Monday, September 30, 2013

...मिस्र के पिरामिड श्री चक्र की अधिरचना...

...मिस्र के पिरामिड श्री चक्र की अधिरचना...


क्या आप जानते हैं कि मिस्र के विश्व प्रसिद्ध.एवं, दुनिया के महानतम आश्चर्यों में शुमार पिरामिड कोई नई वास्तु संरचना नहीं है बल्कि, पिरामिडों को हमारी पारंपरिक मंदिरों को नक़ल कर बनाई गई है!
अगर इसे ज्यादा सभ्य और आधुनिक भाषा में बोल जाए तो मिस्र के पिरामिड हमारे पारंपरिक मंदिरों से प्रेरित होकर बनाए गए हैं!
दरअसल हमारी पारंपरिक वास्तुकला बहुत ही सीधी और सरल है और, जो समय की कसौटी पर बिल्कुल खरे उतरते हैं!
हमारी संरचनाओं में बीम और छत और अहाते का कुछ इस प्रकार प्रयोग किया गया है ताकि, वहां धार्मिक एवं आध्यात्मिक कार्य सुचारू रूप से किए जा सकें!
ध्यान दें कि मंदिरों में शिखर मंदिर की सबसे उत्कृष्ट तत्व रहता है और, प्रवेश द्वार आमतौर पर मामूली होता है तथा मंदिर परिसर मंदिरों के गर्भ गृह के ही आस पास बनाया जाता है जो कार्डिनल दिशाओं के लिए उन्मुख होता है जो हमारे ब्रह्माण्ड के विद्युत् चुम्बकीय तरंगों को नियंत्रित करते हैं!
असल में हमारे मंदिर हमारे धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित श्री चक्र को आधार मानकर बनाए जाते हैं और, आश्चर्यजनक रूप से मिस्र के पिरामिड भी हमारे इसी श्री चक्र अथवा मेरु चक्र को आधार मानकर बनाए गए हैं!
यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है कि मंदिर का स्थापत्य कला कुछ इस तरह का होता है कि वहां प्रवेश करने पर मनुष्य को मानसिक शांति और शारीरिक सांत्वना महसूस होता है!
गर्भगृह को मंदिर का केंद्र या अधिरचना को नाभि कहा जा सकता है और, गर्भगृह की बिंदु से ही ऊपर जाती हुई संरचना अंत में शिखर का रूप ले लेती है!
ठीक ऐसा ही घुमावदार रूप पिरामिड के रूप में आधुनिक समय में पहचान की गई है और, पिरामिड के भी शिखर भी.गर्भगृह की अधिरचना को संदर्भित करता है !
उसे भी अधिक मंदिरों की ही तरह पिरामिड का भी मुख्य कक्ष गर्भगृह ही होता है जिसके चारों तरफ परिसर बनाए गए है तथा , गर्भगृह के बाहर ये परिसर एक वर्ग परिपत्र , हेक्सागोनल ( 6 पक्षों) या अष्टकोणीय ( 8 पक्षों) हो सकता है!
हमारे मंदिरों की ही तरह पिरामिड की भी अधिरचना एक ही मंजिल होती है जिसमे एक ही शिखर होता है!
इस शिखर के माध्यम से तैयार आकाशीय बिजली ( विद्युत् चुम्बकीय तरंग ) हमें दैवीय प्रभा और आध्यात्मिक शक्ति देता है तथा, अलग गर्भगृह के लिए एक छत होने से शिखर भी गर्भगृह और केंद्रीय देवत्व के प्रमुख देवता के महत्वपूर्णता एवं दिव्य पवित्रता का प्रतीक है !
शिखर के अंतिम छोर को कलश या स्तूप के रूप में जाना जाता है!
मंदिर एवं पिरामिड अधिरचना दोनों में ही आश्चर्यजनक रूप से प्रत्येक मंजिला की ऊंचाई के एक चौथाई या एक तिहाई के समानांतर श्रेणी में घटता जाता है !
असल में पिरामिड ( PYRAMID ) शब्द ग्रीक शब्द Pyra से बना है जिसका अर्थ अग्नि, प्रकाश , दिखाई होता है
और, शब्द MIDOS का अर्थ केंद्र होता है!
इस तरह पिरामिड का शाब्दिक अर्थ" केंद्र में आग अथवा प्रकाश " होता है और, यह शब्द बहुत हद तक मंदिर होने का आभास देता है!
मिस्र के पिरामिड लगभग 4000 साल पहले बनाए गए थे तथा, चित्र में प्रदर्शित गीजा के पिरामिड के आधार की चार भुजाओं की लंबाई 755.5 फीट की तथा , औसत माप में आश्चर्यजनक रूप से बराबर हैं .
पिरामिड के द्वार उत्तर में है तथा, इसके मध्य में गर्भगृह सी संरचना है जिसमे राजा को दफ़न किया जाता था एवं उसके चारो और कक्ष बने होते हैं!
पिरामिड के प्रत्येक पक्ष के शीर्ष करने के लिए 51 डिग्री 51 मिनट का एक कोण पर बढ़ जाता है तथा, पक्षों के प्रत्येक सही उत्तर , दक्षिण , पूर्व और पश्चिम के साथ लगभग ठीक से जुड़ रहे हैं
हमारे हिन्दू मंदिरों की ही तरह पिरामिड में भी संरचना के कारण उसके गर्भगृह में कॉस्मिक ऊर्जा आकर्षित किया गया है जिसे फ़राओ के शव को संरक्षित करने के लिए उपयोग किया गया है!
यहाँ तक कि आज भी हमारे भारत के गांवों में पिरामिड के आकार की झोपड़ियां बनाई जाती है जिसका प्रयोग खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक ताजा रखने के लिए किया जाता है!
और, यह काफी दिलचस्प है कि हमारे मंदिरों के गर्भगृह में भी खाद्य पदार्थ एक लंबे समय के लिए ताजा बने रहते हैं.
क्योंकि इन संरचनाओं के आकार ब्रह्मांड से ऊर्जा के प्रवाह को प्रभावित करती है और, यह ऊर्जा हमारे जीवन की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद करता है .
असल में , इन सबका रहस्य हमारे धर्मग्रंथों में वर्णित श्री चक्र में छुपा है
ध्यान रखें कि हमारा शरीर सिर्फ एक जैव रासायनिक इकाई ही नहीं है बल्कि, यह ब्रह्मांड के साथ जैव ऊर्जा एक्सचेंजों बनाए रखना सुरक्षा तथा जीवन से लिपटे जैव रासायनिक एवं विद्युत चुंबकीय ऊर्जा क्षेत्र की एक उत्पाद है और यह श्री चक्र जैव ऊर्जा के समुचित प्रवाह को सुनिश्चित करता है!
खैर
इन सभी सबूतों से तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि संभवतःउस समय मिस्र पर भी हमारे सनातन धर्म का प्रभाव रहा होगा या फिर , मिस्र से अथवा अन्य देशों के लोगों से अपनी वास्तुकला और निर्माण सुविधाओं के बारे में जानने के लिए किसी ने भारत की यात्रा की होगी और, फिर उसने लौट कर अपने देश में पिरामिडों का निर्माण किया होगा
कारण चाहे जो भी रहा हो परन्तु यह निर्विवाद रूप से स्थापित सत्य है कि मिस्र के बहुचर्चित एवं विश्वप्रसिद्ध पिरामिड कोई नई संरचना नहीं है बल्कि, यह हमारे श्री चक्र के आधार बनाकर एवं मंदिरों की नक़ल कर बनाए गए हैं!
इसीलिए हिन्दुओ पहचानो आपने आपको साथ ही , पहचानो अपने प्रभुत्व को!
हमें गर्व होना चाहिए कि हम महान हिन्दू सनातन का एक अंग हैं
जय महाकाल!
नोट: कोई मुस्लिमों की तरह बेवकूफी करते हुए यह ना लिखे कि हम हिन्दुओं ने पिरामिड कि नक़ल कर श्री चक्र और मंदिर बनाए हैं क्योंकि, अब यह वैज्ञानिक रूप से भी स्थापित हो चुका है कि. हिन्दू सनातन धर्म एवं हमारे धर्म ग्रन्थ लाखों वर्ष पुराने हैं जबकि ये पिरामिड महज कुछेक हजार साल पुराने हैं! 

Sunday, September 29, 2013

क्या प्राचीन मिस्त्र के देवता अमुन, स्वयं श्री हरि विष्णु थे ?

क्या प्राचीन मिस्त्र के देवता अमुन, स्वयं श्री हरि विष्णु थे ?

The ancient Egyptian god Amun, were self-Sri Hari Vishnu?
क्या आप जानते हैं कि..... मिस्र के बहुचर्चित पिरामिड ही सिर्फ हमारे हिन्दू मंदिरों की नक़ल नहीं है बल्कि...... हमारे भगवान श्रीकृष्ण को मिस्र में भी पूजा जाता है ..एवं ...जगन्नाथ यात्रा की ही तरह ... मिस्र में भी जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है...!
यह सुनने में थोडा अटपटा जरुर लगता है.... लेकिन, ये पूर्णतः सत्य है....!
दरअसल.... भगवान् श्रीकृष्ण को मिस्र में.... ""अमन देव "" कह कर पुकारा जाता है....!
मिस्र के अमन देव को हमेशा को ही नील नदी के ऊपर चित्रित किया जाता है..... एवं , उन्हें नील त्वचाधारी के रूप में बताया जाता है...!
सिर्फ इतना ही नहीं..... भगवान अमन देव के सर की पगड़ी के ऊपर.... मोर के दो पंख लगे होने अनिवार्य हैं.....!

और.... मिस्र में ऐसी मान्यता है कि.... इन्ही अमन देव ने...... सृष्टि की रचना की है....!
अब... हिन्दू धर्म के बारे में थोड़ी सी भी जानकारी रखने वाला बच्चा भी..... यह बता देगा कि..... उपरोक्त वर्णन भगवान श्रीकृष्ण का है ...... और, हमारे ... पद्म पुराण.. विष्णु पुराण से लेकर श्रीमदभागवत गीता और महाभारत तक में ... उपरोक्त वर्णन देखा जा सकता है...!
सभी पुराणों एवं धार्मिक ग्रन्थ में भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार बताया गया है...... एवं... भगवान श्रीकृष्ण को नील त्वचा धारी .... मोर पंख युक्त ....क्षीर सागर के ऊपर चित्रित किया जाता है....!
सिर्फ इतना ही नहीं..... हमारी जगन्नाथ यात्रा की हूबहू नकल ... हमें अमन देव की यात्रा में मिलता है....!
जिस तरह ..... हमारे जगन्नाथ यात्रा में.... पहले भगवान श्रीकृष्ण , सुभद्रा एवं बलराम की प्रतिमा को नहलाकर कर .... एवं , नए वस्त्रों एवं आभूषणों से सुसज्जित कर .... ढोल-नगाड़े तथा बेहद धूम-धाम से यात्रा निकाली जाती है .....
ठीक उसी प्रकार..... मिस्र में भी.... अमन देव, मूठ एवं खोंसू ...... के त्रैय प्रतिमा को नहलाकर .... नए वस्त्रों एवं आभूषणों से सुसज्जित कर .... बेहद धूम-धाम एवं .. उल्लास के साथ .... ये यात्रा निकाली जाती है....!
और तो और.... भारत में हम हिन्दुओं की ये रथयात्रा .... मानसून से प्रारंभ के कुछ समय बाद ..... पुरी के जगन्नाथ मंदिर और गुंडीका मंदिर को जोडती है... जिसकी दूरी लगभग 2 किलोमीटर है....!
तथा... आश्चर्यजनक रूप से ... मिस्र में भी ये रथयात्रा जुलाई के महीने में ही...... कर्णक मंदिर और लक्सर मंदिर को जोडती है..... जिनके बीच की दूरी लगभग 2 मील है....!
हमारे रथयात्रा के ही समान.. अमन देव की भी रथयात्रा में..... भव्य एवं बेहद सुसज्जित रथों का प्रयोग किया जाता है...... जिन्हें खींचने के लिए .... किसी मशीन अथवा जानवर का प्रयोग नहीं किया जाता है ..... बल्कि, भक्त स्वयं उन्हें अपने हाथों से खींचते हैं....!
इसीलिए... किसी को इस बात पर रत्ती भर भी संदेह नहीं होना चाहिए कि........ मिस्र का अमन देव यात्रा ... और, नहीं बल्कि.... हमारी जगन्नाथ यात्रा ही है...... परन्तु.... जगह, भाषा एवं सामाजिक तानाबाना के परिवर्तन के कारण..... उसे .... जगन्नाथ यात्रा की जगह अमन देव की यात्रा कहा जाने लगा.....!
दरअसल हुआ ये कि....
आज से लगभग 3000 ईसा पूर्व में हमारे हिंदुस्तान और मिस्र के पहले फिरौन के साथ व्यापक व्यापार संबंध थे..... तथा, भारत से मिस्र में ..... मलमल कपास, मसाले, सोने और हाथी दांत.... वगैरह बहुतायत में निर्यात किए जाते थे....!
इसीलिए.... भारतीय व्यापारियों का व्यापार के सिलसिले में ..... मिस्र में हमेशा आते-जाते रहने से.... वहां से सामाजिक और धार्मिक प्रणालियों पर हमारे हिंदुस्तान का बेहद गहरा प्रभाव पड़ा...... और, मिस्र के लोक कला ..... भाषा... जगह के नाम ... एवं, धार्मिक परम्परा पर हिन्दू सनातन धर्म ने एक अमिट छाप छोड़ा....!
कदाचित .... यह भी संभव है कि...... मिस्र पर पहले हम हिन्दुओं का ही वर्चस्व रहा हो..... और, इन हजारों-लाखों सालों में.... मिटते-मिटते भी............ पिरामिड एवं रथयात्रा जैसे कुछ चीज..... हिन्दू सनातन धर्म के प्राचीन गौरव, महानता एवं व्यापकता की गवाही देने के लिए बचे रह गए हों....!
इसीलिए हिन्दुओ..... खुद पर लज्जित होकर अथवा मनहूस सेकुलरों के बहकावे में आकर ........ धर्मनिरपेक्ष ना बनें....
बल्कि.... अपने गौरवशाली इतिहास एवं उसकी व्यापकता को जानकर उस पर अभिमान करें....
और... मुँह झुका कर एवं शर्मिन्दिगी भरे स्वर में ... खुद को सेकुलर कहलाने की अपेक्षा....
गर्व से कहें ....... हम हिन्दू हैं....!
जय महाकाल...!!!
साभार : श्री कुमार सतीश
http://en.wikipedia.org/wiki/Thebes,_Egypt
http://en.wikipedia.org/wiki/Luxor_Temple
http://en.wikipedia.org/wiki/Opet_Festival
http://en.wikipedia.org/wiki/Karna

Wednesday, September 25, 2013

हमारी हर परंपरा में वैज्ञानिकता का दर्शन होता हैं अज्ञानता का नहीं.....

हमारी हर परंपरा में वैज्ञानिकता का दर्शन होता हैं अज्ञानता का नहीं.....
साभार: सनातन संस्कृति - कल और आज
पितृ पक्ष (श्राद्ध) में मुख्य व्यंजन "खीर" का वैज्ञानिक महत्व......
हम सब जानते है की मच्छर काटने से मलेरिया होता है वर्ष मे कम से कम 700-800 बार तो मच्छर काटते ही होंगे अर्थात 70 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचतेलाख बार मच्छर काट लेते होंगे । लेकिन अधिकांश लोगो को जीवनभर में एक दो बार ही मलेरिया होता है सारांश यह है की मच्छर के काटने से मलेरिया होता है यह 1% ही सही है ।
खीर खाओ मलेरिया भगाओ::
लेकिन यहाँ ऐसे विज्ञापनो की कमी नहीं है जो कहते है की एक भी मच्छर ‘डेंजरस’ है, हिट लाओगे तो एक भी मच्छर नहीं बचेगा अब ऐसे विज्ञापनो के झांसे मे आकर के करोड़ो लोग इस मच्छर बाजार मे अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो जाते है । सभी जानते है बैक्टीरिया बिना उपयुक्त वातावरण के नहीं पनप सकते जैसे दूध मे दही डालने मात्र से दही नहीं बनाता, दूध हल्का गरम होना चाहिए, उसे ढककर गरम वातावरण मे रखना होता है । बार बार हिलाने से भी दही नहीं जमता ऐसे ही मलेरिया के बैक्टीरिया को जब पित्त का वातावरण मिलता है तभी वह 4 दिन में पूरे शरीर में फैलता है नहीं तो थोड़े समय में खत्म हो जाता है. सारे मच्छरमार प्रयासो के बाद भी मच्छर और रोगवाहक सूक्ष्म कीट नहीं काटेंगे यह हमारे हाथ में नहीं ; लेकिन पित्त को नियंत्रित रखना हमारे हाथ में तो है.
अब हमारी परम्पराओं का चमत्कार देखिये जिन्हे अल्पज्ञानी, दक़ियानूसी, और पिछड़ेपन की सोच करके, षड्यंत्र फैलाया जाता था ।
वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु आती है आकाश में बादल धूल न होने से कडक धूप पड़ती है जिससे शरीर में पित्त कुपित होता है इसी समय गड्ढो मे जमा पानी के कारण बहुत बड़ी मात्र मे मच्छर पैदा होते है इससे मलेरिया होने का खतरा सबसे अधिक होता है ।
खीर खाने से पित्त का शमन होता है । शरद में ही पितृ पक्ष (श्राद्ध) आता है पितरों का मुख्य भोजन है खीर । इस दौरान 5-7 बार खीर खाना हो जाता है इसके बाद शरद पुर्णिमा को रातभर चाँदनी के नीचे चाँदी के पात्र में राखी खीर सुबह खाई जाती है (चाँदी का पात्र न हो तो चाँदी का चम्मच खीर मे डाल दे , लेकिन बर्तन मिट्टी या पीतल का हो, क्योंकि स्टील जहर और एल्यूमिनियम, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी महा-जहर है) . यह खीर विशेष ठंडक पहुंचाती है । गाय के दूध की हो तो अतिउत्तम, विशेष गुणकारी (आयुर्वेद मे घी से अर्थात गौ घी और दूध गौ का) इससे मलेरिया होने की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है
ध्यान रहे : इस ऋतु में बनाई खीर में केसर और मेंवों का प्रयोग न करे । ये गर्म प्रवृत्ति के होने से पित्त बढ़ा सकते है. सिर्फ इलायची डाले.........
 — with कुलदीप शर्मा and 4 others.

Sunday, September 8, 2013

रामायण की किन चौपाइयों से

*रामायण की किन चौपाइयों से दूर होती हैं घर या काम की कौन सी परेशानियां*
1. सिरदर्द या दिमाग की कोई भी परेशानी दूर करने के लिए-
हनुमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।
2. नौकरी पाने के लिए -
बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।
3.धन-दौलत, सम्पत्ति पाने के लिए -
जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।
4. पुत्र पाने के लिए -
प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।
5. खोई वस्तु या व्यक्ति पाने के लिए -
गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।
6. पढ़ाई या परीक्षा में कामयाबी के लिए-
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥
7. जहर उतारने के लिए -
नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।
8. नजर उतारने के लिए -
स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।
9. हनुमानजी की कृपा के लिए -
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।
10. यज्ञोपवीत पहनने व उसकी पवित्रता के लिए -
जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।
11. सफल व कुशल यात्रा के लिए -
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
12. शत्रुता मिटाने के लिए -
बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥
13. सभी तरह के संकटनाश या भूत बाधा दूर करने के लिए -
प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥
14. बीमारियां व अशान्ति दूर करने के लिए -
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥
15. अकाल मृत्यु भय व संकट दूर करने के लिए -
नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि.!!
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