Tuesday, August 27, 2013

चतुर्दिश अस्त्र




आजकल अंग्रेजी स्कूलों एवं अंग्रेजी प्रभाव के कारण.... हमारे हिंदुस्तान में लोगों के दिमाग में यह बात ठूंस -ठूंस कर भर दी जाती है कि..... मिसाइल , हवाई जहाज , टेलीविजन इत्यादि आधुनिक पाश्चात्य आविष्कार हैं.... और, हमें ये सब ज्ञान पश्चिम के देशों से प्राप्त हुआ है....!

लेकिन.... हकीकत बिल्कुल इसके विपरीत है.... और, सच्चाई यह है कि..... हम हिन्दुस्थानियों ने पश्चिम के देशों से ये सब विज्ञान नहीं सीखा है..... बल्कि, पश्चिम के देशों ने .... हम हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों से प्रेरणा लेकर.... अथवा, इसे बनाने की विधि चुरा कर ... इसे अविष्कार का नाम दे दिया है.... और, हम मूर्खों की तरह .... पश्चिमी देशों की वाह-वाही और उसकी नक़ल करने में लगे हुए हैं....!

उदाहरण के लिए..... युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले मिसाइले ..... आज के ज़माने में बेहद आधुनितम तकनीक मानी जाती है......

परन्तु.... यह जानकर आपको आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी होगी कि...... जिस ज़माने में पश्चिम के तथाकथित ""ज्ञानी लोगों"" के पूर्वज .... पहाड़ों की गुफा में रहकर .... और, कंद-मूल खा कर अपना जीवन बसर किया करते थे..... उस समय हमारे हिन्दुस्थान के युद्धों में मिसाइल जैसी आधुनिकतम तकनीकों का प्रयोग हुआ करता था...!

हम हिन्दुओं के विभिन्न ग्रंथों ..... खास कर रामायण और महाभारत में जगह-जगह पर बहुत सारे अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन आता है ....

यहाँ सबसे पहले यह समझ लें कि..... अस्त्र मतलब .. जिसे हाथ में रख कर युद्ध किया जाए .... जैसे कि.... तलवार, बरछी , भला इत्यादि....!
वहीँ.... शस्त्र का मतलब वैसा अस्त्र होता है...... जिसे दूर से ही दुश्मनों पर प्रहार किया जा सके...... यथा ... तीर, पक्षेपात्र इत्यादि....!

इस तरह.... हमारे पुरातन धार्मिक ग्रंथों में ..... विभिन्न प्रकार के पक्षेपात्रों ( मिसाइल) का उल्लेख मिलता है..... जिसे अस्त्र कह कर संबोधित किया गया है.....

जैसे कि.....
इन्द्र अस्त्र , आग्नेय अस्त्र, वरुण अस्त्र, नाग अस्त्र , नाग पाश , वायु अस्त्र, सूर्य अस्त्र , चतुर्दिश अस्त्र, वज्र अस्त्र, मोहिनी अस्त्र , त्वाश्तर अस्त्र, सम्मोहन / प्रमोहना अस्त्र , पर्वता अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, ब्रह्मसिर्षा अस्त्र , नारायणा अस्त्र, वैष्णवअस्त्र, पाशुपत अस्त्र ......ब्रह्मास्त्र .... इत्यादि....!

ये सभी ऐसे अस्त्र थे........ जो अचूक थे....!

इसमें से .....ब्रह्मास्त्र .... संभवतः..... परमाणु सुसज्जित मिसाइल को कहा जाता होगा.... जिसमे समुद्र तक को सुखा देने की क्षमता मौजूद थी...!

परन्तु.... ब्रह्मास्त्र के सिद्धांत को समझने के लिए हम एक Basic Weapon - चतुर्दिश अस्त्र का अध्ययन करते हैं जिसके आधार पर ही अन्य अस्त्रों का निर्माण किया जाता है।

चतुर्दिश अस्त्र ( एक साथ चारों दिशाओं में प्रहार कर सकने की क्षमता वाला अस्त्र ) के सम्बन्ध में हमारे धार्मिक ग्रंथों में इस प्रकार का उल्लेख है ....:

संरचना:

1.तीर (बाण) के अग्र सिरे पर ज्वलनशील रसायन लगा होता है....... और , एक सूत्र के द्वारा इसका सम्बन्ध तीर के पीछे के सिरे पर बंधे बारूद से होता है.

2.तीर की नोक से थोडा पीछे ....... चार छोटे तीर लगे होते हैं ..... और, उनके भी पश्च सिरे पर बारूद लगा होता है.

कार्य-प्रणाली:

1. जैसे ही तीर को धनुष से छोड़ा जाता है... वायु के साथ घर्षण के कारण........तीर के अग्र सिरे पर बंधा ज्वलनशील पदार्थ जलने लगता है.

2. उस से जुड़े सूत्र की सहायता से तीर के पश्च सिरे पर लगा बारूद जलने लगता है......... और , इस से तीर को अत्यधिक तीव्र वेग मिल जाता है.

3. और, तीसरे चरण में तीर की नोक पर लगे....... 4 छोटे तीरों पर लगा बारूद भी जल उठता है ....और, ये चारों तीर चार अलग अलग दिशाओं में तीव्र वेग से चल पड़ते हैं.

दिशा-ज्ञान की प्राचीन जडें (Ancient root of Navigation):

navigation का अविष्कार 6000 साल पहले सिन्धु नदी के पास हो गया था।

आपको यह जानकर और भी आश्चर्य होगा कि...... अंग्रेजी शब्द navigation, . हमारे संस्कृत से ही बना है.. और, ये शब्द सिर्फ हमारे संस्कृत का अंग्रेजी रूपांतरण है....!

: navi -नवी (new); gation -गतिओं (motions).

इसीलिए जागो हिन्दुओ...... और, पहचानो अपने आपको ....

हम हिन्दू प्रारंभ में भी ..... विश्वगुरु थे ... और, आज भी हम में विश्वगुरु बनने की क्षमता है....!

जय महाकाल...!!!


Tuesday, August 20, 2013

अफ्रीका में 6 हजार वर्ष पूर्व प्रचलित था हिंदू धर्म

अफ्रीका में 6 हजार वर्ष पूर्व प्रचलित था हिंदू धर्म




भगवान शिव कहां नहीं हैं? कहते हैं कण-कण में हैं शिव, कंकर-कंकर में हैं भगवान शंकर। कैलाश में शिव और काशी में भी शिव और अब अफ्रीका में शिव। साउथ अफ्रीका में भी शिव की मूर्ति का पाया जाना इस बात का सबूत है कि आज से 6 हजार वर्ष पूर्व अफ्रीकी लोग भी हिंदू धर्म का पालन करते थे।

साउथ अफ्रीका के सुद्वारा नामक एक गुफा में पुरातत्वविदों को महादेव की 6 हजार वर्ष पुरानी शिवलिंग की मूर्ति मिली जिसे कठोर ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। इस शिवलिंग को खोजने वाले पुरातत्ववेत्ता हैरान हैं कि यह शिवलिंग यहां अभी तक सुरक्षित कैसे रहा।हाल ही में दुनिया की सबसे ऊंची शिवशक्ति की प्रतिमा का अनावरण दक्षिण अफ्रीका में किया गया। इस प्रतिमा में भगवान शिव और उनकी शक्ति अर्धांगिनी पार्वती भी हैं। बेनोनी शहर के एकटोनविले में यह प्रतिमा स्थापित की गई। हिन्दुओं के आराध्य शिव की प्रतिमा में आधी आकृति शिव और आधी आकृति मां शक्ति की है।

10 कलाकारों ने 10 महीने की कड़ी मेहनत के बाद इस प्रतिमा को तैयार किया है। ये कलाकार भारत से आए थे। इस 20 मीटर ऊंची प्रतिमा को बनाने में 90 टन के करीब स्टील का इस्तेमाल हुआ है।

विश्व में हिन्दू देश एक अथवा दो नहीं वरन १३ - इति सिद्धम

विश्व में हिन्दू देश एक अथवा दो नहीं वरन १३ - इति सिद्धम



जब लोग कहते हैं कि विश्व में केवल एक ही हिन्दू
देश है तो यह पूरी तरह गलत है यह बात केवल वे
ही कह सकते हैं जो हिन्दू की परिभाषा को नहीं जानते
। इसके लिए सबसे पहले हमें यह
जानना होगा कि हिन्दू की परिभाषा क्या है ।
हिन्दुत्व की जड़ें किसी एक पैगम्बर पर टिकी न
होकर सत्य, अहिंसा सहिष्णुता, ब्रह्मचर्य ,
करूणा पर टिकी हैं । हिन्दू विधि के अनुसार हिन्दू
की परिभाषा नकारात्मक है परिभाषा है जो ईसाई
मुसलमान व यहूदी नहीं है वे सब हिन्दू है। इसमें
आर्यसमाजी, सनातनी, जैन सिख बौद्ध
इत्यादि सभी लोग आ जाते हैं । एवं भारतीय मूल के
सभी सम्प्रदाय पुर्नजन्म में विश्वास करते हैं और
मानते हैं कि व्यक्ति के कर्मों के आधार पर ही उसे
अगला जन्म मिलता है । तुलसीदास जीने लिखा है
परहित सरिस धरम नहीं भाई । पर पीड़ा सम
नहीं अधमाई । अर्थात दूसरों को दुख देना सबसे
बड़ा अधर्म है एवं दूसरों को सुख देना सबसे
बड़ा धर्म है । यही हिन्दू की भी परिभाषा है । कोई
व्यक्ति किसी भी भगवान को मानते हुए, एवं न मानते
हुए हिन्दू बना रह सकता है । हिन्दू
की परिभाषा को धर्म से अलग
नहीं किया जा सकता । यही कारण है कि भारत में
हिन्दू की परिभाषा में सिख बौद्ध जैन
आर्यसमाजी सनातनी इत्यादि आते हैं । हिन्दू
की संताने यदि इनमें से कोई भी अन्य पंथ
अपना भी लेती हैं तो उसमें कोई बुराई
नहीं समझी जाती एवं इनमें रोटी बेटी का व्यवहार
सामान्य माना जाता है । एवं एक दूसरे के धार्मिक
स्थलों को लेकर कोई झगड़ा अथवा द्वेष
की भावना नहीं है । सभी पंथ एक दूसरे के
पूजा स्थलों पर आदर के साथ जाते हैं । जैसे स्वर्ण
मंदिर में सामान्य हिन्दू भी बड़ी संख्या में जाते हैं
तो जैन मंदिरों में भी हिन्दुओं को बड़ी आसानीसे
देखा जा सकता है । जब गुरू तेग बहादुर ने
कश्मीरी पंडितो के बलात धर्म परिवर्तन के विरूद्ध
अपना बलिदान दिया तो गुरू गोविन्द सिंह ने इसे
तिलक व जनेउ के लिए उन्होंने बलिदान दिया इस
प्रकार कहा । इसी प्रकार हिन्दुओं ने भगवान बुद्ध
को अपना 9वां अवतार मानकर अपना भगवान मान
लिया है । एवं भगवान बुद्ध की ध्यान
विधि विपश्यना को करने वाले अधिकतम लोग आज
हिन्दू ही हैं एवं बुद्ध की शरण लेने के बाद भी अपने
अपने घरों में आकर अपने हिन्दू रीतिरिवाजों को मानते
हैं । इस प्रकार भारत में फैले हुए
पंथों को किसी भी प्रकार से विभक्त
नहीं किया जा सकता एवं सभी मिलकर
अहिंसा करूणा मैत्री सद्भावना ब्रह्मचर्य
को ही पुष्ट करते हैं ।
इसी कारण कोई व्यक्ति चाहे वह राम को माने
या कृष्ण को बुद्ध को या महावीर को अथवा गोविन्द
सिंह को परंतु यदि अहिंसा,
करूणा मैत्री सद्भावना ब्रह्मचर्य, पुर्नजन्म,
अस्तेय, सत्य को मानता है तो हिन्दू ही है ।
इसी कारण जब पूरे विश्व में 13 देश हिन्दू
देशों की श्रेणी में आएगें । इनमें वे सब देश है
जहाँ बौद्ध पंथ है । भगवान बुद्ध द्वारा अन्य
किसी पंथ को नहीं चलाया गया उनके द्वारा कहे गए
समस्त साहित्य में कहीं भी बौद्ध शब्द का प्रयोग
नहीं हुआ है । उन्होंने सदैव इस धर्म कहा । भगवान
बुद्ध ने किसी भी नए सम्प्रदाय
को नहीं चलाया उन्होनें केवल मनुष्य के अंदर श्रेष्ठ
गुणों को लाने उन्हें पुष्ट करने के लिए ध्यान
की पुरातन विधि विपश्यना दी जो भारत की ध्यान
विधियों में से एक है जो उनसे पहले सम्यक सम्बुद्ध
भगवान दीपंकर ने भी हजारों वर्ष पूर्व विश्व
को दी थी । एवं भगवान दीपंकर से भी पूर्व न जाने
कितने सम्यंक सम्बुद्धों द्वारा यही ध्यान
की विधि विपश्यना सारे संसार को समय समय पर
दी गयी ( एसा स्वयं भगवान बुद्ध द्वारा कहा गया है
। भगवान बुद्ध ने कोई नया पंथ नहीं चलाया वरन्
उन्होंने मानवीय गुणों को अपने अंदर बढ़ाने के लिए
अनार्य से आर्य बनने के लिए ध्यान
की विधि विपश्यना दी जिससे करते हुए कोई भी अपने
पुराने पंथ को मानते हुए रह सकता है । परंतु विधि के
लुप्त होने के बाद विपश्यना करने वाले लोगों के
वंशजो ने अपना नया पंथ बना लिया । परतुं यह बात
विशेष है कि इस ध्यान की विधि के कारण ही भारतीय
संस्कृति का फैलाव विश्व के 21 से भी अधिक देशों में
हो गया एवं ११ देशों में
बौद्धों की जनसंख्या अधिकता में हैं ।
हिन्दुत्व व बौद्ध मत में समानताएं -
१- दोनों ही कर्म में पूरी तरह विश्वास रखते हैं ।
दोनों ही मानते हैं कि अपने ही कर्मों के आधार पर
मनुष्य को अगला जन्म मिलता है ।
2- दोनों पुर्नजन्म में विश्वास रखते हैं ।
3- दोनों में ही सभी जीवधारियों के प्रति करूणा व
अहिंसा के लिए कहा गया है ।
4- दोनों में विभिन्न प्रकार के स्वर्ग व नरक
को बताया गया है ।
5- दोनों ही भारतीय हैं भगवान बुद्ध ने भी एक हिन्दू
सूर्यवंशी राजा के यहां पर जन्म लिया था इनकेवंशज
शाक्य कहलाते थे । स्वयं भगवान बुद्ध ने तिपिटक में
कहा है कि उनका ही पूर्व जन्म राम के रूप में हुआ
था । 6- दोनों में ही सन्यास को महत्व दिया गया है
। सन्यास लेकर साधना करन को वरीयता प्रदान
की गयी है ।
7- बुद्ध धर्म में तृष्णा को सभी दुखों का मूलमाना है
। चार आर्य सत्य माने गए हैं ।
- संसार में दुख है
- दुख का कारण है
- कारण है तृष्णा
- तृष्णा से मुक्ति का उपाय है आर्य अष्टांगिक
मार्ग । अर्थात वह मार्ग जो अनार्य को आर्य
बना दे ।
इससे हिन्दुओं को भी कोई वैचारिक मतभेद नहीं है ।
8- दोनों में ही मोक्ष ( निर्वाण )को अंतिम लक्ष्य
माना गया है एवं मोक्ष प्राप्त करने के लिए पुरूषार्थ
करने को श्रेष्ठ माना गया है ।
दोनों ही पंथों का सूक्ष्मता के साथ तुलना करने के
पश्चात यह निष्कर्ष बड़ी ही आसानी से निकलता है
कि दोनों के मूल में अहिंसा, करूणा, ब्रह्मचर्य एवं
सत्य है । दोनों को एक दूसरे से अलग
नहीं किया जा सकता । और हिन्दओं का केवल एक
देश नहीं बल्कि 13 देश हैं ।
इस प्रकार हम देखते हैं विश्व की कुल जनसंख्या में
भारतीय मूल के धर्मों की संख्या 20 प्रतिशत है
जो मुस्लिम से केवल एक प्रतिशत कम हैं । एवं
हिन्दुओं की कुल जनसंख्या बौद्धों को जोड़कर 130
करोड़ है।

परमाणु बम का जनक - सनातनी भारत

परमाणु बम का जनक - सनातनी भारत 



आधुनिक परमाणु बम का सफल परीक्षण 16 जुलाई 1945 को New Mexico के एक दूर दराज स्थान में किया गया था| 

इस बम का निर्माण अमेरिका के एक वैज्ञानिक Julius Robert Oppenheimer [ http://en.wikipedia.org/wiki/J._Robert_Oppenheimer ] के नेतृत्व में किया गया था 

Oppenheimer को आधुनिक परमाणु बम के निर्माणकर्ता के रूप में जाना जाता है, आपको ये जानकर आश्चर्य हो सकता है की इस परमाणु परीक्षण का कोड नाम Oppenheimer ने त्रिदेव (Trinity) रखा था,

परमाणु विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया में २३५ भार वला यूरेनियम परमाणु,बेरियम और क्रिप्टन तत्वों में विघटित होता है। प्रति परमाणु ३ न्यूट्रान मुक्त होकर अन्य तीन परमाणुओं का विखण्डन करते है। कुछ द्रव्यमान ऊर्जा में परिणित हो जाता है। ऊर्जा = द्रव्यमान * (प्रकाश का वेग)२ {E=MC^2} के अनुसार अपरिमित ऊर्जा अर्थात उष्मा व प्रकाश उत्पन्न होते है। यहाँ देखें - [ http://www.facebook.com/photo.php?fbid=374856539304046&set=a.338314332958267.1073741828.100003391094649&type=1&theater ]

Oppenheimer ने महाभारत और गीता का काफी समय तक अध्ययन किया था और हिन्दू धर्मं शास्त्रों से वे बेहद प्रभावित थे १८९३ में जब स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में थे, उन्होने वेद और गीता के कतिपय श्लोकों का अंग्रेजी अनुवाद किया।

यद्यपि परमाणु बम विस्फोटट कमेटी के अध्यक्ष ओपेन हाइमर का जन्म स्वामी जी की मृत्यु के बाद हुआ था किन्तु राबर्ट ने श्लोकों का अध्ययन किया था। वे वेद और गीता से बहुत प्रभावित हुए थे। वेदों के बारे में उनका कहना था कि पाश्चात्य संस्कृति में वेदों की पंहुच इस सदी की विशेष कल्याणकारी घटना है।

उन्होने जिन तीन श्लोकों को महत्व दिया वे निम्र प्रकार है।

१. राबर्ट औपेन हाइमर का अनुमान था कि परमाणु बम विस्फोट से अत्यधिक तीव्र प्रकाश और उच्च ऊष्मा होगी, जैसा कि भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को विराट स्वरुप के दर्शन देते समय उत्पन्न हुआ होगा।

गीता के ग्यारहवें अध्याय के बारहवें श्लोक में लिखा है-

दिविसूर्य सहस्य भवेयुग पदुत्थिता यदि
मा सदृशीसा स्यादा सस्तस्य महात्मन: {११:१२ गीता}

अर्थात - आकाश में हजारों सूर्यों के एक साथ उदय होने से जो प्रकाश उत्पन्न होगा वह भी वह विश्वरुप परमात्मा के प्रकाश के सदृश्य शायद ही हो।

२. औपेन हाइमर के अनुसार इस बम विस्फोट से बहुत अधिक लोगों की मृत्यु होगी, दुनिया में विनाश ही विनाश होगा।

उस समय उन्होंने गीता के गीता के ग्यारहवें अध्याय के ३२ वें श्लोक में वर्णित बातों का सन्दर्भ दिया -

कालोस्स्मि लोकक्षयकृत्प्रवृध्दो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत:।
ऋ तेह्यपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येह्यवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा:।। {११:३२ गीता}

अर्थात - मैं लोको का नाश करने वाला बढा हुआ महाकाल हूं। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं,अत: जो प्रतिपक्षी सेना के योध्दा लोग हैं वे तेरे युध्द न करने पर भी नहीं रहेंगे अर्थात इनका नाश हो जाएगा।

३. औपेन हाइमर के अनुसार बम विस्फोट से जहां कुछ लोग प्रसन्न होंगे तो जिनका विनाश हुआ है वे दु:खी होंगे विलाप करेंगे,जबकि अधिकांश तटस्थ रहेंगे। इस विनाश का जिम्मेदार खुद को मानते हुए वे दुखी हुए, परन्तु उन्होंने गीता में वर्णित कर्म के सिद्धांत का प्रतिपालन किया

उन्होंने गीता के सबसे प्रसिद्ध द्वितीय अध्याय के सैंतालिसवें श्लोक का सन्दर्भ दिया।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङ्गोह्यस्त्वकर्माणि।। {२:४७ गीता}

अर्थात - तू कर्म कर फल की चिंता मत कर। तू कर्मो के फल हेतु मत हो, तेरी अकर्म में (कर्म न करने में) आसक्ति नहीं होनी चाहिए!

उन्होंने अपनी डायरी में स्वयं की मनोस्तिथि लिखी , और इस परीक्षण का कोड नेम इन्ही ३ श्लोको के आधार तथा भगवान ब्रम्हा विष्णु महेश के नाम पर ट्रिनिटी रखा...

तत्कालीन अमेरिकी सरकार नहीं चाहती थी की कोई और सभ्यता तथा संस्कृति आधुनिक परमाणु बम की अवधारणा का का श्रेय ले जाए.... इसीलिए इस परीक्षण के नामकरण की सच्चाई को उन्होंने Oppenheimer को छुपाने के लिए कहा.... परन्तु जापान में परमाणु बम गिरने के बाद Oppenheimer ने एक इंटरव्यू में ये बात स्वीकार की थी....... विकिपीडिया भी दबी जुबान में ये बात बोलता है... [ http://en.wikipedia.org/wiki/Trinity_(nuclear_test)#Name ]

इसके अतिरिक्त 1933 में उन्होंने अपने एक मित्र Arthur William Ryder, जोकि University of California, Berkeley में संस्कृत के प्रोफेसर थे, के साथ मिल कर भगवद गीता का पूरा अध्यन किया और परमाणु बम बनाया 1945 में | परमाणु बम जैसी किसी चीज़ के होने का पता भी इनको भगवद गीता, रामायण तथा महाभारत से ही मिला, इसमें कोई संदेह नहीं | Oppenheimer ने इस प्रयोग के बाद प्राप्त निष्कर्षों पर अध्यन किया और कहा की विस्फोट के बाद उत्पन विकट परिस्तियाँ तथा दुष्परिणाम जो हमें प्राप्त हुए है ठीक इस प्रकार का वर्णन भगवद गीता तथा महाभारत आदि में मिलता है |

बाद में Oppenheimer के खुलासे के बाद भारी पैमाने पर महाभारत और गीता आदि पर शोध किया गया उन्हें इस बात पर बेहद आश्चर्य हुआ की इन ग्रंथो में "ब्रह्माश्त्र" नामक अस्त्र का वर्णन मिलता है जो इतना संहारक था की उस के प्रयोग से कई हजारो लोग व अन्य वस्तुएं न केवल जल गई अपितु पिघल भी गई| ब्रह्माश्त्र के बारे में हमसे बेहतर कौन जान सकता है इसका वर्णन प्रत्येक पुराण आदि में मिलता है... जगत पिता भगवान ब्रह्मा द्वारा असुरो के नाश हेतु ब्रह्माश्त्र का निर्माण किया गया था...

इस शोध पर लिखी गई कई किताबो में से एक है : [ The Atoms of Kshatriyas http://www.amazon.com/The-Atoms-Kshatriyas-Azsacra-Zarathustra/dp/8182533309 ]

रामायण में भी मेघनाद से युद्ध हेतु श्रीलक्ष्मण ने जब ब्रह्माश्त्र का प्रयोग करना चाहा तब श्रीराम ने उन्हें यह कह कर रोक दिया की अभी इसका प्रयोग उचित नही अन्यथा पूरी लंका साफ़ हो जाएगी |

इसके अतिरिक्त प्राचीन भारत में परमाण्विक बमों के प्रयोग होने के प्रमाणों की कोई कमी नही है । सिन्धु घाटी सभ्यता (मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि) में अनुसन्धान से ऐसी कई नगरियाँ प्राप्त हुई है जो लगभग 5000 से 7000 ईसापूर्व तक अस्तित्व में थी| वहां ऐसे कई नर कंकाल इस स्थिति में प्राप्त हुए है मानो वो सभी किसी अकस्मात प्रहार में मारे गये हों... इनमें रेडिएशन का असर भी था | वह कई ऐसे प्रमाण भी है जो यह सिद्ध करते है की किसी समय यहाँ भयंकर ऊष्मा उत्पन्न हुई जो केवल परमाण्विक बम या फिर उसी तरह के अस्त्र से ही उत्पन्न हो सकती है

उत्तर पश्चिम भारत में थार मरुस्थल के एक स्थान में दस मील के घेरे में तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर रेडियोएक्टिव्ह राख की मोटी सतह पाई जाती है। वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी परमाणु विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे। एक शोधकर्ता के आकलन के अनुसार प्राचीनकाल में उस नगर पर गिराया गया परमाणु बम जापान में सन् 1945 में गिराए गए परमाणु बम की क्षमता से ज्यादा का था।

मुंबई से उत्तर दिशा में लगभग 400 कि.मी. दूरी पर स्थित लगभग 2,154 मीटर की परिधि वाला एक अद्भुत विशाल गड्ढा (crater), जिसकी आयु 50,000 से कम आँकी गई है, भी यही इंगित करती है कि प्राचीन काल में भारत में परमाणु युद्ध हुआ था। शोध से ज्ञात हुआ है कि यह गड्ढा crater) पृथ्वी पर किसी 600.000 वायुमंडल के दबाव वाले किसी विशाल के प्रहार के कारण बना है किन्तु इस गड्ढे (Crater) तथा इसके आसपास के क्षेत्र में उल्कापात से सम्बन्धित कुछ भी सामग्री नहीं पाई जाती। फिर यह विलक्षण गड्ढा आखिर बना कैसे? सम्पूर्ण विश्व में यह अपने प्रकार का एक अकेला गड्ढा (Crater) है।

महाभारत में सौप्तिक पर्व अध्याय १३ से १५ तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिये गए है|

महाभारत युद्ध का आरंभ 16 नवंबर 5561 ईसा पूर्व हुआ और 18 दिन चलाने के बाद 2 दिसम्बर 5561 ईसा पूर्व को समाप्त हुआ उसी रात दुर्योधन ने अश्वथामा को सेनापति नियुक्त किया । 3 नवंबर 5561 ईसा पूर्व के दिन भीम ने अश्वथामा को पकड़ने का प्रयत्न किया ।

{ तब अश्वथामा ने जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा उस अस्त्र के कारण जो अग्नि उत्पन्न हुई वह प्रलंकारी थी । वह अस्त्र प्रज्वलित हुआ तब एक भयानक ज्वाला उत्पन्न हुई जो तेजोमंडल को घिर जाने मे समर्थ थी ।

तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम ।। ८ ।। }

{ इसके बाद भयंकर वायु चलने लगी । सहस्त्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे ।
आकाश में बड़ा शब्द (ध्वनि ) हुआ । पर्वत, अरण्य, वृक्षो के साथ पृथ्वी हिल गई|

सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम । चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा ।। १० ।। अध्याय १४ }

यहाँ वेदव्यास जी लिखते हैं कि -

“जहां ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है वहीं १२ वषों तक पर्जन्यवृष्ठी (जीव-जंतु , पेड़-पोधे आदि की उत्पति ) नहीं हो पाती

ये लिंक दे रहा हूँ इसे ओपन करके ध्यान पूर्वक पढ़ें -

http://www.bibliotecapleyades.net/ancientatomicwar/esp_ancient_atomic_07.htm

सनातनी भारत के विलक्षण विज्ञानं को नमन है...