हमें जब समझ आता है जब हम भूखे होते हैं। हमारे पूर्वज इसका महत्व जानते थे कि अगर अन्न का दाना-दाना सदुपयोग होगा तो ही कोई भूखा नहीं सोयेगा। उपवास की महिमा भूखे पेट को कितना सहयोग देती है मेरी समझ मैं आता है इसलिए उन्होंने इसके सम्मान के लिए इसे अन्न देवता की संज्ञा दी।क्या गलत किया ?

(पीपल)---------पीपल एक ऐसा पेड़ है जिसको विज्ञान सिद्ध कर चुकी है कि ये पौधा रात को भी आक्सीजन छोड़ता है जबकि बाकी सभी पेड़ रात को कार्बनडाइक्साईड छोड़ते हैं।यह वृक्ष औषधीय है ,इसके फल से चाव्वंप्राश बनाता है. यह पेड़ हमारे पूर्वजों के प्रयास के कारण से केवल भारत में ही ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। अब आप समझ गये होंगे कि इसको सम्मान(पूजा)देना कितना अनिवार्य था।

(जल देवता)-------आप के ज्ञान के लिए बता दूँ कि आज के हालात के अनुसार भारत की राजधानी दिल्ली में कुछ इलाके ऐसे हैं जिनमें एक परिवार का एक सप्ताह का पानी का खर्चा 700 रुपए है। जल की कितनी महत्वता है भारत के कई इलाके महाराष्ट्र,राजस्थान आदि अच्छी तरह से समझते हैं। हमारे पूर्वजों ने इसे जल देवता का सम्मान इस लिए दिया कि लोग इसकी महता को समझें और जल का इतना आदर करें कि इसका दुरूपयोग ना हो। आज की सरकारें भी समझ चुकी हैं और नारे दिये हैं ------जल ही जीवन है। जल बचाओ।

(सूर्य नमस्कार)------------हमारे पूर्वज व्यायाम और योग का महत्व जानते थे। उनके नितय कर्मों में इनको स्थान मिला हुआ था। पर सामने एक प्रशन था कि लोगों को कालान्तर तक कैसे योग और व्यायाम से जोड़ कर रखा जाए। इसलिए सूर्य को देवता का सम्मान देकर इसकी पूजा के माध्यम के रुप में सूर्य नमस्कार को अपनाने के लिए कहा गया ताकि लोग रोज सुभह व्यायाम भी कर लें और दूसरा सूर्य की किरणों से विटामिन डी की प्राप्ति भी कर लें।

(गौ माता)-------आज का वैज्ञानिक भी सिद्ध कर चुका है कि माता के बाद सबसे उत्तम आहार कोई है तो नवजात शिशु के लिए वो है गाय का दूध। हमारे ज्ञानी पूर्वज जानते थे कि इस पशु में महान गुण हैं। जो लोग गाय पालते हैं वो जान जाते हैं कि गाय और भैंस में क्या अन्तर है,दूध तो दोनों देती हैं लेकिन गाय शिखर दोपहरी में भी कभी छाया का सहारा नहीं लेती है और कभी भैंस की तरह गोबर या गीले में नहीं बैठती है।इसके मूत्र को औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता है।इसका दूध अमृत के समान है।इसके दूध और घी में कलस्ट्रोल नहीं होता है जबकि भैंस के दूध और घी में बहुत अधिक होता है,गाय का घी औषधि है।क्या अभी भी इसे माता कहना अच्छा नहीं लगेगा।

(वैष्णों माता)---------इस माता की पूजा करने का महत्व तो इसके नाम में ही छुपा है। हमारे पूर्वजों ने वैष्णवी भोजन को प्राथमिकता दी ताके लोग माँसाहार की तरफ़ ज्यादा आकर्षित ना हो सकें और प्राणी मात्र की रक्षा की जा सके ।वनों में रहने वाले जीव-जन्तुओं को लम्बे समय तक बचाकर रखा जा सके और मनुष्य का भोजन का तरीका शाकाहारी रह जाये।इस माता की पूजा में शाकाहारी भोजन को बहुत महत्व दिया जाता है। नौरात्रि में जो लोग अपूर्ण रूप से वैदिक हैं वो कम से कम इन दिनों तो शराब,मीट,अंडे का सेवन नहीं करते हैं. अगर लोगों को हमारी सभ्यता मान्शाहार के लिए ना मनाही करती तो आज एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को खा रहा होता . भारतवर्ष ही एक ऐसा अकेला देश है जिसने शाकाहारी भोजन के अनेक स्वादिष्ट व्यंजन अविष्कार किये। पूरे यूरोप में आज तक भी रोटी कैसे बनाई जाती है नहीं पता है। मुझे तो भाई जी आज पूरी तरह से माता जी कि महिमा समझ आई है .

(गंगा की पूजा )-----------आज के मतलबी और स्वार्थी इंडिया ने देखिये क्या उदेश्य पूरा करने के लिए गंगा का इस्तेमाल किया है,आज कहा जाने लगा है कि गंगा में स्नान कीजिए और सारे पाप धुल जायेंगे तब आप फिर से नये पापाकर्म करने के लिए अपने आप को तैयार समझें . जबकि हमारे महान पूर्वजों ने गंगा को सम्मान इसलिए देने को कहा था कि इस नदी का जल इतना पवित्र और ओषधिय है यह जल दूसरे सामान्य जलों से भिन्न है इसमे कुछ ऐसे धात्वीय तत्व विद्यमान हैं कि जो इसे जार में भरकर रखने पर वर्षों तक खराब नहीं होने देते हैं, दूसरा पहलू स्नान करने वाला है स्नान कि प्रथा को इसलिए चलाया गया कि एक तो वो लोग जो किन्ही शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त हैं इस औषधीय जल में स्नान करके स्वास्थ्य को हासिल करेंगे, दूसरा लोग ऐसा विश्वास करने लगें कि जो लोग नित्य पाप कर्म करते रहते हैं वो गंगा नदी के पवित्र जल में स्नान करें और शपथ ग्रहण करें कि जो पाप कर्म आज तक मैंने किये हैं उनको आज मैं छोड़ता हूँ और गंगा कि शपथ लेता हूँ कि आगे से कोई पाप कर्म नहीं करूंगा . इस प्रकार देश से पाप के साम्राज्य का खात्मा होता रहेगा.और पापी सतकर्म कि ओर अग्रसर होते रहेंगे. वैदिक संस्कृति में गंगा जल को इतना अधिक महत्व देने का मुख्य कारण यही रहा है कि गंगा जल को सामने देख कर जनमानस याद रखे की हमें पाप से दूर रहना चाहिए .मुझे लगता है कि अब हमें समझ आ जाना चाहिए कि हम गंगा को क्यों पूजते हैं.

अब आप समझ गये होंगे कि हमारे महाज्ञानी पूर्वज कितने महान थे और उन्होंने हमारे लिए क्या किया है और पूरी धरती के लिए उनका क्या योगदान रहा है। आप कोई भी भारतीय पूजा को आप अच्छी तरह समझेंगे तो उसके पीछे आपको हमारे पूर्वजों का महान विज्ञान और अध्यात्मिक चिन्तन ही मिलेगा। मैं और पहलूओं का भी जिकर कर सकता हूँ लेकिन समझदार को इशारा ही काफ़ी होता है।
आयुर्वेद का दूसरा पहलू योग

मैं पहले ही इस लेख में जिकर कर चुका हूँ कि हमारे पूर्वजों ने हमें वो दिया है जो किसी दूसरी सभ्यता के पास है ही नहीं। हम अक्सर योग को बड़े हल्के में ले लेते हैं जबकि ये वो विधा है जिसकी जरुरत हमें अतिआवश्यक है। हमें योग को समझना होगा और पहचानना होगा तभी हम अपने महान वैदिक धर्म को असली अर्थों में पहचान सकेंगे और गर्व से कह सकेंगे कि हम हिन्दु हैं।सबसे पहले तो मैं बता दूँ कि मैंने पहले हमारे पूर्वजों के द्वारा अपनाई गई दो पद्धतियों का जिकर किया है सम्मान और भक्ति। योग दूसरी पद्धति भक्ति की खोज है ये इश्वरीय ज्ञान है जो हमारे पूर्वजों की हजारों वर्षों की मेहनत का फ़ल है। महॠषि पतन्जलि,पाणीनि और श्री कृष्ण इसके जन्मदाता हैं। योग और आयुर्वेद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
आज पूरे संसार में अनेक चिकित्सा प्रणालियाँ विद्यमान हैं लेकिन कोई भी प्रणाली ये प्रावधान नहीं करती की आदमी बीमार ही न हो। सब की सब बीमार होने पर इलाज या रोकथाम का प्रबन्ध करती हैं परन्तु केवलमात्र योग ही ऐसा साधन है जो आपको बीमार न होने का प्रबन्ध करता है जो व्यक्ति लगातार योग करता है वह कभी बीमार ही नहीं होता है। हमारे पूर्वजों ने हमें ऐसी विद्या भेंट के रुप में दी है जो किसी दूसरे के पास नहीं है। योग का नित्य अभ्यास हमें निरोग बनाता है और अध्यात्मिक शक्ति के साथ हमें स्वस्थ रखता है।

हम सब ये तो जानते हैं कि जो शाकाहारी भोजन हम खाते हैं वो हमें कहाँ से मिलता है? उत्तर आता है कि पौधों से,तब अगर पेड़-पौधों से ही हमारी चिकित्सा हो जाए तो, आप कहेंगे कि अति उत्तम होगा। क्योंकि जो वस्तु हमें पहले ही भाती हो तो वो हमें साईड प्रभाव नहीं करेगी। ऐसा इलाज करता है,हमारा आयुर्वेद।

मुझे लगता है कि अब हमें समझ आ जानी चाहिये और हमें अपने धर्म,संस्कृति पर गर्व करना चाहिये। आज हमें शुद्धिकरण की आवश्यकता आन पड़ी है। आज हमें अपने आप को पहचानने की जरुरत है। ऐसे महान धर्म को जो लोग त्याग कर जा रहे हैं उन्हें चाहिये कि वो उन लोगों को सबक सिखाएँ ,जो इस धर्म को तोड़ने की साजिश में लगातार लगे हुए हैं। हमें दूसरे धर्म के लोंगो से इतना नुकसान नहीं हो रहा है जितना हमें वोट कि गन्दी इन्डियन राजनीति से हो रहा है। हमें इन्डियन बनाया जा रहा है ताकि हम अपनी संस्कृति और धर्म से ज्यादा से ज्यादा दूरी बना सकें।

एक शब्द जो मैंने इस लेख में कई बार प्रयोग किया है इन्डियन,इस शब्द ने आपको परेशान किया होगा कि कहीं लेखक दूसरे देश से तो सम्बन्ध नहीं रखता है. मैं आपको साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मैं इन्डियन शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग करता हूँ जो भारत में रहते हैं और अंग्रेजों की विरासत को सम्भाले हुए हैं जो वदेशी भाषा,विदेशी ब्रांड,विदेशी खानपान,विदेशी और अंग्रेजी सोच पर गर्व करते हैं .जो स्वदेशी का महत्व नहीं जानते हैं .

हमें आज शुद्ध अर्थों में भारतीय बनना है।
गर्व के साथ कहना है--------हिन्दु हैं,हिन्दी हैं, हिन्दुस्थानी हैं।

जय श्री राम

प्रेश्रित द्वारा

नरेन्द्र शशिशीश

Wednesday, December 19, 2012

मार्गशीर्ष मास अत्यन्त पवित्र है


हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष के नवम माह का नाम मार्गशीर्ष है। इस माह को अगहन भी कहा जाता है।
मार्गशीर्ष का सम्पूर्ण मास अत्यन्त पवित्र माना जाता है।मास भर बड़े प्रात:काल भजन मण्डलियाँ भजन तथा कीर्तन करती हुई निकलती हैं। 

गीता में स्वयं भगवान ने कहा है मासाना मार्गशीर्षोऽयम्।


सत युग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया। इसी मास में कश्यप ऋषि ने सुन्दर कश्मीर प्रदेश की रचना की। इसलिए इसी मास में महोत्सवों का आयोजन होना चाहिए।मार्गशीर्ष शुक्ल 12 को उपवास प्रारम्भ कर प्रति मास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए।प्रति द्वादशी को भगवान विष्णु के केशव से दामोदर तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक 'जातिस्मर' पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुँच जाता है, जहाँ फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।


मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा की अवश्य ही पूजा की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को सुधा से सिंचित किया गया था। इस दिन गौओं का नमक दिया जाए, तथा माता, बहिन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को एक-एक जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए। इस मास में नृत्य-गीतादि का आयोजन कर एक उत्सव भी किया जाना चाहिए।

मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को ही 'दत्तात्रेय जयन्ती' मनायी जानी चाहिए।

मार्गशीर्ष मास विशेष
(इस साल 29 Nov' 2012 to 28th Dec' 2012 )

१) मार्गशीर्ष मास में इन तीन के पाठ की बहुत ज्यादा महिमा है ..... विष्णुसहस्त्र नाम ....भगवत गीता.... और गजेन्द्रमोक्ष की खूब महिमा है...खूब पढ़ो .... दिन में २ बार -३ बार

२) इस मास में 'श्रीमद भागवत' ग्रन्थ को देखने की भी महिमा है .... स्कन्द पुराण में लिखा है .... घर में अगर भागवत हो तो एक बार दिन में उसको प्रणाम करना

३) इस मास में अपने गुरु को .... इष्ट को ...." ॐ दामोदराय नमः " कहते हुए प्रणाम करने की बड़ी भारी महिमा है

४) शंख में तीर्थ का पानी भरो और घर में जो पूजा का स्थान है उसमें भगवान - गुरु उनके ऊपर से शंख घुमाकर भगवान का नाम बोलते हुए वो जल घर की दीवारों पर छाटों ...... उससे घर में शुद्धि बढ़ती है...शांति बढ़ती है ....कलेश झगड़े दूर होते है।

जाने अगहन मास को क्यों कहते हैं मार्गशीर्ष

हिन्दू धर्म के अनुसार वर्ष का नवां महीना अगहन कहलाता है| अगहन मास को मार्गशीर्ष नाम से भी जाना जाता है| क्या आपको पता है अगहन मास को मार्गशीर्ष नाम से क्यों जाना जाता है? यदि नहीं तो आज हम आपको बताते हैं कि अगहन मास को मार्गशीर्ष नाम से क्यों जानते हैं| 

आपको बता दें कि अगहन मास को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का ही एक रूप है।

अगहन मास को मार्गशीर्ष क्यों कहा जाता है? इस संबंध में शास्त्रों में कहा गया है कि इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से है। ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र 27 होते हैं जिसमें से एक है मृगशिरा नक्षत्र| इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है। इसी वजह से इस मास को मार्गशीर्ष मास के नाम से जाना जाता है| 

भागवत के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा था कि सभी महिनों में मार्गशीर्ष श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है। मार्गशीर्ष मास में श्रद्धा और भक्ति से प्राप्त पुण्य के बल पर हमें सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस माह में नदी स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। 

श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष मास की महत्ता गोपियों को भी बताई थी। उन्होंने कहा था कि मार्गशीर्ष माह में यमुना स्नान से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊंगा। तभी से इस माह में नदी स्नान का खास महत्व माना गया है।

मार्गशीर्ष में नदी स्नान के लिए तुलसी की जड़ की मिट्टी व तुलसी के पत्तों से स्नान करना चाहिए। स्नान के समय ऊँ नमो नारायणाय या गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए।

रामायण है क्या?


via Gauri Rai
रामायण है क्या?

दो अलग अलग स्थानो पर मैने रामायण पर जो विचार पढे और जंचे उस आधार पर मेरे लिये रामायण एक स्पष्ट और सुंदर सांकेतिक कथा है. और क्यों ना हो आखिर इसे एक बार शिव ने पार्वती को सुनाया है! हनुमान को शंकर-सुवन यानी उनका अवतार कहा गया है.

यह मानवीय चेतना के ईश्वर से वियोग, और फ़िर योग के तरीके की कथा है.

राम ईश्वर हैं. सीता चेतना है- हमारी कॉंशियसनेस है, जिसे कुण्डलिनी शक्ति भी कहा जाता है. रावण हमारी तामसिक प्रवृत्ती है. यह तामसिक प्रवृत्ती चेतना को हर कर उसे ईश्वर से दूर, दक्षिण दिशा में (मूलाधार में) ले जाती है. मूलाधार में हमारी चेतना तामसिक प्रवृती के प्रभाव में अधोगामी या निष्क्रीय हो कर पडी रहती है.

हनुमान यानी पवन के पुत्र यानी प्राणवायू ही एकमात्र शक्ति हैं जो मनरूपी सागर को पार कर मूल-चेतना तक ईश्वर का संदेश पहुंचा सके, उसके उर्ध्वगमन हेतू सेतू बना सके. रावण की लंका अर्थात तामसिक प्रभावों को नष्ट कर सके. प्राणायाम और ध्यान की विधियों से यह संभव होता है. प्राणवायू की सहायता से ईश्वर चेतना को उपर उठा कर उसके साथ् सायुज्य स्थापित कर लेते हैं.

सात्विक प्रवृत्तीवाले (लक्ष्मण) को ईश्वर सर्वाधिक प्रेम देते हैं और हमेशा अपने साथ रखते हैं. सात्विक प्रवृत्तीवाले (लक्ष्मण) को ईश्वर की सेवा के लिये अपने लौकिक संबंध [पत्नि आदी] भी भूल जाते हैं. सात्विक (लक्ष्मण की बनाई हुई लक्ष्मणरेखा रूपी) सीमा को तोडने पर ही चेतना(सीता) तामसिक शक्तियों के संपर्क मे आती है. ईश्वर की कृपा से वानर भी अनुशासित सेना बना लेते हैं ठीक वैसे ही पवन प्राण का संचार करती है.

तामसिक प्रभावों भी से चेतना की रक्षा ऐसे करनी चाहिए जैसे सीता लंका में रहीं. हनुमान (तप और ब्रह्मचर्य) की सहायता के बिना चेतना का उर्ध्वगमन संभव नही है. सीता की अग्निपरीक्षा चेतना के अग्निचक्र से गमन का संकेत है.

इससे यह भावार्थ भी निकलता है कि आध्यात्मिक चेतना पाने वाला मनुष्य राम तुल्य है.

यह भावार्थ मुझे काफ़ी हद तक संतुष्ट करता है. बाकी के चरित्र, नीतियां और मेलोड्रामे अगर ना होते तो जन-जन में रामायण की और रामलीला की लोकप्रियता के लिये क्या बचता?

क्यों शिवलिंग की ओर होता है नंदी का मुंह

जानिए क्यों शिवलिंग की ओर होता है नंदी का मुंह

शिव मंदिर में जाते ही सबसे पहले हमें शिव के वाहन नंदी के दर्शन होते हैं। नंदी के बारे में यह भी माना जाता है कि यह पुरुषार्थ का प्रतीक है। यह तर्क ठीक है, किंतु हर विषय और वस्तु का संबंध आखिरकार पुरुषार्थ से ही जुड़ता है। शिव मंदिर में नंदी की खासियत होती है कि उसका मुंह शिवलिंग की ओर होता है। आखिर नंदी शिवलिंग की ओर ही मुख करके क्यों बैठा होता है? जानिए नंदी की इसी मुद्रा का व्यावहारिक जीवन के नजरिए से क्या महत्व है -

नंदी का संदेश है कि जिस तरह वह भगवान शिव का वाहन है। ठीक उसी तरह हमारा शरीर आत्मा का वाहन है। जैसे नंदी की नजर शिव की ओर होती है, उसी तरह हमारी नजर भी आत्मा की ओर हो। इस बात का सरल शब्दों में मतलब यही है कि हर व्यक्ति को अपने मानसिक, व्यावहारिक और वाणी के गुण-दोषों की परख करते रहना चाहिए। मन में हमेशा मंगल और कल्याण करने वाले देवता शिव की तरह दूसरों के हित, परोपकार और भलाई का भाव रखना चाहिए। नंदी का इशारा यही होता है कि शरीर का ध्यान आत्मा की ओर होने पर ही हर व्यक्ति चरित्र, आचरण और व्यवहार से पवित्र हो सकता है। इसे ही आम भाषा में मन का साफ होना कहते हैं। इससे शरीर भी स्वस्थ होता है और शरीर के सेहतमंद रहने पर ही मन भी शांत, स्थिर और दृढ़ संकल्प से भरा होता है। इस प्रकार संतुलित शरीर और मन ही हर कार्य और लक्ष्य में सफलता के करीब ले जाता है। इस तरह अब जब भी मंदिर में जाएं शिव के साथ नंदी की पूजा कर शिव के कल्याण भाव को मन में रखकर वापस आएं। इसी को शिवतत्व को जीवन में उतारना कहा जाता हैं।

Tuesday, December 18, 2012

शराब पीना सबसे बड़ा पाप है

पुरानी जमाने की बात है। एक राजा था। वह कहा करता था कि माँस खाना, व्यभिचार करना, झूठ बोलना, हिंसा करना सभी पाप हैं। लेकिन वह मद्यपान को पाप नहीं मानता था।

एक बार रात्रि के समय एक पंडित ने उसे मार्गदर्शन देने के लिए बुलाया।

उसके सामने माँस से बने व्यंजनों की थाली रखी गयी। पंडित ने कहा- ‘इसे खाओ।’ राजा ने यह कहकर उसे खाने से इन्कार कर दिया कि यह पाप है।

फिर उसके सामने एक बूढ़ा आदमी लाया गया। पंडित ने राजा से कहा - ‘इसे मार डालो’। राजा ने मना कर दिया- ‘नहीं, हिंसा करना पाप है।’

फिर उसके सामने एक सुन्दर लड़की लायी गयी। पंडित ने राजा से कहा- ‘इसे भोगो।’ राजा ने मना कर दिया- ‘नहीं, व्यभिचार करना पाप है।’

अब राजा के सामने शराब लायी गयी। पंडित ने राजा से कहा- ‘इसे पियो।’ राजा ने कहा- ‘हाँ, इसमें कोई पाप नहीं है।’ यह कहकर वह शराब को पी गया।

थोड़ी देर में ही उसे नशा चढ़ गया। तब उसकी भूख जागृत हुई। उसकी नजर माँस के व्यंजनों से भरी थाली पर पड़ी, तो वह उसे खा गया।

जब उसका पेट भर गया, तो उसकी कामवासना जागृत हुई। उसने वासनाभरी नजरों से लड़की की ओर देखा और उस पर झपटने लगा। लड़की ने शर्माकर बूढ़े आदमी की ओर इशारा कर दिया। राजा ने तत्काल तलवार निकालकर उस बूढ़े का सिर काट दिया। फिर उसने उस लड़की के साथ संभोग किया। इसके बाद वह निढाल होकर सो गया।

सुबह जब उसका नशा उतरा, तो उसे बताया गया कि शराब के नशे में उसने रात्रि को क्या-क्या कर डाला। यह जानकर राजा को बहुत पश्चाताप हुआ। उसने कहा- ‘शराब पीना ही सबसे बड़ा पाप है, क्योंकि इसके कारण मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है और वह सारे पाप कर सकता है।’

उसी दिन से उसने अपने राज्य में शराब बनाने और पीने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया और इसका उल्लंघन करने वालों के लिए कठोरतम दंड का प्रावधान किया।

कर्म और भाग्य

कर्म कीजिए भाग्य आपका गुलाम बन जाएगा बहुत से लोग इस बात का रोना रोते रहते हैं कि उनका भाग्य ही खराब है। नसीब नहीं साथ दे रहा है इसलिए किसी काम में सफलता नहीं मिलती है। जबकि सच यह है कि भाग्य तो कर्म के अधीन है। हाथ की लकीरों में अपने भाग्य 
को ढूंढने की बजाय अगर हम हाथों को कर्म करने के लिए प्रेरित करें तो भाग्य रेखा खुद ही मजबूत हो जाएगी और हम वह पा सकेंगे जिसकी हम चाहत रखते हैं।

कर्म के अनुसार बदलती हैं रेखा

हस्त रेखा विज्ञान के अनुसार कुछ रेखाओं को छोड़ दें तो बाकी सभी रेखाएं कर्म के अनुसार बदलती रहती है। अपनी हथेली को गौर से देखिए कुछ समय बाद रेखाओं में कुछ न कुछ बदलाव जरूर दिखेगा इसलिए कहा गया है कि रेखाओं से किस्मत नहीं कर्म से रेखाएं बदलती हैं।

सकल पदारथ एहि जग माहि

गोस्वामी तुलसीदास जी कर्म के मर्म को बखूबी जानते थे तभी उन्होंने कहा है "सकल पदारथ एहि जग माहिं। कर्महीन नर पावत नाहिं।।" तुलसीदास जी ने अपनी दोहा में स्पष्ट किया है कि इस संसार में सभी कुछ है जिसे हम पाना चाहें तो प्राप्त कर सकते हैं लेकिन जो कर्महीन अर्थात प्रयास नहीं करते इच्छित चीजों को पाने से वंचित रह जाते हैं।

सिंह को भी आलस्य त्यागना होगा

नीतिशास्त्र में कहा गया है कि 'न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:॥" इसका तात्पर्य यह है कि सिंह अगर शिकार करने न जाए और सोया रहे तो मृग स्वयं ही उसके मुख में नहीं चला जाएगा। यानी सिंह को अपनी भूख मिटानी है तो उसे आलस त्यागकर मृग का शिकार करना ही पड़ेगा।

इसी प्रकार हम सभी को जिस चीज की, जिस मंजिल की तलाश है उसके लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। प्रयास का फल देर से मिल सकता है लेकिन परिणाम आपके पक्ष में होगा यह मानकर सही दिशा में प्रयास करते रहना चाहिए।

पृथ्वी यानी कर्म की भूमि

शास्त्रों में पृथ्वी को कर्म भूमि कहा गया है। यहां आप जैसे कर्म करते हैं उसी के अनुरूप आपको फल मिलता है। भगवान श्री कृष्ण ने ही गीता में कर्म को ही प्रधान बताया है और कहा है कि हम मनुष्य के हाथों में मात्र कर्म है अतः हमें यही करना चाहिए।

फल क्या होगा वह हमें भगवान पर छोड़ देना चाहिए। भगवान अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते हैं इसलिए जो जैसा कर्म करता है उसे उसका उसे वैसा ही फल देते हैं। सीधी बात यह है कि 'कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा।' अर्थात जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता हैं

डेंगू का उपचार

डेंगू का उपचार
(जनहित में जारी)
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आजकल डेंगू एक बड़ी समस्या के तौर पर उभरा है, जिससे कई लोगों की जान जा रही है l यह एक ऐसा वायरल रोग है जिसका मेडिकल चिकित्सा पद्धति में कोई इलाज नहीं है परन्तु आयुर्वेद में इसका इलाज है और वो इतना सरल और सस्ता है की उसे कोई भी कर सकता है l

तीव्र ज्वर, सर में तेज़ दर्द, आँखों के पीछे दर्द होना, उल्टियाँ लगना, त्वचा का सुखना तथा खून के प्लेटलेट की 
मात्रा का तेज़ी से कम होना डेंगू के कुछ लक्षण हैं जिनका यदि समय रहते इलाज न किया
जाए तो रोगी की मृत्यु भी सकती है l

यदि आपके किसी भी जानकार को यह रोग हुआ हो और खून में प्लेटलेट की संख्या कम होती जा रही हो तो चित्र में दिखाई गयी चार चीज़ें रोगी को दें :

१) अनार जूस
२) गेहूं घास रस
३) पपीते के पत्तों का रस
४) गिलोय/अमृता/ अमरबेल सत्व

- अनार जूस तथा गेहूं घास रस नया खून बनाने तथा रोगी की रोग से लड़ने की शक्ति प्रदान करने के लिए है, अनार जूस आसानी से उपलब्ध है यदि गेहूं घास रस ना मिले तो रोगी को सेब का रस भी दिया जा सकता है l

- पपीते के पत्तों का रस सबसे महत्वपूर्ण है, पपीते का पेड़ आसानी से मिल जाता है उसकी ताज़ी पत्तियों का रस निकाल कर मरीज़ को दिन में २ से ३ बार दें , एक दिन की खुराक के बाद ही प्लेटलेट की संक्या बढ़ने लगेगी l

- गिलोय की बेल का सत्व मरीज़ को दिन में २-३ बार दें, इससे खून में प्लेटलेट की संख्या बढती है,रोग से लड़ने की शक्ति बढती है तथा कई रोगों का नाश होता है l यदि गिलोय की बेल आपको ना मिले तो किसी भी नजदीकी पतंजली चिकित्सालय में जाकर "गिलोय घनवटी" ले आयें जिसकी एक एक गोली रोगी को दिन में 3 बार दें l

यदि बुखार १ दिन से ज्यादा रहे तो खून की जांच अवश्य करवा लें l

यदि रोगी बार बार उलटी करे तो सेब के रस में थोडा नीम्बू मिला कर रोगी को दें, उल्टियाँ बंद हो जाएंगी l

ये रोगी को अंग्रेजी दवाइयां दी जा रही है तब भी यह चीज़ें रोगी की बिना किसी डर के दी जा सकती हैं l

डेंगू जितना जल्दी पकड़ में आये उतना जल्दी उपचार आसान हो जाता है और रोग जल्दी ख़त्म होता है l

रोगी के खान पान का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि बिना खान पान कोई दवाई असर नहीं करती l

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जय श्री राम

महाभारत काल में विमान होने का प्रमाणित सबूत मिला

महाभारत काल में विमान होने का .......प्रमाणित सबूत मिला .

रोमानिया में एक छोटा सा शहर है Aiud , यहाँ से कुछ मील की दुरी पर Mures नदी के पास खुदाई ...के दौरान लगभग चतुर्भुज आकृति तथा मिश्र धातु की एक कील मिली।

शोधकर्ता Boczor Iosif जांच की और बताया कि कील रेत में 35 फीट नीचे से निकली गयी है

Lars Fischinger और उनके एक सहयोगी, डा. Niederkorn, ने इस पर रिपोर्ट पेश की तथा Institute for Research and Design संस्थान में कील का विश्लेषण किया।

उन्होंने बताया की ये कील मिश्र धातु अर्थात 12 अलग-अलग धातुओं से बनी है। उनकी रिपोर्ट के अनुसार उस कील में एल्यूमीनियम 89% "6.2% तांबा / सिलिकॉन 2.84% / 1.81% / जस्ता 0.41% का नेतृत्व / टिन 0.33% / zirconium 0.2% / 0.11% / कैडमियम 0.००२४% निकल / / 0, 0023% कोबाल्ट / विस्मुट ०.०,००३% /
0.0002% चांदी और Galium के निशान." हैं

परीक्षण के परिणामस्वरुप शोधकर्ताओं हैरान थे की रोमानिया में एल्यूमीनियम को बनाना 1800 के बाद सिखा और इसे बनाने की लिए 1000 डिग्री फेरनहाइट तापमान की जरूरत भी पड़ती है फिर ये चीज है कहाँ से .

और जब ये कील मिली तो इसकी उम्र लगभग 400 वर्ष पुरानी आकी जा रही थी लेकिन जब इसका कार्बन 14 परिक्षण किया गया तो पता चला की ये कील तो 11,000 B.C.E. तक साल पुरानी है। जो विमान युग समय से मेल खाता है। तथा इसकी पहचान विमान के गियर के रूप में हुई जब विमान नीचे उतरता था तो ये कील उसे सपोर्ट देती थी।

1995 रोमानिया के एक और शोधकर्ता Florian Gheorghita, दो अलग प्रयोगशालाओं the Archaeological Institute of Cluj-Napoca and an independent Swiss lab में द्वारा दुबारा फिर इस कील की जांच की गयी और वही परिणाम सामने आये। Gheorghita अपनी पुस्तक Ancient Skies में लिखा है की कि यह एक विमान
लैंडिंग गियर का हिस्सा था।Aiud की रहस्यमय कील एक विमान लैंडिंग गियर का एक टुकड़ा है जो कि कुछ 11,000 साल पहले एक विमान गिर गया था।

जानिये अपनी गौरवशाली सभ्यता और संस्कृति को

सनातन धर्म सर्वाधिक प्राचीन है

असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ||
अर्थात हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो |

सनातन धर्म ही एक मात्र धर्म है जो सर्वोपरि है सर्वोत्तम है | सनातन धर्म सर्वाधिक प्राचीन है साथ ही सर्वाधिक वैज्ञानिक कसोटी पर खरा उतरने वाला धर्म है | जिस समय अंग्रेज संसार के अलग अलग कोनो में बस्तियां खोज रहा था उस समय सनातन धर्म के पालक नक्षतों की गरणा कर रहे थे , जिस समय दुनिया में कुरान और बाइबल लिखी जा रही थी सनातन धर्मी वेदों , पुराणों , धर्म ग्रंथो का अध्यन कर रहे थे | आयुर्वेद हो या जीरो प्रणाली हम सनातनियों की देन है | जब अंग्रेजो ने भारत में मैकुले शिक्षा का बीज बोया तब अंग्रेजो के घायल सैनिक हमारी ही शल्य चिकित्सा का लाभ उठा रहे थे , मैकुले ने अपने अभिभाषण में एक बार कहा था की एक अंग्रेज अफसर की क्रांतिकारियों ने नाक काट दी जिसको गाव के एक वैध ने जंगली दवाइयों से बिलकुल पहले जैसा ही जोड़ दिया | 
हम सनातनी परमपिता के द्वारा स्थापित संस्कृति और संस्कारों का पालन करते 
है , केवल सनातन पद्धिति से मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है इसको हमने प्रमाणित किया है , दुर्गम से दुर्गम क्षेत्रों जैसे , हिमालय की दुर्गम पर्वत श्रंखला में हम सनातनी बिना सुख सुविधाओं के हजारो वर्षो से तप करते आये थे और आज भी कई महान विभूतियाँ हिमालय की गोद में मोक्ष की प्राप्ति के लिए तप करती हुयी दिख जाती है | अमरनाथ यात्रा हो या कैलाश मानसरोवर यात्रा , वैष्णो देवी यात्रा हो या पूर्णागिरी माँ यात्रा या फिर बदरीनाथ , जगन्नाथ यात्रा | किसी कौम में ऐसे उधारण नहीं मिलते केवल सनातन धर्म और उंसकी शाखाओं से जुड़े धार्मिक लोग ही ऐसा संभव कर पाए है |

कण कण में हम भगवान् का प्रतिबिम्ब देखते है , बृक्ष , पर्वत , नदियों ,वनों को हम ही उचित सम्मान देते है पूजते है | पशु पक्षियों में भगवान् का वरदान स्वीकार करते है उनको पूजते है |

सनातन धर्मी ही केवल शान्ति से रहते है केवल हम सनातनी भारतवासी व नेपालवासी ( जो पहले भारतवर्ष का ही अंग था ) है जिसने आज तक अन्य देश पर दबाब बनाने के लिए उसे अपने अधिकार में लाने के लिए , उसके नागरिको को जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया | भले ही वी देश वो राज्य कितना ही कमजोर क्यों ना हो |

एक सम्मानित इतिहास रहा है हम सनातन धर्मियों का , विश्व का प्रत्येक राष्ट्र हमारी संस्कृति , सभ्यता का लोहा मानता आया है |

केवल हम सनातनी ही है जो सैकड़ो वर्षो तक मुगलों से लोहा लेते रहे और उनके भारत को इस्लामिक मुल्क बनाने के मनसूबे पर पेशाब करते रहे | अन्य कितने ही देश मुगलों के अत्याचार की आंधी में बह गए |

हम सनातनी ही है जिन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ते हुए कभी अपने लिए कुछ नहीं माँगा वरना जिन्ना पंथ के मुग़ल कीड़ो ने अपने लिए अलग इस्लामिक मुल्क मांग लिया |

इसलिए हे पथभ्रष्ट सेकुलर लोगो जागो ,, जागो सेकुलर नहीं सनातनी बनो ,, इन्डियन नहीं भारतीय बनो ||

दिल्ली में हुए रेप के सम्बन्ध में मेरी राय

दिल्ली में हुए रेप के सम्बन्ध में मेरी राय

मित्रों,

इस दिल हिला देनी घटना को फेसबुक पर बैठकर नहीं महसूस करा जा सकता. बलात्कार सिर्फ युवती की इज्जत को तार-तार नहीं करता बल्कि उसकी पूरी जिंदगी को ऐसा विषैला बना देती है जो उस युवती को न तो जीने देती है और न ही मरने देती है. वह बहन इस घटना के बाद जिंदगी को किस मायने से देखेगी यह अंदाजा लगाना हमारे लिए असंभव है. हम अपने अपने तर्क देकर अपने मन का बोझ हल्का कर लेंगे परन्तु क्या हम इस घटना के कारणों का निवारण करने में अपना सहस दिखायेंगे.

क्या हमारे समाज में हिम्मत है जो इस घटना के कारणों पर निरपेक्ष रूप से केवल विचार ही कर सके?

मै इस घटना को उन पाच छ लडको द्वारा अंजाम होना नहीं मानता बल्कि मेरा मानना है कि हमारा पूरा समाज इसके लिए जिम्मेदार है.

मेरे विचार से इसका प्रमुख कारण समाज का संस्कारविहीन होना व गिरता नैतिक स्तर है. टीवी,मीडिया पर बढ़ता अश्लीलता का प्रचार है. और सबसे महत्वपूर्ण यह कि ये सब बाते जानते हुए भी हमारा चूप रहना. यह जानते हुए भी कि बदलाव खतरनाक है हमने उसे सामाजिक स्वीकृति दी. ना को वैचारिक विरोध किया ना कोई क्रियात्मक. बस चुपचाप सहते रहे और उस बदलाव को हावी होने दिया. ना कभी MTV, FTV, Bigboss, Sunny Leone का विरोध किया.

मित्रों यदि आप उस बदलाव को सही मानते रहे है और यह मानते है कि ज़माने के साथ बदलना जरुरी है, इसलिए हम बदल गए. तो मेरा प्रश्न है कि फिर अब क्यों चिल्ला रहे हो. होने दो रेप.

आज कोई और तो कल आपके घर कि कोई औरत.

जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से होए.

ये तो उस बदलाव का परिणाम है जो हमने स्वीकार कर रखा है. जब विभिन्न टीवी चैनलों पर अश्लील सामग्री दिखायी जाती है तो आप परिवार के साथ उसे देखने में असहज महसूस करते है परन्तु कोई विराध करने कि हिम्मत कि है.

अब सबसे महत्व बात ये कि "आप विरोध क्यों नहीं करते है ?". - क्युकी आप विरोध करना ही नहीं चाहते. आप तो ये सब देखने चाहते है लेकिन अकेले में . कही अपने विरोध किया होता और सरकार या केबल वाले ने चेनल बंद कर दिया होता तो आप उस आनंद से वंचित रह जाते. बड़ा अनर्थ हो जाता.

अगर किसी को ये सीख देनी हो कि "शराब छोड़ दो. शराब पीना गलत है." तो पहले आपको शराब छोडनी पड़ेगी. ऐसे ही, यदि आप बच्चो को संस्कार देना चाहते हो तो पहले आपको संस्कारित होना पड़ेगा. यदि आप संस्कारवान होंगे तो आप समझेगे जीवन में नैतिकता का महत्व समझेंगे. आप इस घटना को एक लड़की पर अत्याचार होना तो देखे ही बल्कि एक लड़के द्वारा एक लड़की पर अत्याचार होना भी देखे. वो लड़के आपके भी हो सकते थे. तब आप क्या करते? आप शायद ये ही कहते कि मेरी नाक क्यों कटवा दी कमीने. पर उससे बड़े कमीने आप है जो आपने उस ऐसे संस्कार नहीं दिए कि वह अपने यह काम करने से अपने को रोकता.

आज समाज को नैतिक शिक्षा कि जरूररत है. संस्कारवान होने की और धार्मिक होने की बहुत जरुरत है. पाश्चात शिक्षा ने हमे बीच का बना के छोड़ दिया. ना हो हम अंग्रेज बने ना हम हिन्दुस्तानी रहे. यह बड़े शर्म कि बात है.

और एक बड़ी महत्वपूर्ण बात - हम कभी अंग्रेजो जैसे नहीं बन सकते क्योंकि हमारे खून में हिन्दूस्तानी अंश है. हम चाहे कितना भी नीच हो जाये कितना भी निचे गीर जाये वापस आ ही जाते है. क्योंकि सत्य कि सत्य के प्रति स्वाभाविक गति होती है. यह बड़ी गहरी बात है.

रही कड़े कानून बनाने कि बात तो उससे कुछ ज्यादा फायदा नहीं होगा. जब तक मूल से काम वासना का नियंत्रण नहीं होगा, ऐसी घटनाये होते रहेंगी. कानून का डर बड़ा सीमित होता है. ऐसी कई घटनाए सामने आती है कि कोई बाप, या भाई अपनी बेटी या बाहन से कुकर्म करता रहा कई सालो तक. बताओ कानून कि पहुच कहा रही. जब तक डर अंदर से नहीं होगा तब तक कुछ नहीं हो सकता. और अंदर से डर केवल धर्म ही देसकता है. इसलिए धार्मिक होने कि जरुरत है.

सार यह है कि - एक प्रकार कि घटनाये समाज के संस्कारहीन व धर्महीन होने का परिणाम है. यदि समाज धार्मिक होगा तो ज्यादा सुखी होगा वानस्पत भौतिकवादी होने से. भौतिकवादी होने का अंतिम परिणाम दू:ख ही है.

धर्मं कि रक्षा करे, यह आपकी रक्षा करेगा.

जय हिंद जय हिन्दू जय श्री राम.

धर्मप्रेमी

पंडित गौरव शर्मा, हरिद्वार


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Govt. Schemes By The Name of Nehru-Gandhi Family

CENTRAL GOVERNMENT SCHEMES

1.RAJIV GANDHI GRAMEEN VIDYUTIKARAN YOJANA, MINISTRY OF POWER
2. RAJIV GANDHI NATIONAL DRINKING WATER MISSION (RGNDWM)
3. RAJIV GANDHI NATIONAL CRÈCHE SCHEME
4. RAJIV GANDHI UDYAMI MITRA YOJANA
5. INDIRA AWAS YOJANA, MINISTRY OF RURAL AREAS AND ENVIRONMENT
6. INDIRA GANDHI NATIONAL OLD AGE PENSION SCHEME
7. JAWAHARLAL NEHRU URBAN RENEWAL MISSION, MINISTRY OF URBAN
8. JAWAHARLAL NEHRU ROJGAR YOJNA
9. RAJIV GANDHI SHRAMIK KALYAN YOJNA
10. INDIRA GANDHI CANAL PROJECT, FUNDED BY WORLD BANK
11. RAJIV GANDHI SHILPI SWASTHYA BIMA YOJANA,
12. INDIRA VIKAS PATRA


STATE GOVERNMENT SCHEMES

1. RAJIV GANDHI REHABILITATION PACKAGE
2. RAJIV GANDHI SOCIAL SECURITY SCHEME FOR POOR PEOPLE
3. RAJIV RATNA AWAS YOJNA
4. RAJIV GANDHI PRATHAMIK SHIKSHA MISSION , RAIGARH
5. RAJIV GANDHI SHIKSHA MISSION, MADHYA PRADESH
6. RAJIV GANDHI MISSION ON FOOD SECURITY , MADHYA PRADESH
7. RAJIV GANDHI MISSION ON COMMUNITY HEALTH, MADHYA PRADESH
8. RAJIV GANDHI RURAL HOUSING CORPORATION LIMITED (A GOVT COMPANY)
9. RAJIV GANDHI TOURISM DEVELOPMENT MISSION, RAJASTHAN
10. RAJIV GANDHI COMPUTER LITERACY PROGRAMME, ASSAM
11. RAJIV GANDHI SWAVLAMBAN ROJGAR YOJANA, GOVT. OF NCT OF DELHI
12. RAJIV GANDHI MOBILE AIDS COUNSELING AND TESTING SERVICES
13. RAJIV GANDHI VIDYARTHI SURAKSHA YOJANA, MAHARASHTRA
14. RAJIV GANDHI MISSION FOR WATER SHED MANAGEMENT, M.P.
15. RAJIV GANDHI FOOD SECURITY MISSION FOR TRIBAL AREAS, MP
16. RAJIV GANDHI HOME FOR HANDICAPPED, PONDICHERRY
17. RAJIV GANDHI BREAKFAST SCHEME, PONDICHERRY
18. RAJIV GANDHI AKSHAY URJA DIVAS, PUNJAB
19. RAJIV GANDHI ARTISANS HEALTH AND LIFE INSURANCE SCHEME, TAMIL NADU
20. RAJIV GANDHI ZOPADPATTI AND NIVARA PRAKALPA, MUMBAI
21. RAJIV AROGYA SRI PROGRAMME , GUJRAT STATE GOVT. SCHEME
22. RAJIV GANDHI ABHYUDAYA YOJANA, AP
23. RAJIV GANDHI COMPUTER SAKSHARTA MISSION, JABALPUR
24. RAJIV GANDHI BRIDGES AND ROADS INFRASTRUCTURE DEVELOPMENT HARYANA
25. RAJIV GANDHI GRAMIN NIWARA PRAKALP, MAHARASHTRA GOVT.
26. INDIRA GANDHI UTKRISHTHA CHHATTERVRITTI YOJNA HIMACHAL PRADESH
27. INDIRA GANDHI WOMEN PROTECTION SCHEME, MAHARASHTRA GOVT.
28. INDIRA GANDHI PRATHISTHAN, HOUSING AND URBAN PLANNING, UP GOVT
29. INDIRA KRANTHI PATHAM SCHEME, ANDHRA PRADESH
30. INDIRA GANDHI NAHAR PARIYOJANA, STATE GOVT. SCHEME
31. INDIRA GANDHI VRUDDHA BHUMIHEEN SHETMAJOOR ANUDAN YOJANA, MAHARASHTRA
32. INDIRA GANDHI NAHAR PROJECT (IGNP), JAISALMER, GOVT. OF RAJASTHAN
33. INDIRA GANDHI NIRADHAR YOJNA, GOVT. OF MAHARASHTRA
34. INDIRA GANDHI KUPPAM, STATE GOVT. WELFARE SCHEME FOR TSUNAMI
35. INDIRA GANDHI DRINKING WATER SCHEME-2006, HARYANA GOVT.
36. INDIRA GANDHI NIRADHAR OLD, LANDLESS, DESTITUTE WOMEN MAHARASHTRA GOVT.
37. INDIRA GANDHI WOMEN PROTECTION SCHEME , MAHARASHTRA GOVT.
38. INDIRA GAON GANGA YOJANA, CHATTISGARH
39. INDIRA SAHARA YOJANA , CHATTISGARH
40. INDIRA SOOCHNA SHAKTI YOJANA, CHATTISGARH
41. INDIRA GANDHI BALIKA SURAKSHA YOJANA , HP
42. INDIRA GANDHI GARIBI HATAO YOJANA (DPIP), MP
43. INDIRA GANDHI SUPER THERMAL POWER PROJECT , HARYANA GOVT.
44. INDIRA GANDHI WATER PROJECT, HARYANA GOVT.
45. INDIRA GANDHI SAGAR PROJECT, BHANDARA DISTRICT GOSIKHURD MAHARASHTRA
46. INDIRA JEEVITHA BIMA PATHAKAM, AP GOVT
47. INDIRA GANDHI PRIYADARSHANI VIVAH SHAGUN YOJANA, HARYANA GOVT.
48. INDIRA MAHILA YOJANA SCHEME, MEGHALAYA GOVT
49. INDIRA GANDHI CALF REARING SCHEME, CHHATTISGARH GOVT.
50. INDIRA GANDHI PRIYADARSHINI VIVAH SHAGUN YOJANA, HARYANA GOVT.
51. INDIRA GANDHI CALF REARING SCHEME, THE GOVERNMENT OF ANDHRA
52. INDIRA GANDHI LANDLESS AGRICULTURE LABOUR SCHEME, MAHARASHTRA GOVT.


UNIVERSITIES/ EDUCATION INSTITUTES

1. RAJIV GANDHI GOLD CUP KABADDI TOURNAMENT
2. RAJIV GANDHI SADBHAVANA RUN
3. RAJIV GANDHI FEDERATION CUP BOXING CHAMPIONSHIP
4. RAJIV GANDHI INTERNATIONAL TOURNAMENT (FOOTBALL)
5. NSCI – RAJIV GANDHI ROAD RACES, NEW DELHI
6. RAJIV GANDHI BOAT RACE, KERALA
7. RAJIV GANDHI INTERNATIONAL ARTISTIC GYMNASTIC TOURNAMENT
8. RAJIV GANDHI KABBADI MEET
9. RAJIV GANDHI MEMORIAL ROLLER SKATING CHAMPIONSHIP
10. RAJIV GANDHI MEMORIAL MARATHON RACE, NEW DELHI
11. RAJIV GANDHI INTERNATIONAL JUDO CHAMPIONSHIP, CHANDIGARH
12. RAJEEV GANDHI MEMORIAL TROPHY FOR THE BEST COLLEGE, CALICUT
13. RAJIV GANDHI RURAL CRICKET TOURNAMENT, BY RAHUL GANDHI IN AMETHI
14. RAJIV GANDHI GOLD CUP (U-21), FOOTBALL
15. RAJIV GANDHI TROPHY (FOOTBALL)
16. RAJIV GANDHI AWARD FOR OUTSTANDING SPORTSPERSONS
17. ALL INDIRA RAJIV GANDHI BASKETBALL (GIRLS) TOURNAMENT, DELHI
18. ALL INDIA RAJIV GANDHI WRESTLING GOLD CUP, ORGANIZED BY DELHI STATE
19. RAJIV GANDHI MEMORIAL JHOPADPATTI FOOTBALL TOURNAMENT, RAJURA
20. RAJIV GANDHI INTERNATIONAL INVITATION GOLD CUP FOOTBALL, JAMSHEDPUR
21. RAJIV GANDHI MINI OLYMPICS, MUMBAI
22. RAJIV GANDHI BEACHBALL KABADDI FEDERATION
23. RAJIV GANDHI MEMORIAL TROPHY PRERANA FOUNDATION
24. INTERNATIONAL INDIRA GANDHI GOLD CUP TOURNAMENT
25. INDIRA GANDHI INTERNATIONAL HOCKEY TOURNAMENT
26. INDIRA GANDHI BOAT RACE
27. JAWAHARLAL NEHRU INTERNATIONAL GOLD CUP FOOTBALL TOURNAMENT.
28. JAWAHARLAL NEHRU HOCKEY TOURNAMENT.


STADIUM

1. INDIRA GANDHI SPORTS COMPLEX, DELHI
2. INDIRA GANDHI INDOOR STADIUM, NEW DELHI
3. JAWAHARLAL NEHRU STADIUM, NEW DELHI
4. RAJIV GANDHI SPORTS STADIUM, BAWANA
5. RAJIV GANDHI NATIONAL FOOTBALL ACADEMY, HARYANA
6. RAJIV GANDHI AC STADIUM, VISHAKHAPATNAM
7. RAJIV GANDHI INDOOR STADIUM, PONDICHERRY
8. RAJIV GANDHI STADIUM, NAHARIAGUN, ITANAGAR
9. RAJIV GANDHI BADMINTON INDOOR STADIUM, COCHIN
10. RAJIV GANDHI INDOOR STADIUM, KADAVANTHRA,ERN AKULAM
11. RAJIV GANDHI SPORTS COMPLEX , SINGHU
12. RAJIB GANDHI MEMORIAL SPORTS COMPLEX, GUWAHATI
13. RAJIV GANDHI INTERNATIONAL STADIUM, HYDERABAD
14. RAJIV GANDHI INDOOR STADIUM, COCHIN
15. INDIRA GANDHI STADIUM, VIJAYAWADA, ANDHRA PRADESH
16. INDIRA GANDHI STADIUM, UNA, HIMACHAL PRADESH
17. INDIRA PRIYADARSHINI STADIUM, VISHAKHAPATNAM
18. INDIRA GANDHI STADIUM, DEOGARH, RAJASTHAN
19. GANDHI STADIUM, BOLANGIR, ORISSA

AIRPORTS/ PORTS

1. RAJIV GANDHI INTERNATIONAL AIRPORT, NEW HYDERABAD, A.P.
2. RAJIV GANDHI CONTAINER TERMINAL, COCHIN
3. INDIRA GANDHI INTERNATIONAL AIRPORT, NEW DELHI
4. INDIRA GANDHI DOCK, MUMBAI
5. JAWAHARLAL NEHRU NAVA SHEVA PORT TRUST, MUMBAI


UNIVERSITIES/ EDUCATION INSTITUTES

1. RAJIV GANDHI INDIAN INSTITUTE OF MANAGEMENT, SHILONG
2. RAJIV GANDHI INSTITUTE OF AERONAUTICS, RANCHI, JHARKHAND
3. RAJIV GANDHI TECHNICAL UNIVERSITY, GANDHI NAGAR, BHOPAL, M.P.
4. RAJIV GANDHI SCHOOL OF INTELLECTUAL PROPERTY LAW, KHARAGPUR, KOLKATA
5. RAJIV GANDHI AVIATION ACADEMY, SECUNDRABAD
6. RAJIV GANDHI NATIONAL UNIVERSITY OF LAW, PATIALA, PUNJAB
7. RAJIV GANDHI NATIONAL INSTITUTE OF YOUTH DEVELOPMENT, TAMIL NADU
8. RAJIV GANDHI AVIATION ACADEMY, BEGUMPET, HYDERABAD, A.P
9. RAJIV GANDHI INSTITUTE OF TECHNOLOGY, KOTTAYAM, KERALA
10. RAJIV GANDHI COLLEGE OF ENGINEERING RESEARCH&TECHNOLOGY, MAHARASHTRA
11. RAJIV GANDHI COLLEGE OF ENGINEERING, AIROLI, NAVI MUMBAI, MAHARASHTRA
12. RAJIV GANDHI UNIVERSITY, ITANAGAR, ARUNACHAL PRADESH
13. RAJIV GANDHI INSTITUTE OF TECHNOLOGY, CHOLA NAGAR, BANGALORE, KARNATAKA
14. RAJIV GANDHI PROUDYOGIKI VISHWAVIDYALAYA , GANDHI NAGAR, BHOPAL, M.P.
15. RAJIV GANDHI D.E.D. COLLEGE, LATUR, MAHARASHTRA
16. RAJIV GANDHI COLLEGE, SHAHPURA, BHOPAL
17. RAJIV GANDHI FOUNDATION, RAJIV GANDHI INSTITUTE, NEW DELHI
18. RAJIV GANDHI INSTITUTE OF PETROLEUM TECHNOLOGY, RAEBARELI, U.P.
19. RAJIV GANDHI HOMEOPATHIC MEDICAL COLLEGE, BHOPAL, M.P.
20. RAJIV GANDHI INSTITUTE OF POST GRADUATE STUDIES, EAST GODAVARI
DISTRICT, A.P.
21. RAJIV GANDHI COLLEGE OF EDUCATION, THUMKUR, KARNATAKA
22. RAJIV GANDHI COLLEGE OF VETERINARY&ANIMAL SCIENCES, TAMIL NADU
23. RAJIV GANDHI INSTITUTE OF IT AND BIOTECHNOLOGY, BHARTIYA VIDHYAPEETH
24. RAJIV GANDHI HIGH SCHOOL, MUMBAI, MAHARASHTRA
25. RAJIV GANDHI GROUP OF INSTITUTIONS, SATNA, M.P.
26. RAJIV GANDHI COLLEGE OF ENGINEERING, SRIPERUMBUDUR, TAMIL NADU
27. RAJIV GANDHI BIOTECHNOLOGY CENTRE, R.T.M., NAGPUR UNIVERSITY
28. RAJIV GANDHI CENTRE FOR BIOTECHNOLOGY, THIRUVANANTHAPU RAM, KERALA
29. RAJIV GANDHI MAHAVIDYALAYA, MADHYA PRADESH
30. RAJIV GANDHI POST GRADUATE COLLEGE, ALLAHABAD, U.P.
31. RAJIV GANDHI INSTITUTE OF TECHNOLOGY, BANGALORE, KARNATAKA
32. RAJIV GANDHI GOVT. PG AYURVEDIC COLLEGE, POPROLA, HIMACHAL PRADESH
33. RAJIV GANDHI COLLEGE, SATNA, M.P.
34. RAJIV GANDHI ACADEMY FOR AVIATION TECHNOLOGY, THIRUVANANTHAPU RAM, KERALA
35. RAJIV GANDHI MADHYAMIC VIDYALAYA, MAHARASHTRA
36. RAJIV GANDHI INSTITUTE OF CONTEMPORARY STUDIES, ISLAMABAD, PAKISTAN
37. RAJIV GANDHI CENTRE FOR INNOVATION AND ENTREPRENEURSHI P
38. RAJIV GANDHI INDUSTRIAL TRAINING CENTRE, GANDHINAGAR
39. RAJIV GANDHI UNIVERSITY OF KNOWLEDGE TECHNOLOGIES, ANDHRA PRADESH
40. RAJIV GANDHI INSTITUTE OF DISTANCE EDUCATION, COIMBATORE, TAMIL NADU
41. RAJIV GANDHI CENTRE FOR AQUACULTURE , TAMIL NADU
42. RAJIV GANDHI UNIVERSITY (ARUNACHAL UNIVERSITY), A.P.
43. RAJIV GANDHI SPORTS MEDICINE CENTRE (RGSMC), KERELA
44. RAJIV GANDHI SCIENCE CENTRE, MAURITUS
45. RAJIV GANDHI KALA MANDIR, PONDA, GOA
46. RAJIV GANDHI VIDYALAYA, MULUND, MUMBAI
47. RAJIV GANDHI MEMORIAL POLYTECHNIC, BANGALORE, KARNATAKA
48. RAJIV GANDHI MEMORIAL CIRCLE TELECOM TRAINING CENTRE (INDIA), CHENNAI
49. RAJIV GANDHI INSTITUTE OF PHARMACY, KASAGOD, KERALA
50. RAJIV GANDHI MEMORIAL COLLEGE OF AERONAUTICS, JAIPUR
51. RAJIV GANDHI MEMORIAL FIRST GRADE COLLEGE, SHIMOGA
52. RAJIV GANDHI MEMORIAL COLLEGE OF EDUCATION, JAMMU&KASHMIR
53. RAJIV GANDHI SOUTH CAMPUS, BARKACHA, VARANASI
54. RAJIV GANDHI MEMORIAL TEACHER’S TRAINING COLLEGE, JHARKHAND
55. RAJIV GANDHI DEGREE COLLEGE, RAJAHMUNDRY, A.P.
56. INDIRA GANDHI NATIONAL OPEN UNIVERSITY (IGNOU), NEW DELHI
57. INDIRA GANDHI INSTITUTE OF DEVELOPMENT&RESEARCH, MUMBAI, MAHARASHTRA
58. INDIRA GANDHI NATIONAL FOREST ACADEMY, DEHRADUN
59. INDIRA GANDHI RASHTRIYAURAN AKADEMI, RAE BARELI, UTTAR PRADESH
60. INDIRA GANDHI INSTITUTE OF DEVELOPMENT RESEARCH, MUMBAI
61. INDIRA GANDHI NATIONAL TRIBAL UNIVERSITY, ORISSA
62. INDIRA GANDHI B.ED. COLLEGE, MANGALORE
63. SMT. INDIRA GANDHI COLLEGE OF EDUCATION, NANDED, MAHARASHTRA
64. INDIRA GANDHI BALIKA NIKETAN B.ED. COLLEGE, JHUNJHUNU, RAJASTHAN
65. INDIRA GANDHI KRISHI VISHWAVIDYALAYA , RAIPUR, MADHYA PRADESH
66. SMT. INDIRA GANDHI COLLEGE OF ENGINEERING, NAVI MUMBAI, MAHARASHTRA
67. SMT. INDIRA GANDHI COLELGE, TIRUCHIRAPPALLI
68. INDIRA GANDHI ENGINEERING COLLEGE, SAGAR, MADHYA PRADESH
69. INDIRA GANDHI INSTITUTE OF TECHNOLOGY, KASHMERE GATE, DELHI
70. INDIRA GANDHI INSTITUTE OF TECHNOLOGY, SARANG, DIST. DHENKANAL, ORISSA
71. INDIRA GANDHI INSTITUTE OF AERONAUTICS, PUNE, MAHARASHTRA
72. INDIRA GANDHI INTEGRAL EDUCATION CENTRE, NEW DELHI
73. INDIRA GANDHI INSTITUTE OF PHYSICAL EDUCATION&SPORTS SCIENCES, DELHI
74. INDIRA GANDHI HIGH SCHOOL, HIMACHAL
75. INDIRA KALA SANGIT VISHWAVIDYALAYA , CHHATTISGARH
76. INDIRA GANDHI MEDICAL COLLEGE, SHIMLA
77. JAWAHARLAL NEHRU TECHNOLOGICAL UNIVERSITY, KUKATPALLY, ANDHRA PRADESH
78. NEHRU INSTITUTE OF MOUNTAINEERING, UTTARAKASHI
79. PANDIT JAWAHARLAL NEHRU INSTITUTE OF BUSINESS MANAGEMENT, VIKRAM UNIVERSITY
80. JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI
81. JAWAHARLAL NEHRU CENTRE FOR ADVANCED SCIENTIFIC RESEARCH, BANGALORE
82. JAWAHARLAL NEHRU TECHNOLOGICAL UNIVERSITY, KUKATPALLY, AP
83. JAWAHARLAL NEHRU ENGINEERING COLLEGE IN AURANGABAD, MAHARASHTRA
84. JAWAHARLAL NEHRU CENTRE FOR ADVANCED SCIENTIFIC RESEARCH, BANGALORE
85. JAWAHARLAL NEHRU INSTITUTE OF SOCIAL STUDIES, AFFILIATED(PUNE , MAHARASHTRA)
86. JAWAHARLAL NEHRU COLLEGE OF AERONAUTICS&APPLIED SCIENCES, COIMBATORE
87. JAWAHARLAL NEHRU INSTITUTE OF TECH, KATRAJ, DHANKWDI, PUNE, MAHARASHTRA
88. KAMAL KISHORE KADAM’S JAWAHARLAL NEHRU ENGINEERING COLLEGEMAHARASH TRA
89. JAWAHARLAL NEHRU INSTITUTE OF EDUCATION&TECHNOLOGICAL RESEARCH,
NANDED, MAHARASHRA
90. JAWAHARLAL NEHRU COLLEGE, ALIGARH
91. JAWAHARLAL NEHRU TECHNOLOGICAL UNIVERSITY, HYDERABAD
92. JAWAHARLAL NEHRU KRISHI VISHWAVIDYALAYA , JABALPUR
93. JAWAHARLAL NEHRU B.ED. COLLEGE, KOTA, RAJASTHAN
94. JAWAHARLAL NEHRU P.G. COLLEGE, BHOPAL
95. JAWAHARLAL NEHRU GOVERNMENT ENGINEERING COLLEGE, SUNDERNAGAR, H.P.
96. JAWAHARLAL NEHRU PUBLICSCHOOL, KOLAR ROAD, BHOPAL
97. JAWAHARLAL NEHRU TECHNOLOGICAL UNIVERSITY, KAKINADA, A.P.
98. JAWAHARLAL NEHRU INSTITUTE OF TECHNOLOGY, IBRAHIMPATTI, ANDHRA PRADESH


AWARDS

1. RAJIV GANDHI AWARD FOR OUTSTANDING ACHIEVEMENT
2. RAJIV GANDHI SHIROMANI AWARD
3. RAJIV GANDHI SHRAMIK AWARDS, DELHI LABOUR WELFARE BOARD
4. RAJIV GANDHI NATIONAL SADBHAVANA AWARD
5. RAJIV GANDHI MANAV SEVA AWARD
6. RAJIV GANDHI WILDLIFE CONSERVATION AWARD
7. RAJIV GANDHI NATIONAL AWARD SCHEME FOR ORIGINAL BOOK WRITING ON GYAN VIGYAN
8. RAJIV GANDHI KHEL RATNA AWARD
9. RAJIV GANDHI NATIONAL QUALITY AWARD
10. RAJIV GANDHI ENVIRONMENT AWARD FOR CLEAN TECHNOLOGY, GOVT. OF INDIA
11. RAJIVGANDHI TRAVELLING SCHOLARSHIP
12. RAJIV GANDHI(UK) FOUNDATION SCHOLARSHIP
13. RAJIV GANDHI FILM AWARDS (MUMBAI)
14. RAJIV GANDHI KHELRATNA PURASKAR
15. RAJIV GANDHI PARISARA PRASHASTI, KARNATAKA
16. RAJIVGANDHI VOCATIONAL EXCELLENCE AWARDS
17. RAJIV GANDHI EXCELLENCE AWARD
18. INDIRA GANDHI PEACE PRIZE
19. INDIRA GANDHI PRIZE FOR NATIONAL INTEGRATION
20. INDIRA GANDHI PRIYADARSHINI AWARD
21. INDIRA PRIYADARSHINI VRIKSHAMITRA AWARDS, MINISTRY OF ENVIRONMENT
AND FORESTS
22. INDIRA GANDHI MEMORIAL NATIONAL AWARD FORBEST ENVIRONMENTAL&ECOLOGICAL
23. INDIRA GANDHI PARYAVARAN PURASHKAR
24. INDIRA GANDHI NSS AWARD
25. INDIRA GANDHI AWARD FOR NATIONAL INTEGRATION
26. INDIRA GANDHI OFFICIAL LANGUAGE AWARD SCHEME
27. INDIRA GANDHI AWARD FOR BEST FIRST FILM
28. INDIRA GANDHI RAJBHASHA AWARDS FOR THE TOWN OFFICIAL LANGUAGE
29. INDIRA GANDHI PRIZE” FOR PEACE, DISARMAMENT AND DEVELOPMENT
30. INDIRA GANDHI PRIZE FOR POPULARIZATION OF SCIENCE
31. IMPLEMENTATION
32. INDIRA GANDHI SHIROMANI AWARD
33. INDIRA GANDHI NSS AWARD/NATIONAL YOUTH
34. INDIRA GANDHI PARYAVARAN PUSHAR AWARD – SEARCH N CORRECT
35. INDIRA GANDHI N.S.S AWARDS
36. INDIRA GANDHI AWARD FOR SOCIAL SERVICE, MP GOVT.
37. POST GRADUATE INDIRA GANDHI SCHOLARSHIP SCHEME
38. INDIRA GANDHI RAJBHASHA AWARD SCHEME
39. INDIRA GANDHI RAJBHASHA SHIELD SCHEME
40. INDIRA GANDHI VISION OF WILDLIFE CONSERVATION ZOO
41. JAWAHARLAL NEHRU AWARD FOR INTERNATIONAL PEACE
42. SOVIET LAND NEHRU AWARD, A CASH PRIZE OF RS. 20,000 GIVEN TO SHYAM
BENEGAL IN DEC 89, IN RECOGNITION OF THE ABOVE FILM.
43. JAWAHARLAL NEHRU BALKALYAN AWARDS OF RS.10,000 EACH TO 10 COUPLES
BY GOVT. OF MAHARASHTRA (TOI-28-4-89).
44. JAWAHARLAL NEHRU MEMORIAL FUND, NEW DELHI, FOR ACADEMIC ACHIEVEMENT
45. JAWAHARLAL NEHRU BIRTH CENTENARY RESEARCH AWARD FOR ENERGY
46. JAWAHARLAL NEHRU AWARD FOR INTERNATIONAL UNDERSTANDING
47. NEHRU BAL SAMITI BRAVERY AWARDS
48. JAWAHARLAL NEHRU MEMORIAL MEDAL
49. JAWAHARLAL NEHRU PRIZE” FROM 1998-99, TO BE GIVEN TO ORGANIZATIONS
(PREFERABLY NGOS) FOR POPULARIZATION OF SCIENCE.
50. JAWAHARLAL NEHRU NATIONAL SCIENCE COMPETITION
51. JAWARHARLAL NEHRU STUDENT AWARD FOR RESEARCH PROJECT OF EVOLUTION OF DNA


SCHOLARSHIP / FELLOWSHIP

1. RAJIV GANDHI SCHOLARSHIP SCHEME FOR STUDENTS WITH DISABILITIES
2. RAJIV GANDHI NATIONAL FELLOWSHIP SCHEME FOR SC/ST CANDIDATES,
MINISTRY OF SOCIAL JUSTICE AND EMPOWERMENT
3. RAJIV GANDHI NATIONAL FELLOWSHIP SCHEME FOR ST CANDIDATES
4. RAJIV GANDHI FELLOWSHIP, IGNOU
5. RAJIV GANDHI SCIENCE TALENT RESEARCH FELLOWS
6. RAJIV GANDHI FELLOWSHIP, MINISTRY OF TRIBAL AFFAIRS
7. RAJIV GANDHI NATIONAL FELLOWSHIP SCHEME
8. RAJIV GANDHI FELLOWSHIP SPONSORED
9. RAJIV GANDHI SCIENCE TALENT RESEARCH FELLOWSHIP
10. RAJIV GANDHI HUDCO FELLOWSHIPS IN THE HABITAT SECTOR
11. INDIRA GANDHI MEMORIAL FELLOWSHIPS CHECK
12. FULLBRIGHT SCHOLARSHIP NOW RENAMED FULLBRIGHT- JAWAHARLAL NEHRU SCHOLARSHIP
13. CAMBRIDGE NEHRU SCHOLARSHIPS, FOR RESEARCH AT CAMBRIDGE UNIV, LONDON
14. SCHEME OF JAWAHARLAL NEHRU FELLOWSHIPS FOR POST-GRADUATE STUDIES
15. NEHRU CENTENARY (BRITISH) FELLOWSHIPS/ AWARDS


NATIONAL PARKS/ SANCTUARIES/ MUSEUMS

1. RAJIV GANDHI (NAGARHOLE) WILDLIFE SANCTURY, KARNATAKA
2. RAJIV GANDHI WILDLIFE SANCTURY, ANDHRA PRADESH
3. INDIRA GANDHI NATIONAL PARK, TAMIL NADU
4. INDIRA GANDHI ZOOLOGICAL PARK , NEW DELHI
5. INDIRA GANDHI NATIONAL PARK, ANAMALAI HILLS ON WESTERN GHATS
6. INDIRA GANDHI ZOOLOGICAL PARK, VISHAKHAPATNAM
7. INDIRA GANDHI RASHTRIYA MANAV SANGRAHALAYA (IGRMS)
8. INDIRA GANDHI WILDLIFE SANCTUARY, POLLACHI
9. RAJIV GANDHI HEALTH MUSEUM
10. THE RAJIV GANDHI MUSEUM OF NATURAL HISTORY
11. INDIRA GANDHI MEMORIAL MUSEUM, NEW DELHI
12. JAWAHARLAL NEHRU MUSEUM IN AURANGABAD, MAHARASHTRA OPENED BY STATE GOVT..
13. JAWAHARLAL NEHRU MEMORIAL GALLERY, LONDON
14. JAWAHARLAL NEHRU PLANETARIUM, WORLI, MUMBAI.
15. JAWAHARLAL NEHRU NATIONAL SCIENCE EXHIBITION FOR CHILDREN


HOSPITALS/ MEDICAL INSTITUTIONS

1. RAJIV GANDHI UNIVERSITY OF HEALTH SCIENCE, BANGALORE, KARNATAKA
2. RAJIV GANDHI CANCER INSTITUTE&RESEARCH CENTRE, DELHI
3. RAJIV GANDHI HOME FOR HANDICAPPED, PONDICHERRY
4. SHRI RAJIV GANDHI COLLEGE OF DENTAL SCIENCE&HOSPITAL, BANGALORE, KARNATAKA
5. RAJIV GANDHI CENTRE FOR BIO TECHNOLOGY, THIRUVANTHAPURA M, KERALA
6. RAJIV GANDHI COLLEGE OF NURSING, BANGALORE, KARNATAKA
7. RAJIV GANDHI SUPER SPECIALTY HOSPITAL, RAICHUR
8. RAJIV GANDHI INSTITUTE OF CHEST DISEASES, BANGALORE, KARNATAKA
9. RAJIV GANDHI PARAMEDICAL COLLEGE, JODHPUR
10. RAJIV GANDHI MEDICAL COLLEGE, THANE, MUMBAI
11. RAJIV GANDHI INSTITUTE OF PHARMACY, KARNATAKA
12. RAJIV GANDHI HOSPITAL, GOA
13. RAJIV GANDHI MISSION ON COMMUNITY HEALTH, MADHYA PRADESH
14. RAJIV GANDHI SUPER SPECIALTY HOSPITAL, DELHI
15. RAJIV GANDHI HOMOEAOPATHIC MEDICAL COLLEGE, CHINAR PARK, BHOPAL, M.P
16. NORTH EASTERN INDIRA GANDHI OF HEALTH&MEDICAL SCIENCES, MEGHALAYA
17. INDIRA GANDHI MEDICAL COLLEGE, SHIMLA
18. INDIRA GANDHI INSTITUTE OF CHILD HEALTH, BANGALORE
19. INDIRA GANDHI INSTITUTE OF MEDICAL SCIENCES, SHEIKHPURA, PATNA
20. THE INDIRA GANDHI PAEDIATRIC HOSPITAL, AFGHANISTAN
21. INDIRA GANDHI INSTITUTE OF CHILD HEALTH HOSPITAL, BANGALORE
22. INDIRA GANDHI INSTITUTE OF CHILD HEATH, BANGALORE
23. INDIRA GANDHI MEDICAL COLLEGE, SHIMLA
24. INDIRA GANDHI INSTITUTE OF DENTAL SCIENCE, KERALA
25. INDIRA GANDHI MEMORIAL AYURVEDIC MEDICAL COLLEGE&HOSPITAL, BHUBANESHWAR
26. INDIRA GANDHI GOVERNMENT MEDICAL COLLEGE AND HOSPITAL, NAGPUR
27. INDIRA GANDHI EYE HOSPITAL AND RESEARCH CENTRE, KOLKATA
28. INDIRA GANDHI HOSPITAL, SHIMLA
29. INDIRA GANDHI WOMEN AND CHILDREN HOSPITAL , BHOPLA
30. INDIRA GANDHI GAS RELIEF HOSPITAL, BHOPAL
31. KAMLA NEHRU HOSPITAL, SHIMLA
32. CHACHA NEHRU BAL CHIKITSALAYA
33. JAWAHARLAL INSTITUTE OF POSTGRADUATE MEDICAL EDUCATION
34. JAWAHARLAL NEHRU CANCER HOSPITAL AND RESEARCH CENTRE, BHOPAL
35. JAWAHARLAL NEHRU MEDICAL COLLEGE IN RAIPUR.
36. NEHRU HOMOEOPATHIC MEDICAL COLLEGE&HOSPITAL, NEW DELHI
37. NEHRU, SCIENCE CENTRE, WORLI, MUMBAI
38. JAWAHARLAL NEHRU CANCER HOSPITAL&RESEARCH CENTRE, BHOPAL
39. PANDIT JAWAHARLAL NEHRU INSTITUTE OF HOMOEOPATHIC MEDICAL, MAHARASHTRA


INSTITUTIONS / CHAIRS / FESTIVALS

1. RAJIV GANDHI NATIONAL INSTITUTE OF YOUTH DEVELOPMENT. (RGNIYD)
2. RAJIV GANDHI NATIONAL GROUND WATER TRAINING&RESEARCH INST, HARYANA
3. RAJIV GANDHI FOOD SECURITY MISSION IN TRIBAL AREAS
4. RAJIV GANDHI NATIONAL INSTITUTE OF YOUTH DEVELOPMENT
5. RAJIV GANDHI SHIKSHA MISSION, CHHATTISGARH
6. RAJIV GANDHI CHAIR ENDOWMENT ESTABLISHED IN 1998
7. RAJIV GANDHI PROJECT – A PILOT TO PROVIDE EDUCATION THRU MASSIVE
SATELLITE CONNECTIVITY UP GRASSROOT LEVEL
8. RAJIV GANDHI RURAL HOUSING CORPORATION LIMITED (GOVERNMENT OF
KARNATAKA ENTERPRISE)
9. RAJIV GANDHI INFORMATION AND TECHNOLOGY COMMISSION
10. RAJIV GANDHI CHAIR FOR PEACE AND DISARMAMENT
11. RAJIV GANDHI MUSIC FESTIVAL
12. RAJIV GANDHI MEMORIAL LECTURE
13. RAJIV GANDHI AKSHAY URJA DIWAS
14. RAJIJIV GANDHI EDUCATION FOUNDATION, KERALA
15. RAJIV GANDHI PANCHAYATI RAJ CONVENTION
16. THE RAJIV GANDHI MEMORIAL EDUCATIONAL AND CHARITABLE SOCIETY, KASAGOD,KERALA
17. RAJIV GANDHI MEMORIAL TROPHY EKANKIKA SPARDHA,KARI ROAD
18. INDIRA GANDHI NATIONAL CENTRE FOR THE ARTS, JANPATH, NEW DELHI
19. INDIRA GANDHI PANCHAYATI RAJ&GRAMIN VIKAS SANSTHAN, JAIPUR, RAJASTHAN
20. INDIRA GANDHI CENTRE FOR ATOMIC RESEARCH (IGCAR), KALPAKKAM
21. INDIRA GANDHI INSTITUTE FOR DEVELOPMENT AND RESEARCH , MUMBAI
22. INDIRA GANDHI INSTITUTE OF CARDIOLOGY (IGIC), PATNA
23. INDIRA GANDHI NATIONAL CENTER FOR THE ARTS, NEW DELHI
24. INDIRA GANDHI NATIONAL FOUNDATION, THIRUVANANTHAPU RAM, KERALA
25. INDIRA GANDHI MAHILA SAHAKARI SOOT GIRANI LTD, MAHARASHTRA
26. INDIRA GANDHI CONSERVATION MONITORING CENTRE , MINISTRY OF ENVIR&FOREST
27. POST-GRADUATE INDIRA GANDHI SCHOLARSHIP FOR SINGLE GIRL CHILD
28. JAWAHAR SHETKARI SAHAKARI SAKHAR KARKHANA LTD.
29. NEHRU YUVA KENDRA SANGATHAN
30. JAWAHARLAL NEHRU CENTENARY CELEBRATIONS
31. POSTAL STAMPS OF DIFFERENT DENOMINATIONS AND ONE RUPEE COINS IN
MEMORY OF JAWAHARLAL NEHRU.
32. JAWAHARLAL NEHRU MEMORIAL TRUST (U.K.) SCHOLARSHIPS
33. JAWAHARLAL NEHRU CUSTOM HOUSE NHAVA SHEVA, MAHARASHTRA
34. JAWAHARLAL NEHRU CENTRE FOR. ADVANCED SCIENTIFIC RESEARCH, BANGALORE
35. JAWAHARLAL NEHRU CULTURAL CENTRE, EMBASSY OF INDIA, MOSCOW
36. PANDIT JAWAHARLAL NEHRU UDYOG KENDRA FOR JUVENILES, PUNE, MAHARASTRA
37. PANDIT JAWAHARLAL NEHRU COLLEGE OF AGRICULTURE AND RESEARCH, PONDICHERRY


ROADS/ BUILDINGS/PLACES

1. RAJIV CHOWK, DELHI
2. RAJIV GANDHI BHAWAN, SAFDARJUNG, NEW DELHI
3. RAJIV GANDHI HANDICRAFTS BHAWAN, NEW DELHI
4. RAJIV GANDHI PARK, KALKAJI, DELHI
5. INDIRA CHOWK, NEW DELHI
6. NEHRU PLANETARIUM, NEW DELHI
7. NEHRU YUVAK KENDRA, CHANAKYAPURI, NEW DELHI
8. NEHRU NAGAR, NEW DELHI
9. NEHRU PLACE, NEW DELHI
10. NEHRU PARK, NEW DELHI NEHRU HOUSE, BSZ MARG, NEW DELHI
11. JAWAHARLAL NEHRU GOVERNMENT HOUSE NEW DELHI
12. RAJIV GANDHI RENEWABLE ENERGY PARK, GURGAON, HARYANA
13. RAJIV GANDHI CHOWK, ANDHERI, MUMBAI
14. INDIRA GANDHI ROAD, MUMBAI
15. INDIRA GANDHI NAGAR, WADALA, MUMBAI
16. INDIRA GANDHI SPORTS COMPLEX, MULUND, MUMBAI
17. NEHRU NAGAR, KURLA, MUMBAI
18. JAWAHARLAL NEHRU GARDENS AT THANE, MUMBAI
19. RAJIV GANDHI MEMORIAL HALL, CHENNAI
20. JAWAHARLAL NEHRU ROAD, VADAPALANI, CHENNAI, TAMILNADU
21. RAJIV GANDHI SALAI (OLD MAHABALIPURAM ROAD NAMED AFTER RAJIV GANDHI)