लाक्षागृह का रहस्योद्घाटन भाग 3------------------------ -----------------------------------------------------------------
महाभारत ग्रंथ के अध्याय 148 के श्लोक 5,6 को कोट किया है जिनके अनुसार भागीरथी के तट पर ही शहर वारणावत स्तिथ था जहां लाक्षागृह बनाया गया था।
------ महाभारत--अध्याय148 - श्लोक-11,12,13,14 का अनुवाद-- माता सहित पांडवों को दुखी देखकर नाविक ने उन सबको नाव पर चढ़ाया और गंगा मार्ग से प्रस्थान करने लगे ॥11॥ विदुर के भेजे हुये नाविक उन शूरवीर पांडवों नदी के पार उतार दिया॥12॥ जब वे गंगा जी दूसरे तट पर पहुँच गए तो 'सबके लिए जय हो' ऐसा आशीर्वाद सुनकर वो नाविक जैसे आया था, वैसे ही लौट गया॥13॥ पांडव भी विदुर जी को उनके संदेश का उत्तर देकर खुद को छुपाते तेजी से वहाँ से चले गए॥14॥ इससे सिद्ध होता है की लाक्षागृह भागीरथी के तट पर था ना कि यमुना, कृष्णा या हिंडन नदी के तट पर, ये दोनों नदियां भागिरथी की सहायक नदियां भी नही हैं, जैसे कि पुराणो मे अलकनंदा, मंदाकिनी आदि को बताया गया है। मेरठ मे कृष्णा और हिंडन नदी बहती है। लाखामंडल नौगाव मे यमुना है भागीरथी नही। यमुना गंगा की बड़ी बहिन है और भागीरथी के अवतरण से पहले से धरती पर थी। वो भी भागीरथी की सहायक नदी नही है। यमुना का गंगा की तरह अलग से श्रेष्ठ स्थान है। इस कारण लाखामंडल और वरनावा (मेरठ) लाक्षागृह के दावे महाभारत के श्लोक ही खंडित कर देते हैं। लाक्षागृह का असली प्रमाण तो माहाभारत के श्लोक ही हैं कोई और नही।
. महाभारत---अध्याय148 - श्लोक-11,12,13,14, अथ तान व्यथितान दृष्ट्वा सहमात्रा नरौत्तमान। नावमारोप्य गंगायाम् प्रस्थितान्ब्रवीत पुनः ॥11॥ ईत्युक्ता स तु तान्वीरान पुमान विदूरचोदित:। तारयामास राजेंद्र: गंगाम् नाव: नरर्षभान ॥13॥ तारयित्वा ततो गंगाम् पारं परापतांश्च सर्वस: । जायाशिष: प्रयुज्याथ यथागतमगाद्धि स: ॥14॥ पांडवाश्च महात्मान: प्रतिसंदिश्य वै कवे: । गंगामुत्तीर्य वेगेन जग्मूर्गूढमल अलक्षित: ॥1
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