रोगों से मुक्ति दिलाती हैं माता शीतला और उनका मंत्र
चैत्र कृष्णपक्ष अष्टमी तिथि को महाशक्ति के एक
प्रमुख रूप शीतलामाता की पूजा पुराने समय से की जाती रही है।
इस वर्ष यह तिथि
तीन अप्रैल को है शीतला की आराधना दैहिक तापों ज्वर, राजयक्ष्मा, संक्रमण तथा अन्य
विषाणुओं के दुष्प्रभावों से मुक्ति दिलाती हैं।
मान्यता है कि
ज्वर, चेचक, एड्स, कुष्ठरोग, दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोड़े तथा अन्य चर्मरोगों से आहत होने पर मां
की आराधना रोगमुक्त कर देती है।
यही नहीं व्रती
के कुल में भी यदि कोई इन रोंगों से पीड़ित हो तो ये रोग-दोष दूर हो जाते हैं।
इन्हीं की कृपा से मनुष्य अपना धर्माचरण कर पाता है बिना शीतला माता की अनुकम्पा
के देहधर्म संभव नहीं है।
मां का पौराणिक
मंत्र 'हृं श्रीं शीतलायै नमः' भी प्राणियों को
सभी संकटों से मुक्ति दिलाते हुए समाज में मान सम्मान दिलाता है। मां के वंदना
मंत्र में भाव व्यक्त किया गया है कि शीतला स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं।
शीलता माता के
हाथ में झाड़ू और कलश होता है। हाथ में झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी
सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए।
कलश में सभी
तैतीस करोड देवी देवताओं का वास रहता है अतः इसके स्थापन-पूजन से घर परिवार में
समृद्धि आती है। स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में
मिलता है।
इस स्तोत्र की
रचना भगवान शंकर ने जनकल्याण के लिए की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान
करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है।
इनकी आराधना मध्य
भारत एवं उत्तरपूर्व के राज्यों में बड़े धूम-धाम से की जाती है!
-पं जय गोविन्द
शास्त्री
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