Friday, February 1, 2013

ऐसे बनते हैं नागा साधु

ऐसे बनते हैं नागा  साधु
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दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले-महाकुंभ के कई अलग-अलग रंगों में एक रंग हैं- नागा साधु जो हमेशा की तरह श्रद्धालुओं के कौतूहल का केंद्रबने हुए हैं।

इनका जीवन आम लोगों के लिए एक रहस्य की तरह होताहै। नागा साधु बनाने की प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान ही होती है। नागा साधु बनने के लिए इतनी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है कि शायद बिनासंन्यास और दृढ़ निश्चय के कोई व्यक्ति इस पर पार ही नहीं पा सकता। सनातन परंपरा की रक्षा और उसे आगे बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न संन्यासी अखाड़ों में हर महाकुंभ के दौरान नागा साधु बनाए जाते हैं। माया मोह त्यागकर वैराग्य धारण की इच्छा लिए विभिन्न अखाड़ों कीशरण में आने वाले व्यक्तियों को परम्परानुसार आजकल प्रयाग महाकुंभमें नागा साधु बनाया जा रहा है। अखाड़ों के मुताबिक इस बार प्रयागमहाकुंभ में पांच हजार से ज्यादा नागा साधु बनाए जाएंगे। आमतौर पर नागा साधु सभी संन्यासी अखाड़ों में बनाए जाते हैं लेकिन जूना अखाड़ा सबसे ज्यादा नागा साधु बनाता है। सभी तेरह अखाड़ों में जूना अखाड़ासबसे बड़ा अखाड़ा भी माना जाता है। जूना अखाड़े के महंत नारायणगिरि महाराज के मुताबिक नागाओं को सेना की तरह तैयार किया जाता है। नागा को आम दुनिया से अलग और विशेष बनना होता है। इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है। जब भी कोई व्यक्ति साधु बनने के लिए किसी अखाड़े में जाता है तो उसे कभी सीधे-सीधे अखाड़े में शामिल नहीं किया जाता। अखाड़ा अपने स्तर पर ये तहकीकात करता है कि वह साधु क्यों बनना चाहता है। नागा बनने आए व्यक्ति की पूरी पृष्ठभूमि देखी जाती है। अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है तो उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है। प्रवेश की अनुमति के बाद पहले तीन साल गुरुओं की सेवा करने के साथ धर्म कर्म और अखाड़ों के नियमों को समझना होता है। इसी अवधि में ब्रह्मचर्यकी परीक्षा ली जाती है। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर ले कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है तो फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है। उन्होंने कहा कि अगली प्रक्रिया कुंभ मेले के दौरान शुरू होती है। जब ब्रह्मचारी से उसे महापुरुष बनाया जाता है। इस दौरान उनका मुंडन कराने के साथ उसे 108 बार गंगा में डुबकी लगवाई जाती है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। भस्म, भगवा, रूद्राक्ष आदि चीजें दी जाती हैं। महापुरुष के बाद उसे अवधूत बनाया जाता है। अखाड़ों के आचार्य द्वारा अवधूत का जनेऊ संस्कार कराने के साथ संन्यासी जीवन की शपथ दिलाई जाती हैं। इस दौरान उसके परिवार के साथ उसका भी पिंडदान कराया जाता है। इसके पश्चात दंडी संस्कार कराया जाता है और रातभर उसे ओम नम: शिवाय का जाप करना होता है। जूना अखाड़े के एक और महंत नरेंद्र महाराज कहते हैं कि जाप के बाद भोर में अखाड़े के महामंडलेश्वर उससे विजया हवन कराते हैं। उसके पश्चात सभी को फिर से गंगा में 108 डुबकियां लगवाई जाती हैं। स्नानके बाद अखाड़े के ध्वज के नीचे उससे दंडी त्याग कराया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा साधु बन जाता है। 

चूंकि नागा साधु की प्रक्रिया प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में कुम्भ के दौरान हीहोती है। प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को नागा, उज्जैन मेंदीक्षा लेने वालों को खूनी नागा कहा जाता है। हरिद्वार में दीक्षा लेनेवालों को बर्फानी व नासिक वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है। इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है,जिससे उनकी यह पहचान हो सके कि किसने कहां दीक्षा ली है।

संगम तट पर महिला नागा साधुओं की अलग ही है दुनिया
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इलाहाबाद। अब तक आपने नागा साधुओं के बारे में ही सुना होगा याफिर उन्हें कुंभ में देखा होगा लेकिन उत्तर प्रदेश में प्रयागनगरीइलाहाबाद में संगम तट पर लगे दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले मेंपहली बार महिला नागा साधुओं की उपस्थिति लोगों के कौतूहल काविषय बनी हुई है। ये महिला साधु पुरुष नागाओं की तरह नग्न रहने केबजाए अपने तन पर एक गेरूआ वस्त्र लपेटे रहती हैं।नागा साधुओं के अखाड़ों में महिला संन्यासियों को एक अलग पहचानऔर खास महत्व दिया गया है, जिससे इस बात का अहसास होता है किपुरुषों की बहुलता वाले इस धार्मिक आयोजन में अब महिलाओं को भीखासा महत्व दिए जाने की नई परंपरा शुरू हो रही है। इन महिलासंन्यासियों की अलग दुनिया है और उनकी अपनी नेता भी और साथ हीअपने संसाधन भी। उनके शिविर में शौचालयों की पर्याप्त व्यवस्था कीगयी है और शिविर के बाहर चौबिसों घंटे पुलिसकर्मियों की तैनाती रहतीहै।महिलाओं के अखाड़े की नेता दिब्या गिरी हैं और वह बड़ी ही साफगोई सेकहती हैं कि यह महिलाओं की एक अलग पहचान है। गिरी साल 2004 में विधिवत तौर पर साधु बनी थीं। उन्होंने नई दिल्ली के एक प्रतिष्ठितसंस्थान से मेडिकल टेक्निशियन की पढ़ाई पूरी की है। गिरी कहती हैं किउनका ईष्टदेव भगवान दत्तात्रेय की मां अनूसुइया हैं और उन्हीं को ईष्टमानकर आराधना की जाती हैं।ऐसा नहीं है कि महाकुंभ की इस नगरी में बसे महिलाओं के अखाड़े मेंसिर्फ देशी महिलाएं ही हैं। इसमें कुछ विदेशी महिलाएं भी महिला नागासाधुओं की संगति में शामिल हुई हैं। अखाड़े से जुड़ी एक महिलासंन्यासी बताती हैं कि नागा महिला संन्यासियों का अलग शिविर तोबनाया गया है लेकिन अभी भी काफी कुछ नियंत्रण पुरुषों के हाथ में हीहोता है। शिविर के छोटे से बड़े फैसले वहीं लेते हैं। इसको बदलने कीजरूरत है।जूना के संन्यासिन अखाड़े में अधिकांश महिला साधु नेपाल से आयी हैं।इसकी खास वजह के बारे में यह महिला साधु बताती हैं कि नेपाल मेंउंची जाति की महिलाओं को दोबारा शादी समाज स्वीकार नहीं करता हैऔर ऐसे में यह महिलाएं घर लौटने की बजाए साधु बन जाती हैं।यह महिला साधु शिविर के बारे में बताती हैं कि महिलाओं के नग्न रहनेपर सख्त मनाही है और खासतौर से शाही स्नान के दिन तो बिल्कुलनहीं और इसी के चलते ज्यादातर महिलाएं केवल एक गेरुआ कपड़ा हीलपेटे रहती हैं। वह कहती हैं कि महिला नागा साधुओं को नग्न रहने कीइजाजत कैसे दी जा सकती है। महिलाओं का नग्न रहना भारतीयसंस्कृति का खुला उल्लंघन होगा।


कल्पवास
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कल्पवास पौष पूर्णिमा से शुरू होकर माघ पूर्णिमा तक चलता है। यानी 25 फरवरी तक कल्पवासी संगम किनारे ही रहेंगे। कल्पवास के दौरान यहां एक महीना बिताने वाले भक्त दिन में तीन बार स्नान करते हैं, और एक ही बार भोजन करते हैं। कल्पवास में उन्हे काम, क्रोध, मोह, माया से दूर रहने का संकल्प लेना होता है। माना जाता है कि कल्पवास करने वाले शख्स को ब्रह्मा की तपस्या करने के बराबर फल मिलता है। श्रद्धालुओं में गंगा स्नान को लेकर खासा उत्साह रहता है। ज्यादातर श्रद्धालु एक महीने तक यहां कल्पवास नहीं कर सकते। ऐसे में अगले तीन दिन वो संगम किनारे रहकर पुण्य हासिल लेने की कोशिश करते हैं।


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