Saturday, April 5, 2014

कलियुग के लक्षण सुनिए

हे गरड जी, कलियुग के लक्षण सुनिए:
बादहिं सूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह ते कछु घाटि।
जानइ ब्रह्म सो बिप्रबर आँखि देखावहिं डाटि।।99(ख)।।
अर्थात् शूद्र ब्राह्मणों से विवाद करते हैं और कहते हैं कि हम क्या तुमसे कुछ कम हैं? 'जो ब्रह्म को
जानता है वही श्रेष्ठ ब्राह्मण है' ऐसा कहकर शूद्र ब्राह्मणों को डाँटकर आँखें दिखाते हैं.
जे बरनाधम तेलि कुम्हारा। स्वपच किरात कोल कलवारा।।
नारि मुई गृह संपति नासी। मूड़ मुड़ाइ होहिं सन्यासी।।
ते बिप्रन्ह सन आपु पुजावहिं। उभय लोक निज हाथ नसावहिं।।
बिप्र निरच्छर लोलुप कामी। निराचार सठ बृषली स्वामी।।
सूद्र करहिं जप तप ब्रत नाना। बैठि बरासन कहहिं पुराना।
सब नर कल्पित करहिं अचारा। जाइ न बरनि अनीति अपारा।।
अर्थात् तेली, कुम्हार, चाण्डाल, भील, कोल और कलवार आदि जो वर्णों में नीच हैं, स्त्री के मरने
पर अथवा घर की संपत्ति नष्ट हो जाने पर सिर मुँड़ाकर संन्यासी हो जाते हैं. वे अपने को
ब्राह्मणों से पुजवाते हैं और अपने ही हाथों दोनों लोक नष्ट करते हैं. ब्राह्मण अनपढ़, लोभी, कामी,
आचारहीन, मूर्ख और नीची जाति की व्यभिचारिणी स्त्रियों के स्वामी होते हैं. शूद्र नाना प्रकार के
जप, तप और व्रत करते हैं तथा ऊँचे आसन पर बैठकर पुराण कहतेहैं. सब मनुष्य मनमाना
आचरण करते हैं. इस अपार अनीति का वर्णन नहीं किया जा सकता.
-श्रीरामचरित मानस |
[उत्तर कांड]
धन्य है गोस्वामी जी , क्या वर्णन किया , एकदम सटीक _/\_
श्री राम जय राम जय जय राम |

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