सनातन धर्म से ही सब संस्कृतियो का अविर्भाव हुआ है यह शत प्रतिशत सत्य है बाद मे कुछ आपापंथी सिरपिरो ने अपना2 पंथ चला लिया
हिन्दुओं की भांति इस्लाम में
भी वर्ष के चार महीने पवित्र माने जाते हैं। इस दौरान
भक्तगण बुरे कर्मों से बचते हैं और अपने भगवान
का ध्यान करते हैं, यह परम्परा भी हिन्दुओं के
“चातुर्मास” से ली गई है। “शबे-बारात”
शिवरात्रि का ही एक अपभ्रंश है, जैसा कि सिद्ध करने
की कोशिश है कि काबा में एक विशाल शिव मन्दिर था,
तत्कालीन लोग शिव की पूजा करते थे और
शिवरात्रि मनाते थे, शिव विवाह के इस पर्व को इस्लाम
में “शब-ए-बारात” का स्वरूप प्राप्त हुआ।
काबा में मुस्लिम श्रद्धालु उस
पवित्र जगह की सात बार परिक्रमा करते हैं,
दुनिया की किसी भी मस्जिद में “परिक्रमा” की कोई
परम्परा नहीं है, ऐसा क्यों? हिन्दू संस्कृति में प्रत्येक
मन्दिर में मूर्ति की परिक्रमा करने
की परम्परा सदियों पुरानी है। क्या काबा में यह
“परिक्रमा परम्परा” पुरातन शिव मन्दिर होने के काल से
चली आ रही है? अन्तर सिर्फ़ इतना है कि मुस्लिम
श्रद्धालु ये परिक्रमा उल्टी ओर (Anticlockwise)
करते हैं, जबकि हिन्दू भक्त सीधी तरफ़
यानी Clockwise। लेकिन हो सकता है कि यह बारीक
सा अन्तर इस्लाम के आगमन के बाद किया गया हो, जिस
प्रकार उर्दू भी दांये से बांये लिखी जाती है, उसी तर्ज
पर। “सात” परिक्रमाओं की परम्परा संस्कृत में
“सप्तपदी” के नाम से जानी जाती है, जो कि हिन्दुओं में
पवित्र विवाह के दौरान अग्नि के चारों तरफ़ लिये जाते हैं।
“मखा” का मतलब होता है “अग्नि”, और पश्चिम
एशिया स्थित “मक्का” में अग्नि के सात फ़ेरे
लिया जाना किस संस्कृति की ओर इशारा करता है?
काबा से जुड़ी एक और हिन्दू
संस्कृति परम्परा है “पवित्र गंगा” की अवधारणा।
जैसा कि सभी जानते हैं भारतीय संस्कृति में शिव के साथ
गंगा और चन्द्रमा के रिश्ते को कभी अलग
नहीं किया जा सकता। जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र
गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है। काबा के
पास भी एक पवित्र झरना पाया जाता है,
इसका पानी भी पवित्र माना जाता है, क्योंकि इस्लामिक
काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म)
ही माना जाता था। आज भी मुस्लिम श्रद्धालु हज के
दौरान इस आबे ज़मज़म को अपने साथ बोतल में भरकर ले
जाते हैं। ऐसा क्यों है कि कुम्भ में शामिल होने वाले
हिन्दुओं द्वारा गंगाजल को पवित्र मानने और उसे
बोतलों में भरकर घरों में ले जाने, तथा इसी प्रकार हज
की इस परम्परा में इतनी समानता है? इसके पीछे
क्या कारण है।
जैसा कि सभी जानते हैं राजा विक्रमादित्य शिव के परम भक्त थे, उज्जैन एक
समय विक्रमादित्य के शासनकाल में राजधानी रही,
जहाँ कि सबसे बड़े शिवलिंग महाकालेश्वर विराजमान हैं।
ऐसे में जब विक्रमादित्य का शासनकाल और क्षेत्र अरब
देशों तक फ़ैला था, तब क्या मक्का जैसी पवित्र जगह पर
उन्होंने शिव का पुरातन मन्दिर स्थापित नहीं किया होगा?
आज भी मक्का के काबा में प्राचीन
शिवलिंग के चिन्ह देखे जा सकते हैं। ऐसा प्रतीत होता है
कि काबा में प्रत्येक मुस्लिम जिस काले पत्थर को छूते
और चूमते हैं वह शिवलिंग ही है। हालांकि अरबी परम्परा ने
अब काबा के शिव मन्दिर की स्थापना के
चिन्हों को मिटा दिया है, लेकिन इसकी खोज
विक्रमादित्य के उन शिलालेखों से लगाई जा सकती है
जिनका उल्लेख “सायर-उल-ओकुल” में है।
कोई यह न समजे की भगवान शिव
केवल भारत में पूजित है । विदेशो में भी कई स्थानों पर
शिव मुर्तिया अथवा शिवलिंग प्राप्त हुए है कल्याण के
शिवांक के अनुसार उत्तरी अफ्रीका के इजिप्त में
तथा अन्य कई प्रान्तों में नंदी पर विराजमान शिव
की अनेक मुर्तिया है वहा के लोग बेल पत्र और दूध से
इनकी पूजा करते है । तुर्किस्थान के बबिलन नगर में
१२०० फिट का महा शिवलिंग है । पहले
ही कहा गया की शिव सम्प्रदायों से ऊपर है। मुसलमान
भाइयो के तीर्थ मक्का में भी मक्केश्वर नमक शिवलिंग
होना शिव का लीला ही है वहा के जमजम नमक कुएं में
भी एक शिव लिंग है जिसकी पूजा खजूर की पतियों से
होती है इस कारण यह है की इस्लाम में खजूर का बहूत
महत्व है । अमेरिका के ब्रेजील में न जाने कितने प्राचीन
शिवलिंग है । स्क्यात्लैंड में एक स्वर्णमंडित शिवलिंग है
जिसकी पूजा वहा के निवासी बहूत श्रदा से करते है ।
indochaina में भी शिवालय और शिलालेख उपलब्ध है ।
यहाँ विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं । शिव निश्चय
ही विश्वदेव है
जब इस्लाम मूर्तिपूजा के विरुद्ध है,
फिर इसका क्या कारण है कि मुसलमान अपनी नमाज़ में
काबा की ओर झुकते हैं और उसकी पूजा करते हैं????
इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं भी वैदिक परिवार में
हिन्दू के रूप में जन्में थे, और जब उन्होंने अपने हिन्दू
परिवार की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं
को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया, तब संयुक्त
हिन्दू परिवार छिन्न-भिन्न हो गया और काबा में स्थित
महाकाय शिवलिंग (संगे अस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में
पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम
को भी अपने प्राण गंवाने पड़े। उमर-बिन-ए-हश्शाम
का अरब में एवं केन्द्र काबा (मक्का) में इतना अधिक
सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज,
जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक
गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक थे,
उन्हें अबुल हाकम अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे।
बाद में मोहम्मद के नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईष्यावश अबुल
जिहाल ‘अज्ञान का पिता’ कहकर उनकी निन्दा की।
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस समय
वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनी कुमार, गरूड़, नृसिंह
की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी। साथ ही एक
मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की भी थी, और
दानी होने की प्रसिद्धि से उसका एक हाथ सोने
का बना था। ‘Holul’ के नाम से अभिहित यह
मूर्ति वहाँ इब्राहम और इस्माइल की मूर्त्तियो के बराबर
रखी थी। मोहम्मद ने उन सब मूर्त्तियों को तोड़कर
वहाँ बने कुएँ में फेंक दिया, किन्तु तोड़े गये शिवलिंग
का एक टुकडा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न केवल
प्रतिष्ठित है, वरन् हज करने जाने वाले मुसलमान उस
काले (अश्वेत) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे अस्वद’
को आदर मान देते हुए चूमते है।
भगवान शिव के जितने रूप और
उपासना के जितने विधान संसार भर में प्रचलित रहे हैं, वे
अवर्णनीय हैं। हमारे देश में ही नहीं, भगवान शिव
की प्रतिष्ठा पूरे संसार में ही फैली हुई है। उनके विविध
रूपों को पूजने का सदा से ही प्रचलन रहा है। शिव के मंदिर
अफगानिस्तान के हेमकुट पर्वत से लेकर मिस्र, ब्राजील,
तुर्किस्तान के बेबीलोन, स्कॉटलैंड के ग्लासगो, अमेरिका,
चीन, जापान, कम्बोडिया, जावा, सुमात्रा तक हर जगह
पाए गए हैं। अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग
को 'लात' कहा जाता था। मक्का के कावा में संग अवसाद
के यप में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है,
भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ
है। इस्लाम के प्रसार से पहले इजराइल और अन्य
यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण
मिले हैं। ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि हिरोपोलिस में वीनस
मंदिर के सामने दो सौ फीट ऊंचा प्रस्तर लिंग था।
यूरोपियन फणिश और इबरानी जाति के पूर्वज बालेश्वर
लिंड के पूजक थे। बाईबिल में इसका शिउन के रूप में
उल्लेख हुआ है
सऊदी अरब के पास
ही यमन नामक राज्य है इसका उल्लेख श्रीमद्भागवत
में मिलता है श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस के
विनाश किया था यह यमन राज्य उसी द्वीप पर स्थित है ।।
हिन्दुओं की भांति इस्लाम में
भी वर्ष के चार महीने पवित्र माने जाते हैं। इस दौरान
भक्तगण बुरे कर्मों से बचते हैं और अपने भगवान
का ध्यान करते हैं, यह परम्परा भी हिन्दुओं के
“चातुर्मास” से ली गई है। “शबे-बारात”
शिवरात्रि का ही एक अपभ्रंश है, जैसा कि सिद्ध करने
की कोशिश है कि काबा में एक विशाल शिव मन्दिर था,
तत्कालीन लोग शिव की पूजा करते थे और
शिवरात्रि मनाते थे, शिव विवाह के इस पर्व को इस्लाम
में “शब-ए-बारात” का स्वरूप प्राप्त हुआ।
काबा में मुस्लिम श्रद्धालु उस
पवित्र जगह की सात बार परिक्रमा करते हैं,
दुनिया की किसी भी मस्जिद में “परिक्रमा” की कोई
परम्परा नहीं है, ऐसा क्यों? हिन्दू संस्कृति में प्रत्येक
मन्दिर में मूर्ति की परिक्रमा करने
की परम्परा सदियों पुरानी है। क्या काबा में यह
“परिक्रमा परम्परा” पुरातन शिव मन्दिर होने के काल से
चली आ रही है? अन्तर सिर्फ़ इतना है कि मुस्लिम
श्रद्धालु ये परिक्रमा उल्टी ओर (Anticlockwise)
करते हैं, जबकि हिन्दू भक्त सीधी तरफ़
यानी Clockwise। लेकिन हो सकता है कि यह बारीक
सा अन्तर इस्लाम के आगमन के बाद किया गया हो, जिस
प्रकार उर्दू भी दांये से बांये लिखी जाती है, उसी तर्ज
पर। “सात” परिक्रमाओं की परम्परा संस्कृत में
“सप्तपदी” के नाम से जानी जाती है, जो कि हिन्दुओं में
पवित्र विवाह के दौरान अग्नि के चारों तरफ़ लिये जाते हैं।
“मखा” का मतलब होता है “अग्नि”, और पश्चिम
एशिया स्थित “मक्का” में अग्नि के सात फ़ेरे
लिया जाना किस संस्कृति की ओर इशारा करता है?
काबा से जुड़ी एक और हिन्दू
संस्कृति परम्परा है “पवित्र गंगा” की अवधारणा।
जैसा कि सभी जानते हैं भारतीय संस्कृति में शिव के साथ
गंगा और चन्द्रमा के रिश्ते को कभी अलग
नहीं किया जा सकता। जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र
गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है। काबा के
पास भी एक पवित्र झरना पाया जाता है,
इसका पानी भी पवित्र माना जाता है, क्योंकि इस्लामिक
काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म)
ही माना जाता था। आज भी मुस्लिम श्रद्धालु हज के
दौरान इस आबे ज़मज़म को अपने साथ बोतल में भरकर ले
जाते हैं। ऐसा क्यों है कि कुम्भ में शामिल होने वाले
हिन्दुओं द्वारा गंगाजल को पवित्र मानने और उसे
बोतलों में भरकर घरों में ले जाने, तथा इसी प्रकार हज
की इस परम्परा में इतनी समानता है? इसके पीछे
क्या कारण है।
जैसा कि सभी जानते हैं राजा विक्रमादित्य शिव के परम भक्त थे, उज्जैन एक
समय विक्रमादित्य के शासनकाल में राजधानी रही,
जहाँ कि सबसे बड़े शिवलिंग महाकालेश्वर विराजमान हैं।
ऐसे में जब विक्रमादित्य का शासनकाल और क्षेत्र अरब
देशों तक फ़ैला था, तब क्या मक्का जैसी पवित्र जगह पर
उन्होंने शिव का पुरातन मन्दिर स्थापित नहीं किया होगा?
आज भी मक्का के काबा में प्राचीन
शिवलिंग के चिन्ह देखे जा सकते हैं। ऐसा प्रतीत होता है
कि काबा में प्रत्येक मुस्लिम जिस काले पत्थर को छूते
और चूमते हैं वह शिवलिंग ही है। हालांकि अरबी परम्परा ने
अब काबा के शिव मन्दिर की स्थापना के
चिन्हों को मिटा दिया है, लेकिन इसकी खोज
विक्रमादित्य के उन शिलालेखों से लगाई जा सकती है
जिनका उल्लेख “सायर-उल-ओकुल” में है।
कोई यह न समजे की भगवान शिव
केवल भारत में पूजित है । विदेशो में भी कई स्थानों पर
शिव मुर्तिया अथवा शिवलिंग प्राप्त हुए है कल्याण के
शिवांक के अनुसार उत्तरी अफ्रीका के इजिप्त में
तथा अन्य कई प्रान्तों में नंदी पर विराजमान शिव
की अनेक मुर्तिया है वहा के लोग बेल पत्र और दूध से
इनकी पूजा करते है । तुर्किस्थान के बबिलन नगर में
१२०० फिट का महा शिवलिंग है । पहले
ही कहा गया की शिव सम्प्रदायों से ऊपर है। मुसलमान
भाइयो के तीर्थ मक्का में भी मक्केश्वर नमक शिवलिंग
होना शिव का लीला ही है वहा के जमजम नमक कुएं में
भी एक शिव लिंग है जिसकी पूजा खजूर की पतियों से
होती है इस कारण यह है की इस्लाम में खजूर का बहूत
महत्व है । अमेरिका के ब्रेजील में न जाने कितने प्राचीन
शिवलिंग है । स्क्यात्लैंड में एक स्वर्णमंडित शिवलिंग है
जिसकी पूजा वहा के निवासी बहूत श्रदा से करते है ।
indochaina में भी शिवालय और शिलालेख उपलब्ध है ।
यहाँ विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं । शिव निश्चय
ही विश्वदेव है
जब इस्लाम मूर्तिपूजा के विरुद्ध है,
फिर इसका क्या कारण है कि मुसलमान अपनी नमाज़ में
काबा की ओर झुकते हैं और उसकी पूजा करते हैं????
इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं भी वैदिक परिवार में
हिन्दू के रूप में जन्में थे, और जब उन्होंने अपने हिन्दू
परिवार की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं
को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया, तब संयुक्त
हिन्दू परिवार छिन्न-भिन्न हो गया और काबा में स्थित
महाकाय शिवलिंग (संगे अस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में
पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम
को भी अपने प्राण गंवाने पड़े। उमर-बिन-ए-हश्शाम
का अरब में एवं केन्द्र काबा (मक्का) में इतना अधिक
सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज,
जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक
गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक थे,
उन्हें अबुल हाकम अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे।
बाद में मोहम्मद के नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईष्यावश अबुल
जिहाल ‘अज्ञान का पिता’ कहकर उनकी निन्दा की।
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस समय
वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनी कुमार, गरूड़, नृसिंह
की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी। साथ ही एक
मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की भी थी, और
दानी होने की प्रसिद्धि से उसका एक हाथ सोने
का बना था। ‘Holul’ के नाम से अभिहित यह
मूर्ति वहाँ इब्राहम और इस्माइल की मूर्त्तियो के बराबर
रखी थी। मोहम्मद ने उन सब मूर्त्तियों को तोड़कर
वहाँ बने कुएँ में फेंक दिया, किन्तु तोड़े गये शिवलिंग
का एक टुकडा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न केवल
प्रतिष्ठित है, वरन् हज करने जाने वाले मुसलमान उस
काले (अश्वेत) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे अस्वद’
को आदर मान देते हुए चूमते है।
भगवान शिव के जितने रूप और
उपासना के जितने विधान संसार भर में प्रचलित रहे हैं, वे
अवर्णनीय हैं। हमारे देश में ही नहीं, भगवान शिव
की प्रतिष्ठा पूरे संसार में ही फैली हुई है। उनके विविध
रूपों को पूजने का सदा से ही प्रचलन रहा है। शिव के मंदिर
अफगानिस्तान के हेमकुट पर्वत से लेकर मिस्र, ब्राजील,
तुर्किस्तान के बेबीलोन, स्कॉटलैंड के ग्लासगो, अमेरिका,
चीन, जापान, कम्बोडिया, जावा, सुमात्रा तक हर जगह
पाए गए हैं। अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग
को 'लात' कहा जाता था। मक्का के कावा में संग अवसाद
के यप में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है,
भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ
है। इस्लाम के प्रसार से पहले इजराइल और अन्य
यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण
मिले हैं। ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि हिरोपोलिस में वीनस
मंदिर के सामने दो सौ फीट ऊंचा प्रस्तर लिंग था।
यूरोपियन फणिश और इबरानी जाति के पूर्वज बालेश्वर
लिंड के पूजक थे। बाईबिल में इसका शिउन के रूप में
उल्लेख हुआ है
सऊदी अरब के पास
ही यमन नामक राज्य है इसका उल्लेख श्रीमद्भागवत
में मिलता है श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस के
विनाश किया था यह यमन राज्य उसी द्वीप पर स्थित है ।।
mahakal bhakt Ravindra mankar -jai mahakal
ReplyDelete
ReplyDeleteहर धर्म की किताब मे लिखा हुआ है झूठ बोलना पाप है फिर भी तुम हिन्दु अपनी तरफ से हदीसे कुरआन की आयते सब झूठ क्यो लिखते है। आयत नम्बर हदीस नम्बर सब अपनी तरफ से झूठ लिख देते हो। शर्म नही आती तुम्हे। कयामत के दिन जब इंसाफ होगा तब तुम्हे झूठा इल्जाम लगाने का पता चल जायेगा । हद होती है हर चीज की। आपने काबे पर भी इल्जाम लगा दिया। वो अल्लाह का घर है। वहा पर नमाज पडी जाती है लिंग की पूजा नही होती। और क्या कहते हो तुम हमे काबे की सच्चाई सामने क्यो नही लाते हो। यूटयूब पर हजारो विडियो पडी हुयी है देख लो कोई लिंग विंग नही है वहा। बस जन्नत का एक गोल पत्थर है और हर पत्थर का मतलब लिंग नही होता। बाईचान्स मान लो वहा शिव लिंग है।तो क्या आपके शिव लिंग मे इतनी भी ताकत नही है जो वहा से आजाद हो सके। तुम्हारी गंदी नजरो मे सभी मुस्लिम अच्छे नही है इसलिए सारे मुस्लिमो को शिव मार सके। आप तो कहते हो शिव ने पूरी दुनिया बनाई तो क्या एक छोटा सा काम नही कर सकते।
इसलिए तो इन लिंग विंग पत्थरो के बूतो मे कोई ताकत नही होती। बकवास है हिन्दु धर्म।