ऋषि कौन हैं
ऋषि पुरातन समय के वे संत हैं जिन्होंने वैदिक रिचाओं की रचना की परन्तु वेद तो अपौरुषेय हैं ,अर्थात मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं हैं , तो ऋषि का अर्थ हुआ वे संत जिन्होनें समाधी में वेद मन्त्रों को सुना हैं , इस प्रकार ऋषि वेदों के दृष्टा हुए ,रचनाकार नहीं
''ऋषिर मंत्र दृष्तार न करतार :''
'' अर्थात ऋषि तो मन्त्रों के दृष्टा हैं ,रचना करने वाले नहीं सनातन धर्म में ऋषियों को सभी संतों ,महात्माओं ,दार्शनिकों में सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त है
वेद वास्तव में पुस्तकें नही हैं ,बल्कि यह वो ज्ञान है जो ऋषियों के ह्रदय में प्रकाशित हुआ ईश्वर वेदों के ज्ञान को सृष्टि के प्रारंभ के समय चार ऋषियों को देता है जो जैविक सृष्टि के द्वारा पैदा नही होते हैं इन ऋषियों के नाम हैं ,अग्नि ,वायु ,आदित्य और अंगीरा
1.ऋषि अग्नि ने ऋग्वेद को प्राप्त किया
2.ऋषि वायु ने यजुर्वेद को,
3.ऋषि आदित्य ने सामवेद को और
4.ऋषि अंगीरा ने अथर्ववेद को
इसके बाद इन चार ऋषियों ने दुसरे लोगों को इस दिव्य ज्ञान को प्रदान किया
कुल 1127 ऋषि हैं
ऋषियों की भिन्न भिन्न उपाधियाँ उनके अध्यात्मिक ऊँचाई के अनुसार होती हैं जैसे उदाहरण के लिए ब्रह्मऋषि को ऋषियों में सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त है ब्रह्मऋषि वे ऋषि हुआ करते हैं ,जिन्होनें ब्रह्म का अर्थ जान लिया है या ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति कर ली है , फिर महाऋषि होते हैं , महा का अर्थ है महान /बड़ा ,फिर राजऋषि हैं , उदाहरण के लिए रजा जनक राजऋषि थे सप्तिशी भी ब्रह्मऋषि हैं , उनमें से प्रमुख हैं वशिष्ठ ,विश्वामित्र ,अत्री ,अगस्त्य आदि
सप्त ऋषियों के अलग अलग नाम इसलिए हमें मिलते हैं क्यूंकि सात ऋषि ब्रह्माण्ड को बारी बारी से कार्यभार को सँभालते हैं ,और ये सभी सप्त ऋषि के श्रेणी में कभी न कभी आये थे
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