Saturday, March 9, 2013

गौतम मुनि की प्रिय पत्नी - अहिल्या

अहिल्या पंच देव कन्याओं में से एक हैं । ये अनुपम सुन्दरी और गौतम मुनि की प्रिय पत्नी व पतिव्रता थीं । इंद्र पूर्णतयः दोषी थे, इसलिए उन्हें मुनि ने तत्काल शाप दे दिया । फिर सोचा कि इतने दिनों से साथ में रहकर भी अहिल्या मेरे स्वभाव को नहीं जान सकी । व्रह्म बेला की रोज की मेरी जो दिनचर्या है, उसके प्रतिकूल आचरण न ही मैंने कभी किया और न ही कर सकता हूँ । इसने इतना भी बिचार नहीं किया । इसकी मति पथरा गई है , अतः यह भी पत्थर हो जाए । इस प्रकार अहिल्या को भी शाप मिल गया ।
अहिल्या निर्जन वन में वर्षा, शीत, आतप आदि सहती हुई, भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा करने लगी । अब कोई एकमात्र श्रीराम की ही प्रतीक्षा कर रहा हो और श्रीराम न आएँ । ऐसा कहीं सम्भव है । श्रीरामजी सोचविमोचन हैं । वे सबके सोच संताप मिटाते हैं । लेकिन जो एकमात्र उन्हीं के भरोसे पड़ा हो । उसे वे कैसे भूल सकते हैं ?
आगे-आगे ऋषि विश्वामित्र चले जा रहे हैं । बीच में दीन-मलीनों का उद्धार करने वाले श्रीरामजी और सबसे पीछे लक्ष्मण जी । मुनि तो आगे थे ही, वे चलते जा रहे थे । परन्तु श्रीरामजी तो अब आगे जा ही नहीं सकते थे । उन्हें तो अहिल्या का उद्धार करना था । परन्तु कैसे ? गुरू जी चलते जाएँ और राम जी अहिल्या का उद्धार करने लग जाय, ऐसा कहीं सम्भव हो सकता है ?
श्रीरामजी दया, करूणा, शील, विनम्रता, कृतज्ञता, आदर्श, मर्यादा आदि जितने गुण हैं । सबके भंडार हैं, मूर्तिमान स्वरूप हैं । ऐसे में पहले तो गुरू की आज्ञा लेनी/मिलनी चाहिए । क्योंकि गुरू जी साथ हैं । यदि साथ न होते तब दूसरी बात थी । इसलिए श्रीरामजी ने स्वयं मुनिराज से पूछा कि मुनिवर यह शिला कैसी है ? यह स्थान इतना सूना-सूना क्यों है ? तब विश्वामित्र जी ने अहिल्या की सारी कथा कह सुनाई । और आज्ञा भी दिया कि “चरण कमल रज चाहत कृपा करो रघुवीर” ।
भगवान श्रीराम की चरण रज लगते ही अहिल्या शाप मुक्ति हो गई । अपने पूर्व स्वरूप को प्राप्त होकर भगवान का गुण गान करने लगी । उसे गौतम ऋषि का शाप वरदान लगा । क्योंकि उसे देव दुर्लभ श्रीराम जी के चरण रज की प्राप्ति हुई थी । जिसे मुनि लोग अनेक जन्मों की तपस्या से भी जल्दी प्राप्त नहीं कर पाते । अहिल्या सोचती है कि जिन भगवान के चरणों से निकली हुई गंगाजी को श्रीशिवजी हमेशा शीस पर रखते हैं । व्रह्मा जी हमेशा कमण्डल में लिए घूमते हैं । आज उन्हीं भगवान ने हमें चरण रज दे दिया । इस प्रकार मुक्त होकर अहिल्या अपने पति गौतम ऋषि को पुनः प्राप्त हुई ।
अहिल्या पंच देव कन्याओं में से एक हैं । ये अनुपम सुन्दरी और गौतम मुनि की प्रिय पत्नी व पतिव्रता थीं । इंद्र पूर्णतयः दोषी थे, इसलिए उन्हें मुनि ने तत्काल शाप दे दिया । फिर सोचा कि इतने दिनों से साथ में रहकर भी अहिल्या मेरे स्वभाव को नहीं जान सकी । व्रह्म बेला की रोज की मेरी जो दिनचर्या है, उसके प्रतिकूल आचरण न ही मैंने कभी किया और न ही कर सकता हूँ । इसने इतना भी बिचार नहीं किया । इसकी मति पथरा गई है , अतः यह भी पत्थर हो जाए । इस प्रकार अहिल्या को भी शाप मिल गया ।
अहिल्या निर्जन वन में वर्षा, शीत, आतप आदि सहती हुई, भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा करने लगी । अब कोई एकमात्र श्रीराम की ही प्रतीक्षा कर रहा हो और श्रीराम न आएँ । ऐसा कहीं सम्भव है । श्रीरामजी सोचविमोचन हैं । वे सबके सोच संताप मिटाते हैं । लेकिन जो एकमात्र उन्हीं के भरोसे पड़ा हो । उसे वे कैसे भूल सकते हैं ?
आगे-आगे ऋषि विश्वामित्र चले जा रहे हैं । बीच में दीन-मलीनों का उद्धार करने वाले श्रीरामजी और सबसे पीछे लक्ष्मण जी । मुनि तो आगे थे ही, वे चलते जा रहे थे । परन्तु श्रीरामजी तो अब आगे जा ही नहीं सकते थे । उन्हें तो अहिल्या का उद्धार करना था । परन्तु कैसे ? गुरू जी चलते जाएँ और राम जी अहिल्या का उद्धार करने लग जाय, ऐसा कहीं सम्भव हो सकता है ?
श्रीरामजी दया, करूणा, शील, विनम्रता, कृतज्ञता, आदर्श, मर्यादा आदि जितने गुण हैं । सबके भंडार हैं, मूर्तिमान स्वरूप हैं  । ऐसे में पहले तो गुरू की आज्ञा लेनी/मिलनी चाहिए । क्योंकि गुरू जी साथ हैं । यदि साथ न होते तब दूसरी बात थी । इसलिए श्रीरामजी ने स्वयं मुनिराज से पूछा कि मुनिवर यह शिला कैसी है ? यह स्थान इतना सूना-सूना क्यों है ? तब विश्वामित्र जी ने अहिल्या की सारी कथा कह सुनाई । और आज्ञा भी दिया कि “चरण कमल रज चाहत कृपा करो रघुवीर” ।
भगवान श्रीराम की चरण रज लगते ही अहिल्या शाप मुक्ति हो गई । अपने पूर्व स्वरूप को प्राप्त होकर भगवान का गुण गान करने लगी । उसे गौतम ऋषि का शाप वरदान लगा । क्योंकि उसे देव दुर्लभ श्रीराम जी के चरण रज की प्राप्ति हुई थी । जिसे मुनि लोग अनेक जन्मों की तपस्या से भी जल्दी प्राप्त नहीं कर पाते । अहिल्या सोचती है कि जिन भगवान के चरणों से निकली हुई गंगाजी को श्रीशिवजी हमेशा शीस पर रखते हैं । व्रह्मा जी हमेशा कमण्डल में लिए घूमते हैं । आज उन्हीं भगवान ने हमें चरण रज दे दिया ।  इस प्रकार मुक्त होकर अहिल्या अपने पति गौतम ऋषि को पुनः प्राप्त हुई ।

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