Wednesday, December 19, 2012

रामायण है क्या?


via Gauri Rai
रामायण है क्या?

दो अलग अलग स्थानो पर मैने रामायण पर जो विचार पढे और जंचे उस आधार पर मेरे लिये रामायण एक स्पष्ट और सुंदर सांकेतिक कथा है. और क्यों ना हो आखिर इसे एक बार शिव ने पार्वती को सुनाया है! हनुमान को शंकर-सुवन यानी उनका अवतार कहा गया है.

यह मानवीय चेतना के ईश्वर से वियोग, और फ़िर योग के तरीके की कथा है.

राम ईश्वर हैं. सीता चेतना है- हमारी कॉंशियसनेस है, जिसे कुण्डलिनी शक्ति भी कहा जाता है. रावण हमारी तामसिक प्रवृत्ती है. यह तामसिक प्रवृत्ती चेतना को हर कर उसे ईश्वर से दूर, दक्षिण दिशा में (मूलाधार में) ले जाती है. मूलाधार में हमारी चेतना तामसिक प्रवृती के प्रभाव में अधोगामी या निष्क्रीय हो कर पडी रहती है.

हनुमान यानी पवन के पुत्र यानी प्राणवायू ही एकमात्र शक्ति हैं जो मनरूपी सागर को पार कर मूल-चेतना तक ईश्वर का संदेश पहुंचा सके, उसके उर्ध्वगमन हेतू सेतू बना सके. रावण की लंका अर्थात तामसिक प्रभावों को नष्ट कर सके. प्राणायाम और ध्यान की विधियों से यह संभव होता है. प्राणवायू की सहायता से ईश्वर चेतना को उपर उठा कर उसके साथ् सायुज्य स्थापित कर लेते हैं.

सात्विक प्रवृत्तीवाले (लक्ष्मण) को ईश्वर सर्वाधिक प्रेम देते हैं और हमेशा अपने साथ रखते हैं. सात्विक प्रवृत्तीवाले (लक्ष्मण) को ईश्वर की सेवा के लिये अपने लौकिक संबंध [पत्नि आदी] भी भूल जाते हैं. सात्विक (लक्ष्मण की बनाई हुई लक्ष्मणरेखा रूपी) सीमा को तोडने पर ही चेतना(सीता) तामसिक शक्तियों के संपर्क मे आती है. ईश्वर की कृपा से वानर भी अनुशासित सेना बना लेते हैं ठीक वैसे ही पवन प्राण का संचार करती है.

तामसिक प्रभावों भी से चेतना की रक्षा ऐसे करनी चाहिए जैसे सीता लंका में रहीं. हनुमान (तप और ब्रह्मचर्य) की सहायता के बिना चेतना का उर्ध्वगमन संभव नही है. सीता की अग्निपरीक्षा चेतना के अग्निचक्र से गमन का संकेत है.

इससे यह भावार्थ भी निकलता है कि आध्यात्मिक चेतना पाने वाला मनुष्य राम तुल्य है.

यह भावार्थ मुझे काफ़ी हद तक संतुष्ट करता है. बाकी के चरित्र, नीतियां और मेलोड्रामे अगर ना होते तो जन-जन में रामायण की और रामलीला की लोकप्रियता के लिये क्या बचता?

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