अवतार और कला
गर्गसंहिता के अनुसार श्रीहरि के अंशांश, अंश, आवेश, कला, पूर्ण और परिपूर्णतम- ये छः प्रकार के अवतार माने गये हैं।
महर्षि मरीचि आदि अंशांशावतार माने गये हैं। ब्रह्मादिदेवशिरोमणि अंशावतार माने गये हैं। श्रीकपिल, कूर्मादि कलावतार माने गये हैं। श्रीपरशुराम आदि आवेशावतार माने गये हैं। श्रीनृसिंह, राम, श्वेतद्वीपाधिपति हरि, वैकुण्ठ, यज्ञ, नर-नारायण पूर्णावतार माने गये हैं। श्रीकृष्णचन्द्र परिपूर्णतम पुरुषोत्तमावतार माने गये हैं-
“अंशांशोंऽशस्तथावेशः कला पूर्णः प्रकथ्यते।
व्यासाद्यैश्च स्मृतः षष्ठः परिपूर्णतमः स्वयम्।।” (श्रीगर्गसंहिता १।१६)
ब्रहम निर्गुण, निष्कल, निष्क्रिय, निर्विकल्प, निरञ्जन, निरवद्य, शान्त और सूक्ष्म है, तथापि त्रिगुणमयी माया के योग से उसे सकल भी कहा जाता है।
ब्रह्म के अभिव्यञ्जक और अभिव्यक्त स्वरुप का नाम कला है।
प्रश्नोपनिषद् (६।१-४) के अनुसार पुरुष (ब्रह्मात्मतत्व) षोडशकलासम्पन्न है- “षोडशकलं भारद्वाज पुरुषं॰॰॰॰॰॰॰॰”।
प्राण, श्रद्धा, आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी, इन्द्रिय, मन, अन्न, वीर्य, तप, मन्त्र, कर्म, लोक तथा नाम-ये षोडश कलाएँ हैं।
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