तस्माद्यज्ञात् सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत।।
यजुर्वेद 31.7
परमात्मा ने सृष्टि की रचना की। उसके संविधान के लिए चार वेदों का प्रकाश किया। अग्नि ऋषि के हृदय में ऋग्वेद, वायु ऋषि के हृदय में यजुर्वेद, आदित्य ऋषि के हृदय में सामवेद और अङि्गरा ऋषि के हृदय में अथर्ववेद ज्ञान दिया। इन चारों ऋषियों से ब्रह्मा ने वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। ब्रह्मा से इन्द्र ने और इन्द्र से भरद्वाज ने वेद विद्या ग्रहण की। भरद्वाज से वेद विद्या तपोमूर्ति ब्राह्मणों को मिली। ब्राह्मणों ने जग के कल्याण के लिए सामान्य लोगों में वेद विद्या का प्रचार किया।
वैदिक वाङ्मय को चार भागों में वर्गीकृत किया जाता है- संहिता, ब्राहमण, आरण्यक और उपनिषद्। तद्यथा- मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम्। यहाँ पर ब्राह्मण से ब्राहमण सहित आरण्यक और उपनिषद् भी गृहित है।
आचार्य सायण ने वेद से अभिप्राय निकाला है-इष्टप्राप्त्यनिष्टपरिहारयोरलौकिकमुपायं यो ग्रन्थो वेदयति स वेदः।
अर्थात् इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट के परिहार का अलौकिक उपाय बताने वाला ग्रन्थ वेद है।
ऋषि दयानन्द के अनुसार-विदन्ति जानन्ति,विद्यन्ते भवन्ति, विन्दन्ति विन्दन्ते लभन्ते, विन्दते विचारयन्ति सर्वे मनुष्याः सर्वाः सत्यविद्या यैर्येषु वा तथा विद्वांसश्च भवन्ति ते वेदाः। तथ आदिसृष्टिमारभ्याद्यापर्यन्तं ब्रह्मादिभिः सर्वाः सत्यविद्याः श्रूयन्ते अनया सा श्रुतिः।
अर्थात् जिनके पढने से यथार्थ विद्या का विज्ञान होता है, जिनको पढ के विद्वान् होते है, जिनसे सब सुखों का लाभ होता है और जिनसे ठीक-2 सत्य-असत्य का विचार मनुष्यों को होता है, इससे ऋक् संहितादि का नाम वेद है।
वैसे ही सृष्टि के आरम्भ से आज पर्यन्त और ब्रह्मादि से लेकर हम लोग पर्यन्त जिससे सब सत्यविद्याओं को सुनते आते हैं इससे वेदों का श्रुति नाम पडा है।
ऐसा माना जाता है कि वेदों में सभी प्रकार का ज्ञान-विज्ञान है-सर्वज्ञानमयो हि सः- मनु।
जो वेद की निन्दा करता है उसे नास्तिक कहा जाता है- नास्तिको वेदनिन्दकः- मनुः।
वेदों का रचनाकालः--
मैक्समूलर ने ईसा से 800-600 वर्ष पूर्व माना है।
ऋषि दयानन्द ने वेदों की उत्पत्ति सृष्टि के आदि में माना है। तदनुसार 1,97,29,49,113 वर्ष हुए हैं।
ह्विटनी और केगी के अनुसार वेदों का समय 2000-1500 ई.पू. है।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनुसार 4000-2500 ई.पू. है।
प्रो. जैकोबी के अनुसार 4500-2500 ई.पू. है।
दीनानाथ शास्त्री के अनुसार आज से लगभग तीन लाख वर्ष पूर्व है।
<<<<<<<<<<<<<<<<<वैदिक-वाङ्मय>>>>>>>>>>>>>>>>>>
*******वेद******
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
*****उपवेद******
आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद और अर्थवेद।
******शाखाः*****
1. ऋग्वेदः---
ऋग्वेद की इक्कीस शाखाएँ हैं- एकविंशतिधा बाह्वृच्यम्। इनमें से उपलब्ध पाँच शाखाएँ---शाकल, बाष्कल, आश्वलायन, शांखायन और माण्डूकायन।
2. यजुर्वेदः---
यजुर्वेद की एक सौ एक शाखाएँ हैं-एकशतमध्वर्युशाखाः। इनमें छः शाखाएँ उपलब्ध हैं।
शुक्ल-.यजुर्वेदः---वाजसनेयी या माध्यन्दिनि और काण्व।
कृष्ण-यजुर्वेदः----तैत्तिरीय,मैत्रायणी, कठ और कपिष्ठल।
3. सामवेदः----
सामवेद की एक हजार शाखाएँ हैं-सहस्रवर्त्मा सामवेदः। कुछ प्रमुख शाखाएँ--- असुरायणीय, वासुरायणीय, वार्तान्तरेय, प्राञ्जल, राणायनीय, शाट्यायनीय, सात्यमुद्गल, खल्वल, महाखल्वल, लाङ्गल, कौथुम, गौतम और जैमिनीय। उपलब्ध शाखाएँ-- कौथुमीय, राणायनीय और जैमिनीय।
4. अथर्ववेदः---
अथर्ववेद की नौ शाखाएँ हैं-नवधाथर्वणो वेदः--- पैप्लाद, शौनक, मौद, स्तौद, जाजल, जलद, ब्रह्मवेद, देवदर्श और चारणवैद्य। उपलब्ध शाखाएँ-- पैप्लाद और शौनक।
********ब्राह्मण*********
1.ऋग्वेदः----
ऐतरेय और शाङ्खायन।
2.यजुर्वेदः-----
शुक्ल-यजुर्वेदः--शतपथ।
कृष्ण-यजुर्वेदः--तैत्तिरीय, मैत्रायणी, कठ और कपिष्ठल।
3.सामवेदः---
प्रौढ, षड्विंश, सामविधान, आर्षेय, देवताध्याय, उपनिष्द, संहितोपनिषद्, वंश और जैमिनीय।
4.अथर्ववेदः---
गोपथ।
*********आरण्यक********
1.ऋग्वेदः---
ऐतरेय और शाङ्खायन।
2.यजुर्वेदः----
शुक्ल-यजुर्वेदः--बृहदारण्यक।
कृष्ण-यजुर्वेदः--तैत्तिरीय और मैत्रायणी।
3.सामवेदः---
छान्दोग्य।
***********उपनिषद्**********
प्रमुख उपनिषद् ग्यारह हैं---ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वतर।
1.ऋग्वेदः----
ऐतरेय।
2.यजुर्वेदः----
शुक्ल-यजुर्वेदः--ईश और बृहदारण्यक।
कृष्ण-यजुर्वेदः--कठ, तैत्तिरीय और श्वेताश्वतर।
3.सामवेदः----
केन और छान्दोग्य।
4.अथर्ववेदः-----
प्रश्न, मुण्डक और माण्डूक्य।
**************वेदाङ्ग************
कुल वेदाङ्ग छः हैं--- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष्।
1.शिक्षा----
पाणिनीया
ऋक्लक्षण
याज्ञवल्क्य
वाशिष्ठी
माण्डव्य
भरद्वाज
अवसान निर्णय
नारदीय
माण्डूकी
शौनकीया प्रातिशाख्या
अथर्ववेद प्रा.
पुष्यसूत्र प्रा.
वाजसनेयी प्रा.
तैत्तिरीय प्रा.
माध्यन्दिनि शिक्षा।
2.कल्पः----
कल्प चार हैं--- श्रौत-सूत्र, गृह्य-सूत्र, धर्म-सूत्र और शुल्ब-सूत्र।
(क)श्रौत-सूत्रः----
आशवलायन
कौषीतकि
कात्यायन
बोधायन
आपस्तम्ब
भारद्वाज
कठ
जैमिनीय
खादिर
द्राह्यायण
लाट्यायन
वाधूल
वैतान।
(ख)गृह्य-सूत्रः---
आश्वलायन
शाङ्खायन
शाम्बव्य
कात्यायन
कठ
आपस्तम्ब
बोधायन
वैखानस
भारद्वाज
वाधूल
जैमिनीय
गोभिल
गौतम
कौशिक।
(ग)धर्म-सूत्रः----
वशिष्ठ
हारीत
शङ्ख
विष्णु
आपस्तम्ब
बोधायन
हिरण्यकेशी
वैखानस
गौतम।
(घ)शुल्ब-सूत्रः-----
कात्यायन
मानव
बोधायन
आपस्तम्ब
मैत्रायणी
वाराह
वाधूल।
3.व्याकरणम्----
इन्द्र
चन्द्र
काशकृत्स्न
आपिशलि
पाणिनि
अमर
जैनेन्द्र।
4.निरुक्तम्----
आचार्य यास्क
5.छन्दः------
छन्दःसूत्रः--आचार्य पिङ्गल
6.ज्योतिष्------
आर्च ज्योतिष्
याजुष् ज्योतिष्।
******************उपाङ्ग********************
इन्हें शास्त्र और दर्शन भी कहा जाता है। ये कुल छः हैं---
1.न्याय--गोतम
2.वैशेषिक--कणाद
3.साङ्ख्य--कपिल
4.योग--पतञ्जलि
5.पूर्व-मीमांसा--जैमिनि
6.उत्तर-मीमांसा(ब्रह्मसूत्र)--व्यास।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत।।
यजुर्वेद 31.7
परमात्मा ने सृष्टि की रचना की। उसके संविधान के लिए चार वेदों का प्रकाश किया। अग्नि ऋषि के हृदय में ऋग्वेद, वायु ऋषि के हृदय में यजुर्वेद, आदित्य ऋषि के हृदय में सामवेद और अङि्गरा ऋषि के हृदय में अथर्ववेद ज्ञान दिया। इन चारों ऋषियों से ब्रह्मा ने वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। ब्रह्मा से इन्द्र ने और इन्द्र से भरद्वाज ने वेद विद्या ग्रहण की। भरद्वाज से वेद विद्या तपोमूर्ति ब्राह्मणों को मिली। ब्राह्मणों ने जग के कल्याण के लिए सामान्य लोगों में वेद विद्या का प्रचार किया।
वैदिक वाङ्मय को चार भागों में वर्गीकृत किया जाता है- संहिता, ब्राहमण, आरण्यक और उपनिषद्। तद्यथा- मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम्। यहाँ पर ब्राह्मण से ब्राहमण सहित आरण्यक और उपनिषद् भी गृहित है।
आचार्य सायण ने वेद से अभिप्राय निकाला है-इष्टप्राप्त्यनिष्टपरिहारयोरलौकिकमुपायं यो ग्रन्थो वेदयति स वेदः।
अर्थात् इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट के परिहार का अलौकिक उपाय बताने वाला ग्रन्थ वेद है।
ऋषि दयानन्द के अनुसार-विदन्ति जानन्ति,विद्यन्ते भवन्ति, विन्दन्ति विन्दन्ते लभन्ते, विन्दते विचारयन्ति सर्वे मनुष्याः सर्वाः सत्यविद्या यैर्येषु वा तथा विद्वांसश्च भवन्ति ते वेदाः। तथ आदिसृष्टिमारभ्याद्यापर्यन्तं ब्रह्मादिभिः सर्वाः सत्यविद्याः श्रूयन्ते अनया सा श्रुतिः।
अर्थात् जिनके पढने से यथार्थ विद्या का विज्ञान होता है, जिनको पढ के विद्वान् होते है, जिनसे सब सुखों का लाभ होता है और जिनसे ठीक-2 सत्य-असत्य का विचार मनुष्यों को होता है, इससे ऋक् संहितादि का नाम वेद है।
वैसे ही सृष्टि के आरम्भ से आज पर्यन्त और ब्रह्मादि से लेकर हम लोग पर्यन्त जिससे सब सत्यविद्याओं को सुनते आते हैं इससे वेदों का श्रुति नाम पडा है।
ऐसा माना जाता है कि वेदों में सभी प्रकार का ज्ञान-विज्ञान है-सर्वज्ञानमयो हि सः- मनु।
जो वेद की निन्दा करता है उसे नास्तिक कहा जाता है- नास्तिको वेदनिन्दकः- मनुः।
वेदों का रचनाकालः--
मैक्समूलर ने ईसा से 800-600 वर्ष पूर्व माना है।
ऋषि दयानन्द ने वेदों की उत्पत्ति सृष्टि के आदि में माना है। तदनुसार 1,97,29,49,113 वर्ष हुए हैं।
ह्विटनी और केगी के अनुसार वेदों का समय 2000-1500 ई.पू. है।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनुसार 4000-2500 ई.पू. है।
प्रो. जैकोबी के अनुसार 4500-2500 ई.पू. है।
दीनानाथ शास्त्री के अनुसार आज से लगभग तीन लाख वर्ष पूर्व है।
<<<<<<<<<<<<<<<<<वैदिक-वाङ्मय>>>>>>>>>>>>>>>>>>
*******वेद******
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
*****उपवेद******
आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद और अर्थवेद।
******शाखाः*****
1. ऋग्वेदः---
ऋग्वेद की इक्कीस शाखाएँ हैं- एकविंशतिधा बाह्वृच्यम्। इनमें से उपलब्ध पाँच शाखाएँ---शाकल, बाष्कल, आश्वलायन, शांखायन और माण्डूकायन।
2. यजुर्वेदः---
यजुर्वेद की एक सौ एक शाखाएँ हैं-एकशतमध्वर्युशाखाः। इनमें छः शाखाएँ उपलब्ध हैं।
शुक्ल-.यजुर्वेदः---वाजसनेयी या माध्यन्दिनि और काण्व।
कृष्ण-यजुर्वेदः----तैत्तिरीय,मैत्रायणी, कठ और कपिष्ठल।
3. सामवेदः----
सामवेद की एक हजार शाखाएँ हैं-सहस्रवर्त्मा सामवेदः। कुछ प्रमुख शाखाएँ--- असुरायणीय, वासुरायणीय, वार्तान्तरेय, प्राञ्जल, राणायनीय, शाट्यायनीय, सात्यमुद्गल, खल्वल, महाखल्वल, लाङ्गल, कौथुम, गौतम और जैमिनीय। उपलब्ध शाखाएँ-- कौथुमीय, राणायनीय और जैमिनीय।
4. अथर्ववेदः---
अथर्ववेद की नौ शाखाएँ हैं-नवधाथर्वणो वेदः--- पैप्लाद, शौनक, मौद, स्तौद, जाजल, जलद, ब्रह्मवेद, देवदर्श और चारणवैद्य। उपलब्ध शाखाएँ-- पैप्लाद और शौनक।
********ब्राह्मण*********
1.ऋग्वेदः----
ऐतरेय और शाङ्खायन।
2.यजुर्वेदः-----
शुक्ल-यजुर्वेदः--शतपथ।
कृष्ण-यजुर्वेदः--तैत्तिरीय, मैत्रायणी, कठ और कपिष्ठल।
3.सामवेदः---
प्रौढ, षड्विंश, सामविधान, आर्षेय, देवताध्याय, उपनिष्द, संहितोपनिषद्, वंश और जैमिनीय।
4.अथर्ववेदः---
गोपथ।
*********आरण्यक********
1.ऋग्वेदः---
ऐतरेय और शाङ्खायन।
2.यजुर्वेदः----
शुक्ल-यजुर्वेदः--बृहदारण्यक।
कृष्ण-यजुर्वेदः--तैत्तिरीय और मैत्रायणी।
3.सामवेदः---
छान्दोग्य।
***********उपनिषद्**********
प्रमुख उपनिषद् ग्यारह हैं---ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वतर।
1.ऋग्वेदः----
ऐतरेय।
2.यजुर्वेदः----
शुक्ल-यजुर्वेदः--ईश और बृहदारण्यक।
कृष्ण-यजुर्वेदः--कठ, तैत्तिरीय और श्वेताश्वतर।
3.सामवेदः----
केन और छान्दोग्य।
4.अथर्ववेदः-----
प्रश्न, मुण्डक और माण्डूक्य।
**************वेदाङ्ग************
कुल वेदाङ्ग छः हैं--- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष्।
1.शिक्षा----
पाणिनीया
ऋक्लक्षण
याज्ञवल्क्य
वाशिष्ठी
माण्डव्य
भरद्वाज
अवसान निर्णय
नारदीय
माण्डूकी
शौनकीया प्रातिशाख्या
अथर्ववेद प्रा.
पुष्यसूत्र प्रा.
वाजसनेयी प्रा.
तैत्तिरीय प्रा.
माध्यन्दिनि शिक्षा।
2.कल्पः----
कल्प चार हैं--- श्रौत-सूत्र, गृह्य-सूत्र, धर्म-सूत्र और शुल्ब-सूत्र।
(क)श्रौत-सूत्रः----
आशवलायन
कौषीतकि
कात्यायन
बोधायन
आपस्तम्ब
भारद्वाज
कठ
जैमिनीय
खादिर
द्राह्यायण
लाट्यायन
वाधूल
वैतान।
(ख)गृह्य-सूत्रः---
आश्वलायन
शाङ्खायन
शाम्बव्य
कात्यायन
कठ
आपस्तम्ब
बोधायन
वैखानस
भारद्वाज
वाधूल
जैमिनीय
गोभिल
गौतम
कौशिक।
(ग)धर्म-सूत्रः----
वशिष्ठ
हारीत
शङ्ख
विष्णु
आपस्तम्ब
बोधायन
हिरण्यकेशी
वैखानस
गौतम।
(घ)शुल्ब-सूत्रः-----
कात्यायन
मानव
बोधायन
आपस्तम्ब
मैत्रायणी
वाराह
वाधूल।
3.व्याकरणम्----
इन्द्र
चन्द्र
काशकृत्स्न
आपिशलि
पाणिनि
अमर
जैनेन्द्र।
4.निरुक्तम्----
आचार्य यास्क
5.छन्दः------
छन्दःसूत्रः--आचार्य पिङ्गल
6.ज्योतिष्------
आर्च ज्योतिष्
याजुष् ज्योतिष्।
******************उपाङ्ग********************
इन्हें शास्त्र और दर्शन भी कहा जाता है। ये कुल छः हैं---
1.न्याय--गोतम
2.वैशेषिक--कणाद
3.साङ्ख्य--कपिल
4.योग--पतञ्जलि
5.पूर्व-मीमांसा--जैमिनि
6.उत्तर-मीमांसा(ब्रह्मसूत्र)--व्यास।
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