Sunday, January 13, 2013

रामायण की विश्व यात्रा



रामायण की विश्व यात्रा अवश्य पढे और शेयर करे और जाने रामायण की विश्व यात्रा की कहानी

भारत के इतिहास में राम जैसा विजेता कोई नहीं हुआ। उन्होंने रावण और उसके सहयोगी अनेक राक्षसों का वध कर के न केवल भारत में शांति की स्थापना की बल्कि सुदूर पूर्व और आस्ट्रेलिया तक में सुख और आनंद की एक लहर व्याप्त कर दी। श्री राम अदभुत सामरिक पराक्रम व्यवहार कुशलता और विदेश नीति के स्वामी थे। उन्होंने किसी देश पर अधिकार नहीं किया लेकिन विश्व के अनेकों देशों में उनकी प्रशंसा के विवरण मिलते हैं जिससे पता चलता है कि उनकी लोकप्रियता दूर दूर तक फैली हुई थी।

आजकल मेडागास्कर कहे जाने वाले द्वीप से लेकर आस्ट्रेलिया तक के द्वीप समूह पर रावण का राज्य था। राम विजय के बाद इस सारे भू भाग पर राम की कीर्ति फैल गयी। राम के नाम के साथ रामकथा भी इस भाग में फैली और बरसों तक यहां के निवासियों के जीवन का प्रेरक अंग बनी रही।

श्री लंका और बर्मा में रामायण कई रूपों में प्रचलित है। लोक गीतों के अतिरिक्त रामलीला की तरह के नाटक भी खेले जाते हैं। बर्मा में बहुत से नाम राम के नाम पर हैं। रामावती नगर तो राम नाम के ऊपर ही स्थापित हुआ था।अमरपुर के एक विहार में राम लक्ष्मण सीता और हनुमान के चित्र आज तक अंकित हैं।

मलयेशिया में रामकथा का प्रचार अभी तक है। वहां मुस्लिम भी अपने नाम के साथ अक्सर राम लक्ष्मण और सीता नाम जोडते हैं।यहां रामायण को ''हिकायत सेरीराम'' कहते हैं।

थाईलैंड के पुराने रजवाडों में भरत की भांति राम की पादुकाएं लेकर राज्य करने की परंपरा पाई जाती है। वे सभी अपने को रामवंशी मनते थे।यहां ''अजुधिया'' ''लवपुरी'' और ''जनकपुर'' जैसे नाम वाले शहर हैं । यहां पर राम कथा को ''रामकीर्ति'' कहते हैं और मंदिरों में जगह जगह रामकथा के प्रसंग अंकित हैं।

हिन्द चीन के अनाम में कई शिलालेख मिले हैं जिनमें राम का यशोगान है। यहां के निवासियों में ऐसा विश्वास प्रचलित है कि वे वानर कुल से उत्पन्न हैं और श्रीराम नाम के राजा यहां के सर्वप्रथम शासक थे। रामायण पर आधारित कई नाटक यहां के साहित्य में भी मिलते है।

कम्बोडिया में भी हिन्दू सभ्यता के अन्य अंगों के साथ साथ रामायण का प्रचलन आज तक पाया जाता है। छढी शताब्दी के एक शिलालेख के अनुसार वहां कई स्थानों पर रामायण और महाभारत का पाठ होता था।

जावा में रामचंद्र राष्ट्रीय पुरूषोत्तम के रूप में सम्मानित हैं। वहां की सबसे बडी नदी का नाम सरयू है। ''रामायण'' के कई प्रसंगों के आधार पर वहां आज भी रात रात भर कठपुतलियों का नाच होता है। जावा के मंदिरों में वाल्मीकि रामायण के श्लोक जगह जगह अंकित मिलते हैं।

सुमात्रा द्वीप का वाल्मीकि रामायण में ''स्वर्णभूमि'' नाम दिया गया है। रामायण यहां के जनजीवन में वैसे ही अनुप्राणित है जैसे भारतवासियों के। बाली द्वीप भी थाईलैंड जावा और सुमात्रा की तरह आर्य संस्कृति का एक दूरस्थ सीमा स्तम्भ है। ''रामायण'' का प्रचार यहां भी घर घर में है।

इन देशों के अतिरिक्त फिलीपाइन चीन जापान और प्राचीन अमरीका तक राम कथा का प्रभाव मिलता है।

मैक्सिको और मध्य अमरीका की मय सभ्यता और इन्का सभ्यता पर प्राचीन भारतीय संस्कृति की जो छाप मिलती है उसमें रामायण कालीन संस्कारों का प्राचुर्य है। पेरू में राजा अपने को सूर्यवंशी ही नहीं ''कौशल्यासुत राम'' वंशज भी मानते हैं।''रामसीतव'' नाम से आज भी यहां ''राम सीता उत्सव'' मनाया जाता है।
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भारत के इतिहास में राम जैसा विजेता कोई नहीं हुआ। उन्होंने रावण और उसके सहयोगी अनेक राक्षसों का वध कर के न केवल भारत में शांति की स्थापना की बल्कि सुदूर पूर्व और आस्ट्रेलिया तक में सुख और आनंद की एक लहर व्याप्त कर दी। श्री राम अदभुत सामरिक पराक्रम व्यवहार कुशलता और विदेश नीति के स्वामी थे। उन्होंने किसी देश पर अधिकार नहीं किया लेकिन विश्व के अनेकों देशों में उनकी प्रशंसा के विवरण मिलते हैं जिससे पता चलता है कि उनकी लोकप्रियता दूर दूर तक फैली हुई थी।

आजकल मेडागास्कर कहे जाने वाले द्वीप से लेकर आस्ट्रेलिया तक के द्वीप समूह पर रावण का राज्य था। राम विजय के बाद इस सारे भू भाग पर राम की कीर्ति फैल गयी। राम के नाम के साथ रामकथा भी इस भाग में फैली और बरसों तक यहां के निवासियों के जीवन का प्रेरक अंग बनी रही।

श्री लंका और बर्मा में रामायण कई रूपों में प्रचलित है। लोक गीतों के अतिरिक्त रामलीला की तरह के नाटक भी खेले जाते हैं। बर्मा में बहुत से नाम राम के नाम पर हैं। रामावती नगर तो राम नाम के ऊपर ही स्थापित हुआ था।अमरपुर के एक विहार में राम लक्ष्मण सीता और हनुमान के चित्र आज तक अंकित हैं।

मलयेशिया में रामकथा का प्रचार अभी तक है। वहां मुस्लिम भी अपने नाम के साथ अक्सर राम लक्ष्मण और सीता नाम जोडते हैं।यहां रामायण को ''हिकायत सेरीराम'' कहते हैं।

थाईलैंड के पुराने रजवाडों में भरत की भांति राम की पादुकाएं लेकर राज्य करने की परंपरा पाई जाती है। वे सभी अपने को रामवंशी मनते थे।यहां ''अजुधिया'' ''लवपुरी'' और ''जनकपुर'' जैसे नाम वाले शहर हैं । यहां पर राम कथा को ''रामकीर्ति'' कहते हैं और मंदिरों में जगह जगह रामकथा के प्रसंग अंकित हैं।

हिन्द चीन के अनाम में कई शिलालेख मिले हैं जिनमें राम का यशोगान है। यहां के निवासियों में ऐसा विश्वास प्रचलित है कि वे वानर कुल से उत्पन्न हैं और श्रीराम नाम के राजा यहां के सर्वप्रथम शासक थे। रामायण पर आधारित कई नाटक यहां के साहित्य में भी मिलते है।

कम्बोडिया में भी हिन्दू सभ्यता के अन्य अंगों के साथ साथ रामायण का प्रचलन आज तक पाया जाता है। छढी शताब्दी के एक शिलालेख के अनुसार वहां कई स्थानों पर रामायण और महाभारत का पाठ होता था।

जावा में रामचंद्र राष्ट्रीय पुरूषोत्तम के रूप में सम्मानित हैं। वहां की सबसे बडी नदी का नाम सरयू है। ''रामायण'' के कई प्रसंगों के आधार पर वहां आज भी रात रात भर कठपुतलियों का नाच होता है। जावा के मंदिरों में वाल्मीकि रामायण के श्लोक जगह जगह अंकित मिलते हैं।

सुमात्रा द्वीप का वाल्मीकि रामायण में ''स्वर्णभूमि'' नाम दिया गया है। रामायण यहां के जनजीवन में वैसे ही अनुप्राणित है जैसे भारतवासियों के। बाली द्वीप भी थाईलैंड जावा और सुमात्रा की तरह आर्य संस्कृति का एक दूरस्थ सीमा स्तम्भ है। ''रामायण'' का प्रचार यहां भी घर घर में है।

इन देशों के अतिरिक्त फिलीपाइन चीन जापान और प्राचीन अमरीका तक राम कथा का प्रभाव मिलता है।

मैक्सिको और मध्य अमरीका की मय सभ्यता और इन्का सभ्यता पर प्राचीन भारतीय संस्कृति की जो छाप मिलती है उसमें रामायण कालीन संस्कारों का प्राचुर्य है। पेरू में राजा अपने को सूर्यवंशी ही नहीं ''कौशल्यासुत राम'' वंशज भी मानते हैं।''रामसीतव'' नाम से आज भी यहां ''राम सीता उत्सव'' मनाया जाता है।

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