भगवान की दया
ईश्वर की दया अपार है परन्तु जो जितनी मानता है उतनी ही दया उसको फलती है, इसलिए उस ईश्वर की जितनी अधिक-से-अधिक दया तुम अपने ऊपर समझ सको उन्ती समझनी चाहिये | तुम्हारी कल्पना जितनी अधिक होगी, तुम्हे उतना ही अधिक लाभ होगा | यद्यपि भगवान की दया का थाह उसी प्रकार किसीको नहीं मिलता, जैसे विमान पर बैठ कर आकाशमें उड़ने वाले मनुष्य को आकाश का थाह नहीं मिलता, परन्तु इस दया का थोडा-सा रहस्य जानने पर भी मनुष्य कृतकृत्य हो जाता है | जैसे अथाह गंगा के प्रवाहमें से मनुष्य की प्यास बुझानेके लिए एक लोटा गंगाजल ही पर्याप्त है वैसे ही अपार, अपरिमित दयासागरकी दया के एक कारण से ही मनुष्य की अनन्त-जन्मों की शोकाअग्नि सदा के लिए शान्त हो जाती है | यह तुलना भी पर्याप्त नहीं है, क्योकि साधारण जलबुद्धि से पीये हुए गंगाजल के एक लोटे जल से तो मनुष्य की प्यास थोड़ी देर के लिए शान्त होती है, परन्तु ईश्वर की दया के कण से तो भय, शोक और दुखों की निवृति एवं शान्ति और परमानन्द की प्राप्ति सदा के लिए हो जाती है | अतएव सबको चाहिये की उस परमेश्वर के शरण होकर उसकी दया की खोज करे |
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